Thursday, July 19, 2007

आज इश्‍क पर लिखा जाए

नहीं बस यही नहीं हो सकता... भला कौन भलामानुष ये मानेगा कि हम तक इश्‍क पर लिखने की जुर्रत कर सकते हैं :)   वैसे कुछ परिचित जिन्‍हें ये भ्रम हो जाता है कि वे हमें जानते हैं कतई मानने को तैयार नहीं कि हम कभी इश्‍‍क पर विचार कर सकते हैं। हम उनकी राय पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करते, कोई फायदा भी नहीं। पढ़ाने में हमें शुष्‍क विषय पसंद आते हैं- यानि रीतिकाल की जगह साहित्‍येतिहास पढ़ाना पसंद करते हैं- पत्रकारिता, शिक्षण, भाषा विज्ञान जैसे कम रागात्‍मक विषयों को ही चुनते हैं अगर अवसर हो तो। हमें नाचना नही आता... लेकिन पिछले साल जब कॉलेज के बच्‍चों के साथ पिकनिक पर गए तो लगा कि बच्‍चे कुछ कुछ बोर हो रहे हैं तो हमने खुद ही नाचना शुरू किया - बेचारे बच्‍चे... ये नाच बारात में शराबियों के नाच से अच्‍छा कतई नहीं रहा होगा पर इससे हालात इतने मनोरंजक जरूर बन गए कि पिकनिक सज गई और इसके बाद तो सभी थोड़ा बहुत नाचे ही। बच्‍चों के खिलाफ हमने वही रणनीति अपनाई जिसकी घोषणा अफगानिस्‍तान के खिलाफ बुश ने की थी- यानि हैरान करके मारो। 

तो यहॉं भी हम  हैरान करने भर के लिए इश्‍क पर लिखना चाह रहे हैं, होगा यह बारात में शराबियों की ही तरह बे-ताल। पर इतना भी हमारी समझ में आ गया है कि  जो स-ताल प्रेम पर लिखते बोलते रहे हैं वे भी इसे उतना ही समझ पाते होंगे जितना हम...एकाध रत्‍ती कम ज्‍यादा मान लो। तो इश्‍क क्‍या है ? सही जबाव है.... हमें नही पता ... पर फिर भी लगता है कि ये जो भी हे वो तो नहीं ही है जिसे समझा गया है- यूं ही हमारी समझदानी छोटी है इसलिए प्रेम को ज्‍यादा 'समझने' की कोशिश हमने की नहीं। हम तो मेलनी की ही तरह मानते हैं कि यह तो एक रहस्‍य है जिसे रहस्‍य ही बने रहना चाहिए-

 " आई एम डिसाइडिंग छैट दी मिस्‍टरीज आफ दिस यूनीवर्स कैन औनली बी पार्टिसिपेटिड इन, नॉट साल्‍व्‍ड ओर एक्‍सप्‍लेन्‍ड. एंड ओनेस्‍टली ब्‍हाट इफ वन डे यू अंडास्‍टुड ऐवरीथिंग. एज्‍यूमिंग दैट यूअर हैड वुडंट एक्‍सप्‍लोड - हाऊ इंटरेस्टिंग डू यू थिंक लाइफ वुड बी विदाऊट दी मिस्‍टरी आफ इट"  

यानि इश्‍क वह रहस्‍य है जिसे जानने की कोशिश की तो डूबे और अगर बिना जाने डूबे तो सही मायने में तैर पाओगे- कबीर ने भी तो यही कहा न।

13 comments:

  1. कहते हैं इश्‍क नाम के हुए हैं एक बुजुर्ग ।
    हम लोग भी फकीर उसी सिलसिले के हैं ।।

    इश्‍क़ ने निकम्‍मा कर दिया ग़ालिब
    वरना हम भी आदमी थे काम के

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  2. हुश्‍न है हुश्‍न..
    बेखबर सबसे
    इश्‍क कौंधे तो...
    कुछ दिखायी दे
    वैसे हेड एक्‍सप्‍लोड हो जाये तो मर्तबे में कोई खामी पैदा हो जायेगी, मसिजीवी साहब।

