tag:blogger.com,1999:blog-18436534.post792811670488798430..comments2024-01-10T15:57:22.152+05:30Comments on मसिजीवी: ई-स्वामी जी मेरी एक और फिकर का जिकर सुनेंमसिजीवीhttp://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-68752802043623214842007-06-19T03:17:00.000+05:302007-06-19T03:17:00.000+05:30सुन लिय भई! सुन ही तो रहे हैं! :)सुन लिय भई! सुन ही तो रहे हैं! :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-36101746032815027912007-06-18T15:00:00.000+05:302007-06-18T15:00:00.000+05:30जी रविजी, आप ठीक कह रहे हैं- मुझे खुद याद नहीं कि ...जी रविजी, आप ठीक कह रहे हैं- मुझे खुद याद नहीं कि इस या पिछले चिट्ठे के लिए मैंने कोई आवेदन दिया हो।<BR/><BR/> किंतु बीच में ऐसा हुआ...और फिर एक बार जब बोलो नारद के लिए सब फीड को ले लेने का अनुरोध मैने किया तो जितंद्रजी ने अपनी मजबूरी बताई कि लोग बाद में बेमतलब हल्ल मचाते हैं कि हमने तो नहीं कहा था क्यों लिया- इसीलिए ये तर्क दे रहा हूँ कि फीड की सार्वजनिकता को स्वीकार किया जाए- ऐसा करने से चूंकि 'हमें लो' की जरूरत खत्म होगी तो शायद 'हमें क्यों नहीं लिया' की आपत्ति भी स्वमेव मिट जाए। वैसे ये सिर्फ राय है-मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-88563348374948735102007-06-18T14:36:00.000+05:302007-06-18T14:36:00.000+05:30"...अपनी तो स्पष्ट राय है कि नारद को पंजीकरण की ...<B>"...अपनी तो स्पष्ट राय है कि नारद को पंजीकरण की आवश्यकता पर पुनर्विचार करना चाहिए- यानि नारद खुद उन चिट्ठों का भी एग्रीगेशन शुरू करे जिन्होंने कोई आवेदन नहीं दिया है।..."</B><BR/><BR/>आपको पता नहीं है कि नारद पहले स्वयं ढूंढ कर चिट्ठों को एकत्र करता था. हमारे आपके जैसे स्वयं सेवी ही नारद को खबर करते थे और वह चिट्ठा जुड़ जाता था नारद से. एक चिट्ठा अभिषेक श्रीवास्तव का - मेरे कहने पर जुड़ा था. उसके किसी एक पोस्ट की भाषा गंदी व गाली मय हुई तो अपने अफलातून जी ने ही शिकायत की थी और उनकी ही शिकायत पर वह नारद से बैन हूई तब अभिषेक ने प्रतिरोध में कहा कि मैंने तो नारद से नहीं जोड़ा था अपने चिट्ठे को. <BR/><BR/>उस वक्त के तमाम विवाद के बाद से नारद पर चिट्ठों का पंजीकरण प्रारंभ हुआ था.रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-82019660628267524402007-06-18T13:37:00.000+05:302007-06-18T13:37:00.000+05:30और नारद को इनक्लुजिव बनाने की बात ओर तरीका बिल्कुल...और नारद को इनक्लुजिव बनाने की बात ओर तरीका बिल्कुल सही है । लेकिन प्रशन इस बात का है कि यह कोन तय करेगा की किस चिट्ठे की फीड ली जाए ओर किस को छोडा जाये । क्योकि यहा फिर क्नट्रोल की बात आ गई है ।आलोचकhttps://www.blogger.com/profile/06848970654187169885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-26889219383392134152007-06-18T13:32:00.000+05:302007-06-18T13:32:00.000+05:30बहुत खूब मसिजीवी जी अगर आप की गुहार नारद के सचालक ...बहुत खूब मसिजीवी जी अगर आप की गुहार नारद के सचालक सुनलेवे ओर मानलेवे तो चिट्ठाजगत का बहुत फायदा होगा । क्योकि अगर कोई चिट्ठाकार नारद छोड कर जाता है तो ये सब की सामुहिक जिम्मेदारी है की उसे रोका जाये ।आलोचकhttps://www.blogger.com/profile/06848970654187169885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-10681500376558437622007-06-18T10:29:00.000+05:302007-06-18T10:29:00.000+05:30चिट्ठापाठक होने के नाते हर सार्वजनिक फीड पर सर्वजन...<B>चिट्ठापाठक होने के नाते हर सार्वजनिक फीड पर सर्वजन का अधिकार है। </B> के तहत जो फ़ीड सार्वजनिक है उसको हम शामिल करें या न करें यह हमारी मर्जी पर है! सही है!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.com