Friday, April 20, 2007

चिट्ठाकारी पर एक और लेख- आज दैनिक भास्‍कर में

आज दैनिक भास्‍कर में चिट्ठाकारी पर एक परिचयात्‍मक लेख प्रकाशित हुआ है। एक नजर डालें- कमी बेसी हो तो हमें बताएं






वैसे पूरा लेख निम्‍नवत है-


हम ब्‍लॉगिए हैं, हमारे चिट्ठे पर पधारो सा



हिंदी की चिट्ठाकारिता ने अपने पाँव अब पालने से बाहर निकाल लिए हैं और वह अब सही मायने में अपने पाँवों पर खड़ी है। सूचना तकनीक का सबसे मूर्तिमान रूप इंटरनेट है। और इंटरनेट पर हिंदी की मौजूदगी का सबसे अहम हिस्‍सा है हिंदी ब्‍लॉग जिनके लिए वहॉं चिट्ठे शब्‍द का इस्‍तेमाल होता है। ब्‍लॉग ‘बेवलॉग’ का संक्षिप्‍त रूप है जो एक व्‍यक्तिगत बेवसाईट होती है। ब्‍लॉग करने वाले ब्‍लॉगर कहलाते हैं तथा ब्‍लॉगलेखन ही ब्‍लॉगिंग कहलाता है। हिंदी में इनके लिए क्रमश: चिट्ठाकार व चिट्ठाकारिता शब्‍दों का इस्‍तेमाल किया जाता है। अंग्रेजी में चिट्ठाकारी की शुरूआत 1997 में डेव वाइनर के ब्‍लॉग ‘स्क्रिप्टिंग न्‍यूज’ से हुई। जबकि हिंदी में चिट्ठाकारी की शुरूआत 2003 में हुई जब आलोक ने अपना चिट्ठा “नौ दो ग्यारह” शुरू किया फिर धीरे धीरे पद्मजा, जितेंद्र, रवि रतलामी, पंकज, अनूप, देवाशीष आदि चिट्ठाकार जुड़ते गए और कारवां बनता गया। आज हिंदी में 500 से अधिक चिट्ठे हैं जिनमें से बहुत से बेहद सक्रिय हैं।

