Tuesday, April 15, 2008

हिंदी ब्‍लॉगिंग के मूक बधिर महानुभावों से! आपको मंहगाई क्यों नहीं चुभती

वैसे लगें कितने भी, पर हम इतने बौढ़म हैं नहीं कि  इस बात पर अलबला जाएं कि आप इस बात से क्‍यों परेशान हो उस बात से क्‍यों नहीं। शीर्षक तो केवल अलबलाने की इस विरासत की ओर संकेत भर करने के लिए है। सच्‍चाई यह है कि हर किसी को अपने जूते की कील ही चुभती है और उसे शिद्दत से पता होता है कि क्‍यों चुभ रही है, कहॉं चुभ रही है। उसे कतई उम्‍मीद नहीं होनी चाहिए कि औरों को भी ठीक उसी बात से तकलीफ हो और उतनी ही। तो महँगाई मुझ मास्‍टर को चुभे तो समझ आता है। हर कोई उससे परेशान क्‍यों हो (ये अलग बात है कि हमें सरकार महँगाई भत्‍ता देती है पर हर किसी को तो नहीं)

महँगाई एक बहुत मोटी अवधारणा है जिससे व्‍यक्तिगत तकलीफों का कुछ अंदाजा नहीं लगता। महँगाई बढ़ गई है...सामान्‍य सा कथन। 20 प्रतिशत बढ़ गई है ये भी कोई विशिष्‍ट कथन नहीं है क्‍योंकि ये पचासियों चीजों की महँगाई वृद्धि का औसत भर है। इससे पता नहीं चलता कि चावल दो ही महीने में दोगुने से ज्‍यादा कीमत पर बिक रहा है तथा उसके लिए जिसकी कमाई का तीन-चौथाई चावल खरीदने में जाता हो उसके लिए यह सूचना मौत जैसी बुरी है।

आज के अखबार में न्‍यूयार्क के पॉल कुरुग्‍मन इसे विश्वव्‍‍यापी खाद्य संकट से जोड़ते हुए बताया है कि एशिया व अफ्रीका में भुखमरी है क्‍योंकि अमरीकी नेताओं को को कृ‍षि राज्‍यों में वोट चाहिए। इसके अतिरिक्‍त इस खाद्य संकट का कारण इराक युद्ध, ग्‍लोबल वार्मिंग व कृषि भूमि का सिकुड़ना है। सबसे बुरी बात ये है कि भविष्‍य में इसके कम होने की कोई उम्‍मीद नहीं है। और हॉं अगर किसी को लगता हो कि अनाज में इस भड़की हुई कीमतों से किसानों की आमदी बढेंगी तो अफसोस है कि ऐसा नहीं होगा उलटे किसान की लागत बढ़ रही है।

तो फिलहाल तो हमें ये दर्ज करना जरूरी जान पड़ता है कि हम मानते हैं कि ये महँगाई किसी भी आपदा कि तरह देश और दुनिया की ताकतवर शक्तियों की नीतियों व करतूतों का परिणाम हैं, पूरी तरह कृत्रिम है। मनमोहन और मोंटेक इसकी जबाबदेही से पल्‍ला नहीं झाड़ सकते।

14 comments:

  1. Anonymous1:39 PM

    बहुत चुभती है जी. हमारे टिफिन में सब्जी अब कम रखी जाने लगी है.
    देखिये आज ही पंगेबाज झाडू लेकर नेताओ की अक्कल बुहारने निकल पड़े हैं.

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  2. यह सचमुच हास्‍यास्‍पद है कि महंगाई पर ज़्यादा लोग बोल नहीं रहे.. ख़ास तौर पर वे लोग जो अर्थ की दुनिया समझते हैं.. कल ही सड़क चलते किसी परिचित की प्रतिक्रियायें सुनकर मैं सन्‍न हो रहा था.. जीवन की भागाभागी में अब बहुत सूचनाएं मिस होती रहती हैं, तो मुझे मालूम नहीं था, परिचित ने सूचित करवाया कि सरकार खाद्यान्‍नों की स्‍टॉक में लिस्टिंग चढ़वायेगी तो देर-सबेर यह अबेर तो होना ही था? आप एक भूखे मुल्‍क में खाद्यान्‍नों तक की बेसिक सिक्‍युरिटी मुहैय्या नहीं करवायेंगे.. सबको बाज़ार की मारामारी के हवाले कर देंगे.. तो 10-12% ग्‍लोबल हितों की चपेट में बाकी दुनिया आने से कहां तक और कब तक बचेगी? समाज का हर पहलू, और हर कहीं, इन्‍हीं हितों के मैनिपुलेशन में होगा. हो ही रहा है. उसके नतीजों की पहली रपटन से हम शनै-शनै परिचित होना शुरू हो रहे हैं. मज़ेदार बात यह है कि इतने बड़े मसले पर देशहित का बाजा बजानेवाले वामपंथियों के पास कहने को कुछ सरलीकृत टिल्‍लेबाजी से अलग सारगर्भित कुछ नहीं है. शायद सीधे लोगों के जीवन को प्रभावित करनेवाले मसलों के गिर्द आंदोलन खड़े करने का सपना हमने अब पूरी तरह त्‍याग दिया है?..

