tag:blogger.com,1999:blog-18436534.post8514823690007087286..comments2024-01-10T15:57:22.152+05:30Comments on मसिजीवी: साइबर पथ के होरी......विश्वास करें यह लेख सृजन शिल्पी पर नहीं हैमसिजीवीhttp://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-53572598846854748662010-11-10T09:08:34.265+05:302010-11-10T09:08:34.265+05:30.
बहुत सुन्दर आलेख। संवाद भी मन को भा गया। आपकी....<br /><br />बहुत सुन्दर आलेख। संवाद भी मन को भा गया। आपकी ठेठ हिंदी पसंद आई । <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-18341009974830807342007-05-02T09:16:00.000+05:302007-05-02T09:16:00.000+05:30नीरिजा तुम्हारी हठ और अविश्वास ...ओहकभी कभी मेरा...नीरिजा तुम्हारी हठ और अविश्वास ...ओह<BR/>कभी कभी मेरा बेटा इतनी हठ करता है पर यहॉं तो कुछ ज्यादा ही हो गया।<BR/><BR/>खैर, मेरी ऑरकुट प्रोफाइल पर देखें मेरे परिचय के अलावा मेरे संस्थानों का परिचय भी वहाँ कम्यूनिटी में पर है।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-89345513411220097882007-05-02T07:05:00.000+05:302007-05-02T07:05:00.000+05:30अब इतना सच था तो बदला क्यू...:):)अब इतना सच था तो बदला क्यू...:)<BR/>:)नीरिजाhttps://www.blogger.com/profile/13853859524149004315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-80770062450544607842007-05-02T00:14:00.000+05:302007-05-02T00:14:00.000+05:30यह भी खूब है जैसे ही किसी पन्ने पर दिखता है कि हम...यह भी खूब है जैसे ही किसी पन्ने पर दिखता है कि हमारे दोस्त सृजन हमपर थोड़े तैश में हैं, इन ऐनोनिमस महोदय को मौका मिल जाता है कि लो फायदा उठाया जाए...यूं तकनीकी इंतजाम हैं पर फिलहाल ऐसे ही ठीक है। <BR/><BR/>नीरिजा, मेरा एक नए चिट्ठाकार सदस्य पर झल्लाना ठीक नहीं...परिचय के लिए अभयजी और मित्रों ने भी कमियॉं बताते हुए बदलने के लिए पहले भी कहा था पर दूसरे ब्लॉग की वजह से नहीं कर पा रहा था अब दूसरे ब्लॉग में अपेक्षित बदलावों के बाद यह संभव हो गया है।<BR/>रही पोलिटेक्निक की बात तो उसे छोड़ें... पर भारत भर के और दूसरे देशों के भी लगभग प्रत्येक पोलीटेक्निक में इंजीनियरिंग ट्रेड के प्रशिक्षण होते हैं। प्रशिक्षण को अंग्रेजी में ट्रेनिंग कहते हैं...प्रशिक्षित को ट्रेंड। बाद की डिग्री के लिए अक्सर लोग ए एम आई ई कर स्नातक इंजीनियर बनते हैं पर वह केवल परीक्षा है प्रशिक्षण पोलीटेक्निक का ही काम आता है। <BR/>फिर से एक सलाह कि अपने ब्लॉग पर एकाध पोस्ट डालें ताकि हम सब आपका औपचारिक स्वागत कर पाएं। विस्तृत परिचय के भरपूर अवसर मिलेंगे। शायद किसी ब्लागर मीट में मिल भी जाएं।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-34324147757771876472007-05-01T22:21:00.000+05:302007-05-01T22:21:00.000+05:30मसीजीवी जी मै आपके परिचय को बदलवाना थॊडे ही चाहती ...मसीजीवी जी मै आपके परिचय को बदलवाना थॊडे ही चाहती थी आपका इतना अलग सा नाम है मसी यानी स्याही वाला जीव,न ही आपको परेशान करना मेर मकसद है आप ने जो लिखा सत्य ही लिखा होगा ,मै तो बस अपनी जिज्ञासा शान्त करते हुये आप से आपके उस महान सरकारी पोळिटैक्निक का नाम पू्छ रही थी जहा से आप ऐज ए इलेक्ट्रिक इन्जीनियर ट्रेण्ड हुये थे कृपया बता कर इस गरीब देश के बच्चॊ का भला करने मे आप जैसे सत्य समर्थक कलम के सिपाही को क्या आपत्ती हो सकती है समझ मे नही आईनीरिजाhttps://www.blogger.com/profile/13853859524149004315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-10376929600098384572007-05-01T22:15:00.000+05:302007-05-01T22:15:00.000+05:30चह है कि साथ मे नोट पैड होगी तो दोनों का दिल बहला ...