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  3. हुजूर
    प्रेम करना इत्ता हार्ड हो गया है
    बाजार में सौ रूपये का एक आई लव यू वैलंटाइन कार्ड हो गया है

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  4. नही जी आप बिलकुल लिखे,कौन रोक सकता है,हमे बताये,हम आपके साथ है,आप्के घर के द्वार तक,अंदर होने वाली किसी भी दुर्घटना के लिये हम आपके साथ शामिल नही है,चाहे तो सारी इश्क गाथाये लिख कर हमे मेल करदे हम पंगेबाज पर श्रखंला छाप देगे,और सावधानी वश कुछ दिन दिल्ली का रुख नही करेगे,
    ये लिखना नही आसा
    बस इतना समझ लीजे,
    जरा भनक गर लग गई
    जूत पतरम शीश मध्यम
    हो जाना है...? :)

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  5. समझ सके ना लोग सयाने,
    इश्क़ का रुतबा इश्क़ ही जाने।

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  6. ye shrish massaab kahaa cale aaye aur sher bhI sunaa rahe hai lagataa hai is saradI me puri taiyyaari hai dhol bajaanekI;)

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  7. शिरीष मास्‍साब, आप शेर भी सुनाने लगे । अब हमें समझ में आया कि आजकल भुलक्‍कड़ी क्‍यों सवार है, शादी में हमें ज़रूर बुलाना मास्‍साब

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  8. Anonymous10:03 PM

    अरे आप भूमिका ही बांधते रह गये। प्रेम-श्रेम के बारे में कुछ लिखा ही नहीं। आगे लिखिये न!टिपस के लिये हमारा लेख देख लें- प्रेम गली अति सांकरी।http://fursatiya.blogspot.com/2005/01/blog-post_12.html#comments

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  9. वो भी क्या दिन थे,यूँ इश्क किया करते थे,
    उसी बात पे जीते थे, उसी बात पे मरते थे

    लोगों ने कहा पागल, दीवानों सी हालात थी
    उसी चाह पे रोते थे, उसी चाह पे हँसते थे.

    देखें जो अदा उसकी, एक टीस से उठती थी
    उसी आह में सोते थे,उसी आह में जगते थे.

    हँसने में भी उसके , पायल सी छनकती थी
    उसी राग में गाते थे, उसी राग में लिखते थे.

    भीनी सी वो खुशबु, पता उसका बताती थी
    उसी राह पे रुकते थे, उसी राह पे चलते थे.

    --समीर लाल 'समीर'

    ---आह्ह्ह!!! क्या याद दिला दिया भाई!

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  10. इश्क के बारे में जानने को आए थे लेकिन समीर जी की गजल के साथ टिप्पणीयॊं को पढ़ ने का मजा भी मिल गया ।
    सही लिखा है-" इश्‍क वह रहस्‍य है जिसे जानने की कोशिश की तो डूबे और अगर बिना जाने डूबे तो सही मायने में तैर पाओगे"

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  11. प्रेम उन विषयों मे से एक है… जिस पर कयी लोगों ने कागज काले किये हऐं …। मसिजीवी जी, आपकी पोस्ट ने हमें भी अवसर दे दिया कुछ कहने को…।प्रेम के बारे में बात कर्ना बस ऐसा है, जैसे की किसी को स्वदिष्ट भोजन के बारे में बताना…आप चाहे भोजन की प्रशन्सा में कितने ही पुल बनयें, जब तक भोजन न किया, भोजन का आनन्द न लिया

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  12. Anonymous12:35 AM

    "जै हो नीली छतरी वाले की"

    भाई..... अइसन हैं कि....
    हम तो बहाना ढूंढ़ रहे थे कि कब लिखें इस विषय पर (आप के लिये)। वैसे भी हमने हमने इश्क के सिवा कुछ लिखा ही नहीं।

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  13. बडी देर से आये ,तुम्‍हारे दर पे हूजूर
    (बस अभी अभी सीखा है खडा होना)
    देखा तो मेला लगा है , कोई कम है ऐसा भ्रम लगा है
    वो मैं तो नहीं हो सकता , बता दो तुम्‍हें इन्‍तजार किसका है ।

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