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  3. मंहगाई से हम भी परेशान हैं लेकिन हमारे राजनेताओं को इसका कोई हल नहीं सूझता दिखायी दे रहा.शायद चुनाव से पहले कोई अकल आये.

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  4. सरकार से बात हुई पर कुछ नही हुआ लिहाजा आज हम सरकार की एक बैठक मे घुसने मे कामयाब हो गये है,यहा ये बैठक खास तौर से जनता इस सरकार को दुबारा कैसे चुने और महगाई को कैसे झेले पर बुलाई गयी है हम यहा सोफ़े के पीछे से स्टिंग आपरेशन मे लगे है कल आपको भी बतायेगे कि आप क्या करे और सरकार क्या कर रही है..:)

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  5. बहुत सही बात उठाई है आपने... इससे कहीं ये मतलब तो नहीं निकलता कि ब्लोग्गिंग जैसे शौक वही पालते हैं जिनके लिए १०-२०% कि महंगाई कुछ मायने नहीं रखती? मुझे तो कुछ ऐसा ही लगता है.

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  6. महंगाई सबको चुभती है. लेकिन.... कच्चा तेल ११० डालर प्रति बैरल पर है. जमाखोरी इतनी है की ४० लाख तन चावल केवल दिल्ली से मिला है. ये सब हो तो कोई क्या करे. क्या नेता क्या अभिनेता. महंगाई सबको मार रहा है

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  7. भईया. इस तरह के संकट उदारीकरण वैश्वीकरण के सहचर है. महगाई तो आएगी ही जब अनाज का एथनाल बनेगा.

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  8. Anonymous2:36 PM

    प्रमोद बाबू, वामपंथियों को तो कुछ सूझ नहीं रहा है, आप क्‍यों आन्‍हर हैं। आपने क्‍या लिख दिया। अल्‍ल-बल्‍ल लिखने से फुर्सत हो तब न। और उ आपके लंगोटिया अनिल रघुराज जी तो अर्थ विशेषज्ञ हैं, मुंह पर उनके भी पट्टी है। और जी आप मसिजीवी महाराज, इतना दिन बाद महंगाई पर मुंह फाड़े, तौ भी पर्सनल हो गये। आप इहे चाहते हैं न जे महंगाई भी मोहल्‍ले में उठे - मसिजीवी का नोटपैड क्‍यों लिंकित हो। अविनाश बाबू तो अलबलाये हुए हैं ही - उनको तो अपना दिमाग है नहीं - जो दिलीप मंडल और रवीश बोलता है, करते हैं - पन आप काहे अलबलाये हैं भाई। आयं।

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  9. Anonymous4:02 PM

    बहुत मंहगी टिप्पणियां है जी.

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  10. Anonymous4:26 PM

    पिनकी साहु कहीं संघ प्रचारक तो नहीं? मंहगाई पर टिप्पणी करने के बजाय दूसरों का प्रचार करता फिर रहा है...देखिये इसके चार कान तो नहीं हैं?

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  11. मैं इस आरोप से बरी हूँ जी, मैं तो पहले ही कांग्रेस और वामपंथियों को दो-दो पोस्टों में जमकर गाली दे चुका हूँ महंगाई के लिये, जिस पर इस पोस्ट से भी कम टिप्पणियाँ आई थीं :) :)
    वैसे एक बात और है कि जितनी जमीन अकेले डीएलएफ़ और रिलायंस को सेज के लिये दी गई है, उतनी जमीन में पूरे मुम्बई का दो साल का राशन आराम से उगाया जा सकता है… बाकी तो ब्लॉगर समझदार हैं ही :) :)

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  12. सचमुच महंगाई तो बहुत ही हो चुकी है....आम आदमी की हालत सोच कर ही डर लगता है। यकीन मानिये, मसिजीवी जी, डाक्टर होने के नाते मरीज़ों को दालों-सब्जियों तक खाने के लिये कहना कुछ अजीब सा लगता है.....यही सोचना पड़ता है कि ये सब इन की पहुंच में होगी भी कि नहीं।
    आपने तो बहुत अच्छा लेख लिखा है....जूते में कील वाली बात सुन तो बहुत बार रखी है,लेकिन आप की पोस्ट में यह पढ़ कर लगा कि पहली बार ही सुन रहा हूं....यही तो है शब्दों का जादू....जितनी समझ है वैसी टिप्पणी दे डाली है, मास्टर सॉब।
    with profound regards,
    parveen

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  13. बहुत सही मुद्दा उठाया है..क्या कहें..सभी तो परेशान हैं इससे.

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  14. यह देखिएः सभ्य समाज हिंसा के लिए तैयार रहे.

    http://visfot.com/index.php?news=101

    अभी आगे और भी लिखने-लिखवाने की तमन्ना है. आप कुछ लिखना चाहें तो मैं सहर्ष विस्फोट.काम पर प्रकाशित करना चाहूंगा.
    मेरा मेल है- visfot@visfot.com

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