चह है कि साथ मे नोट पैड होगी तो दोनों का दिल बहला रहेगा। :) <BR/><BR/>अन्यथा न लें, स्माईली लगा दिया है.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-77543745376548705022007-05-01T17:51:00.000+05:302007-05-01T17:51:00.000+05:30भाई मसिजीवी.. आपने अपने परिचय को हिन्दी में जो कर ...भाई मसिजीवी.. आपने अपने परिचय को हिन्दी में जो कर दिया.. ये देख हमें बड़ी राहत मिली है.. वैसे हमारा क्या आप कैसे भी अपना परिचय दें.. पर एक ख्यातिलब्ध हिन्दी अध्यापक का परिचय अंग्रेज़ी में देख पता नहीं क्यों..हम मन मसोस कर रह जाते थे..खैर जो हुआ सो हुआ..अब परिचय भी बढ़िया और फोटो भी बड़ी अच्छी है.. बधाई हो..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-22148019604276237642007-05-01T14:12:00.000+05:302007-05-01T14:12:00.000+05:30मसिजीवी भैया ,कई दिनों के बाद आज पिछले एक महीने की...मसिजीवी भैया ,<BR/>कई दिनों के बाद आज पिछले एक महीने की पोस्ट्स पढ़ी. काफी अच्छा लगा. इतना ज़रूर कहूंगा कि चिट्ठा जगत पर प्रतिष्ठित लोगों की नज़र पड़ जाने से चिंतित होने की कोई जरूरत नही है। यह तो होना ही था ...और इसमे गलत भी क्या है? एक और बात - हिंदी चिट्ठाकारी को हिंदी साहित्य तक सीमित करना ठीक नही। ऐसे लेख, जिन्हे समझने के लिए हिंदी साहित्य की घनघोर जानकारी की जरूरत पड़ती हो, संवाद प्रक्रिया को बाधित करते हैं.विकास दिव्यकीर्तिhttps://www.blogger.com/profile/17366860051397972408noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-52301217235492173182007-05-01T12:08:00.000+05:302007-05-01T12:08:00.000+05:30हमने विश्वास किया मसिजीवी।:)अरे भाई हमका काहे बीच ...हमने विश्वास किया मसिजीवी।<BR/>:)<BR/>अरे भाई हमका काहे बीच मे लाते हो अनामनीमस भाई!सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/10694935217124478698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-82276895688142190102007-05-01T09:26:00.000+05:302007-05-01T09:26:00.000+05:30anonymous jeeनोटपैड की बडी याद रखते हो ?क्या चक्कर...anonymous jee<BR/>नोटपैड की बडी याद रखते हो ?<BR/>क्या चक्कर है?मेरा ई पन्नाhttps://www.blogger.com/profile/09969091011164843845noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-48531564585435689102007-05-01T06:50:00.000+05:302007-05-01T06:50:00.000+05:30समीर जी ,सही राय है अब मीटिंग कर ही लो नोट पैड के ...समीर जी ,सही राय है अब मीटिंग कर ही लो नोट पैड के साथAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-6871014249331422312007-05-01T06:45:00.000+05:302007-05-01T06:45:00.000+05:30मसीजीवी जी फ़िर भी इन्जीनियर ट्रेन्ड करने वाले पोली...मसीजीवी जी फ़िर भी इन्जीनियर ट्रेन्ड करने वाले पोलीटैक्निक का नाम तो बता ही देते मैने सारी लिस्ट देख ली है मुझे तो कही नही मिला न ट्रेन्ड करने वाला न ही इन्जीनियर बनाने वालानीरिजाhttps://www.blogger.com/profile/13853859524149004315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-84666535232284449372007-05-01T04:38:00.000+05:302007-05-01T04:38:00.000+05:30ये टिप्पणी टिप्पणी में तो बहुत लंबी बात हो रही है....