गनीमत है कि हम भारतीय सार्वजनिक साईनबोर्डों को बहुत गंभीरता से नहीं लेते वरना कम से कम दिल्ली के नागरिकों की मुँह की पसलियों का चटकना तो तय है, हर माल, सड़क, स्टेशन, मैट्रो, चौराहे, दफ्तर, स्कूल, कॉलेज, होटल-रेस्त्रां में एक कैमरा हम पर चोर नजर रख रहा होता है। अक्सर एक साइनबोर्ड भी लगा होता है कि मुस्कराएं, आप कैमरा पर हैं। मैं तो बहुत प्रसन्न हुआ जब मैंने सुना कि शीला दीक्षितजी ने कहा है कि जल्द ही पूरी दिल्ली को वाई-फाई बनाया जा रहा है...बाद में पता चला कि इसका उद्देश्य सस्ता, सुदर टिकाऊ इंटरनेट प्रदान कराना उतना नहीं है जितना यह कि वाई फाई के बाद सर्वेलेंस कैमरे लगाना आसान हो जाएगा..जहॉं चाहो एक कैमरा टांक दो...बाकी तो वाईफाई नेटवर्क से डाटा पहुँच जाएगा जहॉं चाहिए।
दुनिया के अन्य लोकतंत्रों में भी जहॉं निजता की रक्षा के कानून खासे सख्त हैं, वहाँ सर्वेलेंस कैमरों की अति से लोग आजिज हैं। वैसे जाहिर है कैमरे केवल मूर्त प्रतीक भर हैं, सच तो यह है कि हम बहुत तेज गति से एक सर्वेलेंस समाज (हिन्दी में इसके लिए क्या शब्द कहें? अभी नहीं सूझ रहा) में बदलते जा रहे हैं। सावधान कि हम पर नजर रखी जा रही है। कहीं सुरक्षा की जरूरतों के चलते हमारे सार्वजनिक स्पेस का चप्पा-चप्पा इन कैमरों के जद में आ गया है। वहीं कहीं सुविधा, आईटी आदि के नाम पर भी हमारे निजत्व पर खतरा बढ़ रहा है। कालेज के हमारे परिसर में कईयों कैमरे लगे हैं इसी तरह मैंने ध्यान दिया कि मेरे विश्वविद्यालय की वेबसाईट पर सैकडों स्त्री- पुरुषों के नाम पते व शिक्षा आदि के ऑंकडे डाल दिए गए हैं, लिंक जानबूझकर नहीं दे रहा हूँ ताकि निजता के इस उल्लंघन में मेरी हिस्सेदारी न हो।
अधिकांश आधुनिक समाज इन कैमरों को इस तर्क से सह लेते हैं कि सुरक्षा के लिए नेसेसरी-ईविल हैं, या ये भी कि इनसे अपराधी डरें हम क्यों। किंतु अनेक शोध बताते हैं कि एक सर्वेलेंस समाज स्वाभाविक समाज नहीं होता, जब हमें पता होता है कि हम पर निगाह रखी जा रही है तो हम अधिक तनाव में होते हैं तथा अपने व्यवहार को निगाह रखने वाले की अपेक्षा के अनुरूप बनाने का प्रयास करते हैं जो अक्सर कृत्रिम होता है। मेरे कॉलेज के युवा छात्र अब चिल्लाकर, अट्टहास करते हुए गले मिलते नहीं दिखाई देते या बहुत कम दिखाई देते हैं...ये नहीं कि ये किसी कानून के खिलाफ है पर वे जानते हैं कि उन्हें देखा जा रहा हो सकता है...इसी प्रकार दिल्ली मैट्रो में दिल्लीवासियों के जिस व्यवहार की बहुत तारीफ होती है उसके पीछे भी कैमरों की अहम भूमिका है, किंतु आम शहरी हर जगह खुद को 'सिद्ध' करता हुआ घूमे तो कोई खुश होने की बात तो नहीं।
खैर चलूँ कालेज का समय हो रहा है, अगर गिनूं तो मैं घर से कॉलेज तक कम से कम 40 कैमरे मैट्रो के 8 कॉलेज के फिर 3-4 सड़क पर और वापसी में भी इतने ही कैमरे...जहन्नुम में जाएं सब, हम नहीं मुस्कराते भले ही हम कैमरे पर हों।
निजता की रक्षा का विचार! लगता है अब बेवकूफी है। आज से यह बेवकूफी नहीं करेंगे।
ReplyDeleteआप कैमरा पर हैं की जगह आप पर कैमरा है शायद ज्यादा समीचीन होगा गुरूजी। इस पर विस्तार से लिखें!
ReplyDeleteआम आदमी तो वैसे भी हंस नही पा रहा है,कैमरे पर क्या हंसेगा?और कैमरे पर हंसने का ठेका तो देश के नेताओं ,सिने-सितारो,खिलाडियो और कुछ पत्रकारों को मिल चुका है। अब सिर्फ़ वोही हंसते दिखाई देते है और वे ही हंस भी सकते है्। अच्छा विषय अच्छी पोस्ट।
ReplyDeletehmmmmmmm camre ka name le ker daro mat yaar hmmmmmmm keep it up good going
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खीच लेने दे फोटो सरकार को ,उनके तो नहीं खीच पाएंगे जिनके लिए लगाये है यह कैमरे
ReplyDeleteसही है.. आज से हम सदैव मुस्कुरायेंगे.. क्योंकि हम पर कैमरा है या कैमरे पर हम हैं या जो कुछ भी.. :D
ReplyDeleteज्यादा कंफ्यूज्ड हो गया हूं लगता है..
@ अनूप जी मेरा आइडिया भी सुनें . कैमरा और आप दोनों आमने सामने हैं यह और भी अच्छा लगेगा :)
ReplyDeleteमेरे ख्याल से ईश्वर/खुदा को मानने वाले मनुष्यों को तो निगरानी करने वाले कैमरों से एलर्जी नहीं होनी चाहिए। क्यों? क्योंकि ऐसे सभी धर्म कहते तो हैं कि ईश्वर/खुदा सब जानता है सब देखता है। तो फिर किसी और के भी द्वारा देखे जाने पर कैसा तनाव? ;) :D
ReplyDeleteरही अपनी बात तो अपन ईश्वर/खुदा के अस्तित्व में विश्वास रखने वालों में से नहीं हैं लेकिन इन निगरानी रखने वाले कैमरों से अपने को कोई परहेज़ नहीं है, कुछ गलत अपन करते नहीं कि कैमरों में पकड़े जाने का डर हो! :)
अक्सर CCTV से पाला पड़ जाता है, दफ्तर मे, मेट्रो में, बाजा़र में.. पर कभी अपने व्यव्हार में परिवर्तन नहीं महसुस किया... या यों कहे कि इसे सुचना की तरह लेते है..
ReplyDeleteहा हा ! अरे इसी बहाने मुस्कुरा लिया कीजिये... सेहत के लिए तो अच्छा रहेगा :-)
ReplyDeleteजब भी हम फोटो खिंचवाते हैं तो फोटो हो हो जाते हैं . कैमरा जब भी हमारे सामने होता है तो हम असहज हो जाते हैं. हम जो होते हैं उसे छुपाने लगते हैं. मतलब क्या कैमरा सिर्फ एक पहलू दिखाता है या कोई भी नहीं.वो झूठ बोलता है. मैं कैमरे से नहीं डरता - सच से डरता हूँ - और कैमरा सच से दूर है.
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