चिट्ठाकारी हिंदी की दुनिया की एक अहम परिघटना है। ये चिट्ठे जो अकसर चिट्ठेकार ने बेहद अनौपचारिक व अनगढ़ता के साथ अपने आस- पास के विषयों पर या देश-दुनिया की घटनाओं पर लिखें होते हैं, वे सार्वजनिक दुनिया में आम भारतीय की राय की नुमाइंदगी करते हैं। इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय का मुसलमानों के अल्‍पसंख्‍यक होने को लेकर हुआ फैसला हो या राहुल गांधी के बयान या कुछ और....इनपर आम देशवासी की राय जानने का एक आसान तरीका है कि नारद ( http://narad.akshargram.com/ ) पर जाएं और देखें कि आम देशवासी जिनमें साईबर कैफे चलाने वाले सागरचंद नाहर हैं, सरकारी अफसर अनूप हैं, अध्‍यापिका घुघुती बासुती हैं, गृहिणियाँ, विद्यार्थी और तमाम काम करने वाले लोग हैं उन्‍होंने अपने चिट्ठों पर इन विषयों पर क्‍या लिखा है। ये सैकड़ों चिट्ठाकार अपने चिट्ठों पर इन विषयों पर अपनी बेबाक राय देते हैं- ये राय किसी संपादक की मेज से नहीं गुजरती, किसी सेंसर बोर्ड की कैंची का शिकार नहीं होती, एकदम खुली बिंदास राय सबके सामने सबके लिए। यही नहीं आप इस राय पर इतनी ही खुली प्रतिक्रिया तुरंत दे सकते हैं। यह राय मशवरे का एकदम लोकतांत्रिक रूप है।
चिट्ठाकारी के इसी खुलेपन के कारण इसे दुनिया भर के सबसे ताकतवर मीडिया रूप के में पहचाना जा रहा है। आज के दिन तक दुनिया में कम से कम साढ़े सात करोड़ चिट्ठे हैं (स्रोत – टैक्‍नाराटी) और ये केवल अंग्रेजी में नहीं है वरन जापानी, रूसी, फ्रेंच स्‍पेनिश में ही नहीं वरन फारसी, हिंदी, मलयालम, मराठी, बंगाली आदि दुनिया की बहुत सी भाषाओं मे चिट्ठेकारी हो रही है। दरअसल ये आम गलतफहमी है कि इंटरनेट की भाषा अंग्रेजी है क्‍योंकि सच्‍चाई तो यह है कि दुनियाभर की चिट्ठासामग्री का केवल 30% ही अंग्रेजी में है। हिंदी चिट्ठाकारी ने देवनागरी लिपि को इस्‍तेमाल करने की शुरुआती दिक्‍कतों की वजह से धीमी गति से अपना सुर शुरू किया था लेकिन अब इसने भी रफ्तार पकड़ ली है।
हिंदी चिट्ठाकारी के इस द्रुत विकास का श्रेय जहाँ कुछ पुराने चिट्ठेकारों को जाता है जिन्‍होनें हिंदी में लिखने ओर पढ़ने की तमाम तकनीकी दिक्‍कतों को दूर करने में बहुत सा समय और ऊर्जा खर्च की। वहीं हिंदी चिट्ठाकारी को अपने पैरों पर खड़ा करने में नारद और अक्षरग्राम ने भी सबसे अहम भूमिका अदा की है। नारद दरअसल एक फीड एग्रीगेटर है जिसका मतलब यह है कि उपलब्‍ध हिंदी चिट्ठों पर जैसे ही कोई नई सामग्री आती है यह उसकी सूचना दर्शा देता है। इच्‍छुक चिट्ठाकार इस चिट्ठे पर जाकर टिप्‍पणियों के माध्‍यम से लेखक का उत्‍साहवर्धन करते हैं, गलतियों के विषय में सुझाव देते हैं। इससे सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि इसने हिंदी चिट्ठाकारों का एक जीवंत समुदाय खड़ा किया है जिसके सदस्‍य एक दूसरे का साथ देने के लिए तत्‍पर रहते हैं। नारद के अलावा इंटरनेट पर हिंदी के परवानों ने सर्वज्ञ व परिचर्चा जैसे मंच भी खड़े किए हैं जो हिंदी को इंटरनेट की समर्थ भाषा के रूप में खड़े करने की दिशा में मील का पत्‍थर हैं। सवर्ज्ञ जहाँ एक हिंदी का विकी-एनसाईक्‍लोपीडिया है जो किसी भी विषय पर हिंदी में सामग्री मुहैया कराता है वहीं परिचर्चा हिंदी में वाद- संवाद का एक मंच है।