ये टिप्पणी टिप्पणी में तो बहुत लंबी बात हो रही है. दोनों ही तो दिल्ली में हो, कहीं मिल बैठकर बात कर लेते, साथ ही चाय शाय भी हो जाती. हम ब्लॉगर मीट की रिपोर्ट इक्कठे पढ़ लेते. फोटो भी देखते. :)<BR/><BR/>अन्यथा न लें, स्माईली लगा दिया है. मजाक कर रहा था न, इसलिये. :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-51167301237090818112007-05-01T00:33:00.000+05:302007-05-01T00:33:00.000+05:30:) उक्त समाचार में किसी अन्य पिछले आईटी कानून का न...:) उक्त समाचार में किसी अन्य पिछले आईटी कानून का नहीं, बल्कि अब तक बने एकमात्र आईटी एक्ट, 2000 का ही उल्लेख किया गया है। समाचार के इस पैरा पर गौर करें:<BR/><BR/>Delhi police hope to use the provisions of a new law which under which anyone illegally accessing computer data can be found guilty of committing a cybercrime.<BR/>Last month, India's parliament approved an IT bill which seeks to regulate the country's booming IT industry.<BR/><BR/>यह समाचार 1 जून, 2000 को प्रकाशित हुआ है और इसमें कहा गया है कि इससे पिछले महीने संसद द्वारा क़ानून को अनुमोदित किया गया था। जैसा कि मैं अपनी टिप्पणी में पहले ही बता चुका हूं कि उक्त अधिनियम पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर 9 जून, 2000 को हुए और वह 17 अक्तूबर को लागू हुआ। समाचार में यह कहा गया है कि पुलिस को आशा थी कि नए कानून के लागू होने के बाद वह उसका इस्तेमाल कर सकेगी। लेकिन उक्त मामले में ऐसा नहीं हो पाया होगा। उस मामले में बगैर सोचे-समझे कार्रवाई करने के लिए पुलिस की किरकिरी भी हुई थी।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-85591269979991343392007-04-30T23:42:00.000+05:302007-04-30T23:42:00.000+05:30सृजन उत्तर स्वरूप केवल तथ्य सुधार वाले हिस्से ...सृजन उत्तर स्वरूप केवल तथ्य सुधार वाले हिस्से पर कहना है। आप शायद IT एक्ट के आधार पर हुई गिरफ्तारी को ही साइबर अपराध मान रह हैं। लेख उससे पहले के कानूनों के आधार पर साइबर अपराध के विषय में है।<BR/>वैसे कानून के मामले में किसी की हिम्मत नहीं कि बिना आपकी जानकारी के अंदर बाहर हो सके पर फिर भी नीचे का लिंक उस समाचार की पूरी जानकारी दे पाएगा जो मेरे इस लेख का आधार बना था। समाचार किसी पिछले IT कानून की भी बात करता है जिसमें आपकी रुचि हो शायद। <BR/><A HERF="http://news.bbc.co.uk/1/hi/world/south_asia/773025.stm">http://news.bbc.co.uk/1/hi/world/south_asia/773025.stm </A>मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-617110084486865382007-04-30T23:15:00.000+05:302007-04-30T23:15:00.000+05:30"भई कानून क्या कहते हैं, इस पर हमें कुछ नहीं कहना...<I>"भई कानून क्या कहते हैं, इस पर हमें कुछ नहीं कहना... सिवाय इसके कि हम नहीं मानते कि वे जो कहते हैं सब ठीक कहते हैं।"</I><BR/><BR/>बंधुवर, आप किसी क़ानून को ठीक मानें या न मानें उससे क़ानून को कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन क़ानून के शिकंजे में एक बार फंस जाने के बाद हर किसी को बहुत फर्क पड़ता है। <BR/><BR/>आपका यह पुनर्प्रकाशित लेख भले ही आईटी एक्ट के अस्तित्व में आने से पहले लिखा गया हो, लेकिन वर्तमान पोस्ट में आपका आशय यह झलकता है कि सायबर अपराधों के बारे में क़ानून की सजगता और सक्रियता गैर-जरूरी है। यदि आप वाकई ऐसा समझते हैं तो हो सकता है कि आने वाले समय में कभी आपको ऐसे क़ानून की प्रासंगिकता का अहसास हो जाए।