Wednesday, April 29, 2009

फ्रान्सिस्‍को गोया और उनकी पेंटिंग '3 मई 1808'

 

'अनभै सॉंचा' दिल्‍ली से निकलने वाली एक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका है। ताजा अंक में प्रसिद्ध चित्रकार अशोक भौमिक ने आधुनिक कला की दो अहम पेंटिग्‍स फ्रांसिस्‍को गोया की '3 मई 1808 का नरसंहार' तथा पाब्‍लो पिकासो की 'गुएर्निका' का विवेचन है। ऐसा नहीं है कि इन पेंटिंग्‍स पर कम लिखा गया है पर हिन्‍दी में निश्चित तौर पर कम लिखा गया है। अत: सोचा कि गोया की पेंटिंग के विषय में अशोक भोमिक के विवेचन को आपके सामने रखा जाए।

फ्रांसिस्‍को गोया (1746-1828, स्‍पेन) को कला इतिहासकार निर्विवाद रूप से आधुनिक चित्रकला के जनक के रूप में जानते हैं। स्‍पेन का नेपोलियन के कब्‍जे में आना गोया के जीवन  की अहम घटना थी। 3 मई 1808 का नरसंहार इसी क्रम की एक घटना रही। इस चित्र को मूल घटना के छ: वर्षों बाद बनाया गया लेकिन इससे इस चित्र की कलात्‍मक तीव्रता कम नहीं हुई है। मूल चित्र की छवि ये है-

3rdMay1808 

गोया के इस चित्र में कई गौरतलब बातें हैं जो आम दर्शकों के लिए और समीक्षकों के लिए इस चित्र को इतना खास बनाती हैं।

1. चित्र में बाई आरे असहाय लोगों का झुंड है जहॉं कुछ लोग मारे जा चुके हैं कुछ लोग मर रहे हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जा मरने वाले हैं। इस सबके साथ साथ आतंकित कुछ और लोब भी हैं जो मारे नहीं जाएंगे पर संहार से भयभीत वे भी हैं। इन बाईं ओर के लोगों की संरचना में सीधी ज्‍यमितीय आकृतियॉं नहीं हैं। वे मुड़ी तुड़ी आकृतियों से बनी आक्रांत-आतंकित आकृतियॉं हैं।

2- दाहिनी ओर कतारबद्ध अतिकाय आकृतियॉं यीधी रेखाओं की ज्‍यमितीय आकारों से बनी सैनिकों की आकृतियॉ है जो बंदूक ताने हैं। पृष्‍ठभूमि में भी साधी रेखाओं से बनी महल की आकृति है जो इस हत्‍याकांड में में किस ओर है ये इसके ज्‍यमितीय होने से पता चलता है।

3- सैनिकों के पीछे का महल व्‍यवस्‍था का प्रतिनिधित्‍व करता है। 

4. चित्र के दोनों हिस्‍सों के संरचनात्‍मक व वर्गीय अंतर ही इस चित्र को गोया की महान रचना बनाते हैं। सैनिकों के चेहरे न दिखाकर गोया ने शोषण, संहार व अत्‍याचार के सहज दिखने वाले सतही माध्‍यमों को अनावश्‍यक महत्‍व न देते हुए संहार को संचालित करने वाली शक्तियों की ओर इशारा किया है।

5. चित्र में सबसे महत्‍वपूर्ण उपस्थिति सफेद कपड़ेवाले आदमी की है जो अत्‍याचार से भयभीत नहीं है।

6. जमीन पर रखी लालटेन से निकलता (पुन: सीधी रेखा में) प्रकाश भी महत्‍वपूर्ण युक्ति है जिसका इस्‍तेमाल गोया ने किया है।

   कुल मिलाकर 3 मई 1808 दो सौ साल पहले की एक घटना का चित्रण भर नहीं है वरन चित्रकार की पक्षधरता व शोषण के तंत्र का शानदार दस्‍तावेज भी है।

10 comments:

  1. सुन्दर! अनभै सांचा और गोया की पेंटिग के बहाने फ़िर से लिखना तो शुरू हुआ।

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  2. अरे वाह अशोक जी व्याख्या से तो कितना आसान हो गया है इस चित्र को समझना ! मेरी ओर से बहुत बहुत आभार स्वीकारे इस आलेख को प्रस्तुत करने का।

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  3. काफी कुछ खुल गया इस विवेचन से इस पेंटिंग के बारे में ।

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  4. अगर विवरण नहीं होता तो समझना इतना आसन नहीं था !

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  5. अभिषेक भाई से सहमत ..पारखी नजरें चाहिए होती है हर कलाकृति को समझने के लिए.

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  6. पहली बार किसी चित्र को पढ़ा है। अन्‍यथा चित्रों के मामले में निरक्षर ही हूं।

    बहुत बहुत आभार मसिजीवी जी।

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  7. बहुत ही उपयोगी और शिक्षाप्रद आलेख। एक आलेख 'गुएर्निका' के बारे में भी दें तो आभारी होऊंगा।

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  8. चित्रकला की इतनी समझ तो नहीं है, पर आपके सहारे पेन्टिंग की महत्‍ता का थोडा बहुत ज्ञान हुआ। आभार।

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    TSALIIM
    SBAI

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  9. बहुत दिनों बाद कोई ब्लॉग पढा वो भी ज़रा हट के। जानकारी कराने के लिए ध्न्यवाद!

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  10. बहुत आभार ...... इस आलेख को प्रस्तुत करने का!!!

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