Thursday, December 20, 2007

नंदीग्राम के कामरेड का बयान - पवन की एक कविता

ये कविता इस सप्‍ताह के रविवारीय जनसत्‍ता में प्रकाशित हुई है- छापे में अभी भी 'कैडर के लोगों' का जमावड़ा है इसलिए इस कविता का छपना हमें अच्‍छा लगा। सामान्‍यत: हम पर कविताई में लिप्‍त होने का आरोप नहीं लग पाता है (एकाध पर बहके हैं, पर लती नहीं ही हैं) इसलिए कविता का ब्‍लॉगपक्ष बता दें कि कैडरबद्ध पत्रकारिता के चलते कविता जनसत्‍ता के संपादकीय कार्यालय से अयोध्‍‍या से बाबरी की तरह 'गायब' हो गई और बाकायदा थानवीजी के हस्तक्षेप के बाद ही रोशनी में आ पाई-

पेश है कविता

नंदीग्राम के कामरेड का बयान

                                                                      - पवन

 

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6 comments:

  1. पवन जी बधाई । मसिजीवी , यहाँ प्रस्तुत करने के लिए आभार ।

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  2. वाह, बरसों बाद हिन्दी कविता में सच को इतने बेलाग, बेलौस ढंग से कहने की हिम्मत किसी ने की है।

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  3. मार्क्‍सवादी बर्बरता और नंदीग्राम के सच को बयां करती इस कविता के रचयिता पवन और ब्‍लॉग पर इसके प्रस्‍तुतकर्ता मसिजीवी बधाई के पात्र है।

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  4. कविता स्वयं ही सबकुछ कह जाती है, उसपर तो कुछ कह नहीं सकती । परन्तु अपने उन मित्रों, जो सोचते हैं समाजवाद, साम्यवाद जनता को बराबरी देगा , से कह सकती हूँ , बेलगाम सत्ता, ताकत जिसके भी हाथ में होगी उसकी आत्मा मर जाएगी व वह ऐसे ही जघन्य अपराध कर बच निकलेगा । सत्ता या शक्ति पाना सरल है परन्तु उसे अपने पर हावी ना होने देना कठिन है ।
    घुघूती बासूती

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  5. बढ़िया कविता। लंबे समय तक याद रखने वाली। अपना पुराना अखबार जनसत्ता, जहां से पत्रकारिता का मेरा नियमित सफर शुरू हुआ, अब अक्सर नहीं पढ़ पाता हूं। इस कविता को ब्लॉग पर डालकर हम सब तक पहुंचाने के लिए आपका धन्यवाद। जलेस, प्रलेस वाले आजकल कविताएं लिख रहे हैं या नहीं?

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  6. धन्यवाद भाई। कविता तो वह सब कुछ कहती है जिसे कई अखबारों ने बाकायदा दबा दिया। और अगर सच के इतना करीब और हकीकत बताती कविता वाकई जनसत्ता के संपादक थानवीजी के हस्तक्षेप से छपी है तो निश्चित रूप से सच को सामने लाने का यह प्रयास और सराहनीय है। कविता छपने की इस अन्तर्कथा ने यह साबित कर दिया है कि अभी भी हमारी पत्रकारिता साहस और सच की बदौलत चौथा स्तंभ का दर्जा हासिल किए हुए है। कविता को ब्लाग पर छापने के लिए मसिजीवी को शुक्रिया।

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