आज न केवल बहुत से चिट्ठाकार लिख रहे हैं वरन वे लिखने के लिए दुनिया जहान के विषयों को चुन रहे हैं। कनाडा में रह रहे एकाउटेंट समीर व्‍यंग्‍य लिखना पसंद करते हैं तो इटली में बसे डाक्‍टर सुनील दीपक को कला और संस्‍कृति पर कीबोर्ड चलाना भाता है, हैदराबाद के वैज्ञानिक व कवि लाल्‍टू सामाजिक बदलाव की अलख के लिए चिट्ठाकारी करते हैं, मनीषा सरकारी कर्मचारियों के लिए ब्‍लॉग चलाती हैं जिसमें वेतन आयोग से संबंधित समाचार व अफवाहें होती हैं, साहित्यिक व पत्रकारी विषयों पर लिखने वालों की तो खैर एक लंबी कतार है हिंदी चिट्ठाकारी में। एन डी टी वी के पत्रकार अविनाश ने तो मोहल्‍ला नाम से चिट्ठा शुरू ही किया है पत्रकारों और विशेषज्ञों से लिखवाने के लिए। राजेंद्र यादव का तुलसी विरोधी लेख हाल में उन्‍होंनें मोहल्‍ले में छापा है और यदि एक बार राजेंद्रजी को मिली टिप्‍पणियों पर नजर डाल ली जाए तो सहज ही समझ आ जाता है कि चिट्ठाकारिता के बिंदासपन का क्‍या मतलब है। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि समाचार, व्‍यंग्‍य, तकनीकी विषय, साहित्‍य, खेल, स्‍त्री हित के विषय आदि सभी क्षेत्रों में लेखन अब हिंदी चिट्ठाकारी में हो रहा है।
जो आजाद खयाली और आजाद तबियत इस चिट्ठाकारी की सबसे अहम खासियत है वही इसे जटिल परिघटना बना देती है। लोगों की आपसी आजादी और अहम अक्‍सर टकराते रहते हैं और नित नए विवाद चिट्ठाकारिता में खड़े होते रहते हैं। हाल की हिंदी चिट्ठाकारी में ऐसे कई विवाद खड़े हुए। हिंदू व मुसलमान पहचान के सवाल पर हुआ तीखा ‘इरफान विवाद’ फिर इंटरनेट पर पहचान के सवाल पर ‘मुखौटा विवाद’ हुआ। ‘मोहल्‍ला विवाद’, ‘बेनाम टिप्‍पणी विवाद’ अन्‍य कुछ विवाद हैं लेकिन ये सब विवाद अपनी जगह हैं और यह बात अपनी जगह कि चिट्ठाकारिता इन विवादों से मजबूत होकर उभरती रही है। यही नहीं चिट्ठाकारी ने अपनी आजाद तबियत के ही हिसाब से अपनी भाषा और मुहावरे भी खुद गड़े हैं- शिक्षित समाज की टकसाली हिंदी को चिट्ठाकारी में आभिजात्‍यपूर्ण मानकर छोड़ दिया जाता है और अखबारी भाषा को भी औपचारिकता से भरा हुआ मानकर उसमें जरूरी वदलाव किए जाते हैं और एक अनौपचारिक भदेस भाषा और अनगढ़ शैली वहॉं पसंद की जाती है जो स्‍माइलियों [:)] से होती है। आम चिट्ठाकारी जुमला यह है कि अखबार पढ़ा जाता है और चिट्ठा बांचा जाता है इसीलिए अखबार में लिखा जाता है जबकि चिट्ठे में पोस्टियाना होता है। तो भाई लोगन आप समझ सकते हैं कि हम जैसे ब्‍लॉगिए को अखबार के लिए लिखने में कितना कष्ट हुआ होगा। अगर सही में हमें बांचना चाहें तो हमारे चिट्ठे पर पधारो सा।

19 comments:

  1. शायद अभी तक का सबसे बेहतर लेख..

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  2. Anonymous10:06 AM

    आपने अच्छा लिखा है , मसिजीवीजी।

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  3. इसे सारगर्भित लेख भी कहा जा सकता है तो कहीं सिकुड़ा हुआ तो कहीं फैला हुआ भी। वैसे जो काम नारद करता है वही काम हिन्दी-ब्लॉग्स भी करता है। या यूँ कहें कि नारद तो ब्लॉगस्पॉट के ब्लॉगों की झलकियाँ दिखाता भी नहीं जबकि हिन्दी-ब्लॉग्स दिखाता है, मगर पता नहीं सारे अंतरलेखक लगता है नारदवादी हैं, इसीलिए प्रायः मात्र नारद की चर्चा करते हैं। कहीं इसका कारण यह तो नहीं है कि नारद को आरंभक के रूप में देखने के कारण यह स्नेह उमड़ता है? जो भी हो अभय तिवारी जी की राय फिर भी ठीक लगती है। बधाई!!!

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  4. पहिले बताए होते तो हमहुं दौड़ गये होते अखवार लेने और पोस्टिया देते कि हम अखवार पाये की ना. खैर कोनो बात नहीं ..अगली बार इस बन्धू को खयाल रखियो..वीसे बढ़िया लिखो हो...उ हमार बिटवा कहे है ना..एकदम धाँसू..