<BR/><BR/><I>"अब इसके प्रकाशन से किसी ससुरे न्यायधीश की बेइज्जती होती हो तो हो।"</I><BR/><BR/>न्यायाधीश शब्द के साथ 'ससुरे' लगाना आपका मोहल्लाकरण ही करता है। <BR/><BR/>पहले वाली मेरी टिप्पणी में एक तथ्यात्मक त्रुटि को सुधार कर इस प्रकार पढ़ें-- पहले सायबर अपराधी आरिफ़ आजिम की <B>गिरफ्तारी</B> 24 जुलाई, 2002 को हुई और उस मामले में दोषसिद्धि (conviction) फरवरी, 2003 में हो पाई। <BR/><BR/><I>हालिया प्रकरण में गंभीरता के स्थान पर आपका जो मोहल्लाकरण हुआ है परिणामत: आप एक हैडलाइन वैल्यू के उत्पाद हो गए हैं मैं जाहिर है उसलिए आपको शीर्षक में ले आया...</I><BR/><BR/>जो तथाकथित शरीफ लोग सरेआम अपराध होने पर तटस्थ बने रहते हों, वे आपराधिक प्रवृत्तियों पर लगाम कसने के प्रयासों को इसी तरह देखा करते हैं। ऐसे तथाकथित शरीफ, संभ्रांत और तटस्थ लोगों के लिए मेरे मन में आदर कभी नहीं रहा। मोहल्लाकरण से मेरी छवि को कोई परेशानी नहीं है। आप शौक से हिट बटोरें उसका इस्तेमाल करके।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-10008161803975872472007-04-30T20:04:00.001+05:302007-04-30T20:04:00.001+05:30नहीं जी ये आतंक के कारण नहीं है...इतने समय से आप च...नहीं जी ये आतंक के कारण नहीं है...इतने समय से आप चिट्ठाकारी में हैं भांप ही गए होंगे कि दरअसल हालिया प्रकरण में गंभीरता के स्थान पर आपका जो मोहल्लाकरण हुआ है परिणामत: आप एक हैडलाइन वैल्यू के उत्पाद हो गए हैं मैं जाहिर है उसलिए आपको शीर्षक में ले आया...आशा है आप बुरा नहीं मानेंगे :)<BR/>किंतु ऐसा आऊट आफ कांटेक्स्ट भी आप पर चर्चा नहीं कर रहा था। देखो न आपने कहा-<BR/><BR/>'...आपके लेख से तो ऐसा जाहिर होता है कि ये क़ानून होरी की तरह मासूम बेचारे सायबर अपराधियों को ही अपने शिकंजे में जकड़ने के लिए बनाया गया हो।..' <BR/><BR/>अब यदि ये लेख 'इस' कानून से कहीं पहले लिखा गया तो भला ऐसा कैसे हो सकता है कि ये इस कानून को संबोधित कर रहा हो। <BR/>लेख साफतौर पर उन लोगों को संबोधित करता है जो कानून या नैतिकता या इस तरह की संरचनाओं पर किसी किस्म के शक के खिलाफ पोजीशन लेते हैं...नए युग में सबकुछ संदिग्ध है जो समझे बिना हाय मेरा संविधान, हाय मेरा कानून, हाय मेरा देश...रोता रहेगा, वह 'मरजाद' के लिए मिटने वाला होरी है...उसके प्रति हमारी हार्दिक संवेदनाएं।<BR/><BR/>प्यारी सी नई ब्लॉगर नीरिजा, आपका स्वागत है। इस औघड़ की सलाह से छोटी बहन का मार्गदर्शन कर क्यों उस नन्हीं जान के साथ अन्याय करती हो। नहीं मानती तो...हमारा डिप्लोमा या ए.एम.आई.ई. या आपकी बीटेक या पुन: हमारी पीएच.डी. ये सब कागज के कुछ टुकड़े हैं सभी समय की बरबादी हैं जैसा आपने कहा/किया। शब्द शायद एकमात्र अमर्त्य तत्व हैं वे भी 'शायद'<BR/><BR/>रही इन डिग्रियों पर हमारी समझ तो <A HERF="http://masijeevi.blogspot.com/2007/02/blog-post_18.html">यहॉं </A> कह चुके हैं<BR/><BR/>और हॉं नाम और लेख आप नहीं समझ पाईं, इसके लिए अपना दोष स्वीकार कर लेता हूँ। :)मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-51954145314008693122007-04-30T20:04:00.000+05:302007-04-30T20:04:00.000+05:30लगता है सृजनशिल्पी हर सवाल का जवाब तैयार रखते हैं....लगता है सृजनशिल्पी हर सवाल का जवाब तैयार रखते हैं.. या कम से कम उसका तोड़ ज़रूर रखते हैं..Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-74180836787526666432007-04-30T19:33:00.000+05:302007-04-30T19:33:00.000+05:30मसिजीवी जी आपके लेख से तो पता ही नही चलता कि आप कह...मसिजीवी जी आपके लेख से तो पता ही नही चलता कि आप कहना क्या चाह रहे है बडी अजीब सी बात है वैसे अजीब बात तो आपके नाम के साथ भी है मै समझ नही पाई वैसे भारत आजाद है आप कुछ भी लिख सकते है ये कौन सा सरकारी पौलीटैकनिक है जहा से आप इलेक्ट्रिकल इन्जीनियर के रुप मे ट्रेन्ड हुये थे आप बुरा न माने दर असल मैने डिप्लोमा के बाद इन्जीनियर बनने के लिये फ़िर से B.Tech.कर डाला गर मुझे पता होता तो मै भी आप वाले पौलीटैक्निक से इन्जीनियर बन जाती ,न पैसे खराब होते न समय बताईयेगा जरुर अब मै अपनी छोटी बहन के लिये पूछ रही हूनीरिजाhttps://www.blogger.com/profile/13853859524149004315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-83382410628420298422007-04-30T17:15:00.000+05:302007-04-30T17:15:00.000+05:30मसिजीवी जी,आप इतने आतंकित क्यों हैं कि शीर्षक में ...मसिजीवी जी,<BR/><BR/>आप इतने आतंकित क्यों हैं कि शीर्षक में ही डिस्क्लेमर लगाने को मजबूर है!<BR/><BR/>लेख जबरदस्त है। सायबर अपराधों के शुरुआती दौर में ही इसके सामाजिक-आर्थिक पहलुओं का साहित्यिक विवेचन बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन आपने भारत के जिन पहले और दूसरे सायबर अपराधों का जिक्र किया है वे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अस्तित्व में आने से पहले दर्ज किए गए थे और पुलिस को सायबर अपराधों की परिभाषा और उसके दायरे का क़ानूनी ज्ञान तब नहीं रहा था। क्योंकि उक्त अधिनियम पर 9 जून, 2000 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हुए थे और 17 अक्तूबर, 2000 को भारत सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचना जारी होने के बाद उसी दिन से वह लागू हुआ था। जबकि आपका आलेख 29 जून, 2000 को ही प्रकाशित हुआ। इसका अर्थ है कि अपराध उससे कुछ समय पहले घटित हुआ होगा और संभवतया संबंधित क़ानून बनने के अस्तित्व में आने से पहले ही एफआईआर दर्ज हो चुका होगा। मेरा अनुमान है कि ऐसी स्थिति में उक्त अपराध भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत दर्ज हुआ होगा। ऐसी स्थिति में पुलिस से गफ़लत होना स्वाभाविक है। <BR/><BR/>जैसा कि मैंने अपने लेख में उल्लेख किया है, आधिकारिक रूप से ऐसा माना जाता है कि आईटी एक्ट के अस्तित्व में आने के बाद पहले सायबर अपराधी आरिफ़ आजिम की दोषसिद्धि 24 जुलाई, 2002 को हो पाई और वह मामला दूसरे के क्रेडिट कार्ड से ऑनलाइन खरीदारी का था। हालांकि इस मामले में भी भारतीय दंड संहिता की धारा 418, 419 और 420 के तहत ही मामला दर्ज हुआ था।<BR/><BR/>आपके लेख से तो ऐसा जाहिर होता है कि ये क़ानून होरी की तरह मासूम बेचारे सायबर अपराधियों को ही अपने शिकंजे में जकड़ने के लिए बनाया गया हो। क़ानून बनाने वालों और उनका पालन करवाने वालों की योग्यता पर तो संदेह किया जा सकता है कि वे टेक्नोलॉजी की रफ्तार से काफी पीछे रहते हैं, लेकिन उनकी नीयत पर शक करना किस हद तक उचित है! आखिर, किसी नागरिक द्वारा शिकायत किए जाने के बाद ही पुलिस क़ानूनी प्रावधानों के तहत कार्रवाई करती है। आप अपराधी के प्रति होने वाले कथित अन्याय के प्रति तो अतिरिक्त रूप से संवेदनशील हैं, लेकिन पीड़ित को हुए नुकसान के प्रति वैसी संवेदनशीलता आपकी बातों में दिखाई नहीं देती।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com