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  5. एक लेख में आपने हिन्दी चिट्ठाजगत को बखूबी समेट दिया.आशा है इसको पढकर और लोग भी हिन्दी चिट्ठाकरिता की ओर आकर्षित होंगे.विषयों और चिट्ठाकारों की विविधता से हिन्दी चिट्ठाकरिता को नये आयाम मिलेंगे .बधाई.

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  6. अच्छा लेख है, यहाँ दिखाने के लिए धन्यवाद । वैसे मैं गृहणी अधिक अध्यापिका कम हूँ । मैं पार्ट टाइम व अवैतनिक रूप से यह करती हूँ । मुझे अध्यापन बहुत पसन्द है और अध्यापिका कहलाने में कोई आपत्ति नहीं है । यहाँ केवल इसलिए बता रही हूँ कि बात साफ करना बेहतर है, अन्यथा पाखन्डी लगूँगी ।
    घुघूती बासूती

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  7. बढ़िया आलेख. बधाई हो.

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  8. Anonymous8:04 PM

    अच्छा लेख ।
    घुघूती बसूती जी की साफगोई भी अच्छी लगी।

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  9. बडिया लेख है। बधाई!
    अखबार तो मिला नही। यहा पर ही पड लिया । यही तो खूबी है इंटरनेट की। हसन जमाल को कोई समझाए भला!

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  10. हिन्दी चिट्ठाजगत पर एक सरसरी नजर डालता अच्छा लेख। स्कैन की हुई इमेज पढ़ने में नहीं आ रही, ठीक से स्कैन नहीं की गई/हुई क्योंकि इससे बड़ी इमेजें पढ़ी जा सकती हैं।

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  11. @शैलेष भारतवासी,
    निसंदेह हिन्दीब्लॉग्स.कॉम एक अच्छा फीड एग्रीगेटर है पर नारद से बेहतर नहीं। इसे एक व्यक्ति चलाता है जबकि नारद को पूरी टीम जिस कारण नारद बेहतर बनता है। दूसरी बात नारद के पास संसाधन भी ज्यादा हैं। बाकी इसमें पक्षपात वाली कोई बात नहीं कई पत्रों में बाकायदा इसका भी उल्लेख होता है। खुद प्रतीक भाई बता चुके हैं कि जीतू भाई ने उन्हें एक समय हिन्दीब्लॉग्स.कॉम बंद न करने के लिए प्रेरित किया था।

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  12. अभय, अफलातून, पूनम, समीर, जगदीश, सुजाता शुक्रिया लेख पसंद करने के लिए। वैसे साफ कर दूँ कि लेख गैर चिट्ठाकारों को ही संबोधित था इसलिए हमें बातें काफी सरसरी लग सकती हैं।
    शैलेश मुझे आपकी आपत्ति बहुत प्रिय लग रही है वह दिन वाकई बहुत खुशी का होगा जब हमारे पास अनेक नारद हों जो विशाल हिंदी चिट्ठाजगत की सेवा कर रहे हों। जहॉं तक नारदवादी होने की बात है....शायद कोई छिपा अतीत मोह हो पर अब तक तो हमें हिंदी चिट्ठाकारी के लिए नारद अपरिहार्य लगता है। हिंदी ब्‍लॉगस की अपनी भूमिका है। काश और कुछ एग्रीगेटर भी हों।

    घुघुती जी, देखा हमें फिर शिक्षा मिली आपसे तो आप शिक्षिका ही हैं, यूँ भी आपके शिक्षिका होने की सूचना हमें सृजन ने दी थी चिट्ठाकार मीट में उस पर विश्‍वास न करने कोई कारण नहीं है, वे सूचना के मामले में बड़े उद्यमी चिट्ठाकार हैं।
    धन्‍यवाद श्रीश, हमारे पास तो स्‍कैनर है ही नहीं, ये भास्‍कर की साईट से कोरेल कैप्‍चर से लिया गया है. सुजाता वाला लेख बड़ा था और उसे 5-6 टुकड़ों में स्‍कैन कराकर जोड़ा था जो 20 एमबी की फाइल बन गई थी फिर छोटा करना पड़ा था। यह लेख यदि काम का लगे तो कृपया सवर्ज्ञ पर इस्‍तेमाल कर लें।

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  13. @श्रीश जी

    मैं नारद या नारद की टीम पर अश्रद्धा का भाव नहीं रख रहा हूँ, बल्कि यह कह रहा हूँ कि हिन्दी-ब्लॉग्स में कुछ खूबियाँ भी हैं जो नारद में नहीं हैं। मैंने एक बार इस विषय पर जीतू जी से चैट भी किया था तह उन्होंने कहा था कि 'भाई यह ब्लॉगस्पॉट की प्रॉब्लम है, हम कुछ नहीं कर सकते'। सच बताऊँ, उस समय तक मैं हिन्दी-ब्लॉग्स पर कभी गया भी नहीं था क्योंकि मैं भी ऑर्थोडॉक्स टाइप का व्यक्ति हूँ जबकि 'चिट्ठाकार' गूगल समूह पर नारद में समस्या आ जाने पर प्रतीक भाई के प्रयास के बारे में पढ़ता रहता था। मगर जब एक बार गया तो देखा कि एक ब्लॉगस्पाट के ब्लॉग का भी प्रीवीयू वहाँ दिख रहा है। मुझे लगा यह कोई ख़ास चिट्ठा होगा। इस चिट्ठे का मालिक तकनीकविद् होगा, अपने चिट्ठे में कुछ ख‌़ास हेर-फेर कर रखा होगा, मतलब मुझे उस समय भी जीतू जी पर भरोसा था। फिर मैंने प्रयोगार्थ अपने चिट्ठे 'मेरी कविताएँ' पर एक पोस्ट किया, वहाँ जाकर देखा तो दिख रहा था। आपलोग ब्लॉगस्पाट के चिट्ठों के साथ ऐसा क्यों नहीं कर पा रहे हैं?

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  14. इस लेख में मेरे बारे में भी उल्लेख है, जान कर खुशी हुई। मीडिया में हाल ही में हिंदी चिठ्ठाकरी पर छपने वाले लेखों में यह संतुलित रुप से परिचय कराता जान पड़ता है। लेखक को अच्छे लेख पर बधाई।

    मसीजीवी जी को भी इस लेख को पूरा का पूरा उपलब्ध कराने पर धन्यवाद।

    मनीषा
    http://hindibaat.blogspot.com

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  15. अच्छा लेख है। इसके लिए बहुत बहुत बधाई।

    लेकिन कुछ भूल सुधार की गुंजाइश है हिन्दी चिट्ठाकारी का इतिहास (तिथिवार) यहाँ है:

    http://www.akshargram.com/sarvagya/index.php/History_of_Hindi_Blogging

    स्पष्टीकरण:
    मै हिन्दी ब्लॉगिंग मे आलोक, विनय, देबाशीष,पंकज नरुला, रवि रतलामी, अतुल अरोरा, अनूप शुक्ला और रमण कौल के बाद आया था। अलबत्ता एक्टिव ज्यादा हूँ, इसलिए लोग कभी कभी लिखने मे भूल कर जाते है। आशा है आगे के लेखों के इन महानुभावों का उल्लेख मेरे नाम के पहले होगा।

    धन्यवाद!

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  16. ऊपर लिखा लिंक अधूरा रह गया है- सही लिंक है
     
    http://www.akshargram.com/sarvagya/index.php/History_of_Hindi_Blogging

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  17. मसिजीवी जी सर्वज्ञ पर ऐसे सभी लेखों का लिंक दिया है। इस पेज पर देखें। आपका लेख भी उसमें जोड़ता हूँ।

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  18. बहुत बढ़िया लेख!!

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  19. ब्लागिंग तो शुरू कर दी पर इसके बारे में जितना आपके लेख ने बताया वह सब नहीं जानता था। आभारी हूं। बधाई।

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