Wednesday, November 11, 2009

मैं चर्चाता हूँ...इसलिए मैं हूँ

अगर इंसान पहचान के कई टुकड़ों में साथ साथ जीता है पिता, मित्र, धर्म, जाति... तो भला ब्‍लॉगर की क्‍योंकर एकमुश्‍त पहचान होगी... वो भी अपने अलग अलग चिट्ठों, पोस्‍टों, टिप्‍पणियों से पहचान हासिल करता है... हम भी करते हैं, पर जब कोई हमसे पूछता है तो जिस पहचान को हम मसिजीवी होने के बाद सबसे अहम मानते हैं वह है चर्चाकार होना। चिट्ठाचर्चा के इतिहास पर हमारी कोनो पीएचडी नहीं है, सुकुलजी इतिहास दर्ज कर चुके हैं बांच लें, चिट्ठाचर्चा ने 1000 पोस्‍टों का सफर पूरा करने के अवसर पर हम केवल इस मंच से अपने जुड़ाव की बात करेंगे और नहीं।

मित्रों के सद्भाव के चलते जनसत्‍ता से ब्‍लॉगों पर एक स्‍तंभ जिखने की पेशकश हुई... पहले अविनाश अपना कॉलम लिखते थे पर उन्‍होंने भास्‍कर ज्‍वाइन कर लिया तो जाहिर है जनसत्‍ता में जारी नहीं रख सकते थे, थानवीजी से फोन पर बात हुई उन्‍होंने कहा कि आपका कालम है खुद कोई नाम रखें... 'चिट्ठाचर्चा' हमने बिना झिझक कहा, आखिर नियमित रूप से पोस्‍टों की चर्चा और भला क्‍या नाम आ सकता था हमारे मन में। जब तक जनसत्‍ता में कॉलम आया चिट्ठाचर्चा नाम ही रहा कभी मन में नहीं आया कि ये शुक्‍लजी के मॉडरेशन में चल रहे किसी सामूहिक ब्‍लॉग का नाम है... भले ही शुक्‍लजी हमसे सौगुनी मेहनत करते हैं चर्चा पर, किंतु चिट्ठाचर्चा हम सब का है... ये 'अविनाश के' मोहल्‍ले या 'यशवंत के' भड़ास सा कम्‍यूनिटी ब्‍लॉग नहीं है ये वाकई हमारी चिट्ठाचर्चा है इसलिए जब कोई टर्राते हुए इसे सुकुलजी के किन्‍हीं गुट की चर्चा कहता है तो झट मन में आता है बड़े आए सुकुलजी...(नारद को लेकर भी ऐसा ही मन में आता था अभी तक तो उम्‍मीद है कि चर्चा के मामले में ये विश्‍वास बना रहेगा)  

ऐसा नहीं कि नाराजगी नहीं हुई खुद अनूप धुरविरोधी प्रकरण में हमसे धुर असहमत थे... उनकी क्‍या कहें घर में खुद नीलिमा असहमत थीं

धुरविरोधी के विरोध का अपना एकदम निजी तरीका है इसपर सेंटी होने की भी जरूरत नहीं है उक्त विचार भी आपके एकदम निजी हैं

पर हमने चर्चा का विषय इसे बनाया एक बार नहीं लगा कि चिट्ठाचर्चा अनूप के मॉडरेशन में चल रहा ब्‍लॉग है उन्‍हें आपत्ति होगी। दरअसल चिट्ठाचर्चा में वैयक्तिकता व सामुदायिकता का जो संतुलन है उसे महसूसने की जरूरत है इसे साधुवादी वाह वाह से नहीं पकड़ा जा सकता। आप कौन सी पोस्‍ट चर्चा के लिए चुनेंगे ये प्रक्रिया राग द्वेष से मुक्‍त नहीं है होना मुश्किल भी है पर सिद्धांतत: चर्चाकार मानते हैं कि चर्चाकार को अपने विवेक से यह तय करने का हक है इसलिए इन आपत्तियों को कभी तूल नहीं दिया जाता कि कौन सी पोस्‍टें चुनी गईं... इसी प्रकार चर्चाकार की दृष्टि भी स्‍वतंत्र है किंतु दूसरी ओर सरोकारों की एक स्‍वीकृत सामुदायिकता है। पिछले कुछ महीनों से मेरी, नीलिमा तथा सुजाता की   ब्‍लॉगिंग में सक्रियता कम हुई है पर कम से कम इतना प्रयास अवश्‍य करते हैं कि चर्चा अवश्‍य हो जाए भले ही संक्षिप्‍त रह जाए वैसे इसमें कितना योगदान हमारी प्रतिबद्धता है कितना अनूपजी के तकादों का, यह कहना कठिन है।

भविष्‍य की ओर घूरें तो मुझे लगता है कि जैसा कि इलाहाबाद में इरफान ने अपने परचे में कहा था...हम ब्‍लॉगर खुद ब्‍लॉगिंग पर लिखना बांचना पसंद करते हैं इससे तय है कि चर्चा की यात्रा अभी चलेगी...नए चर्चा मंच दिखाई दे रहे हैं...उनकी मौलिकता को लेकर कुछ संशय है पर ये संशय भी मिटेंगे...अपनी तो राय है मोर दि मेरियर।

13 comments:

  1. Anonymous4:58 PM

    बात-बेबात। पर इस चर्चापूर्ण लेख में मजा आया।

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  2. कुछ नई जानकारियां मिलीं। चिट्ठाचर्चा पर बहुत लोग होते हुए भी हर चर्चा का लेखक अलग है और उस का दृष्टिकोण भी। विभिन्न दृष्टिकोणों का एक मंच पर होना महत्वपूर्ण हैय़

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  3. दिलचस्प है इतिहास भी....इसका ये निचोड़ निकला जी

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  4. अनूप जी के द्वारा चिठठा चर्चा और उन मे लिखने वाले नियमित लेखको की मेहनत ही इस चिठठा को चर्चा का कारण वनाती है . हम जैसे कम अकल तथाकथित लेखको की जब कभी चर्चा होती है तो एसा लगता है जैसे कोई पुरुस्कार मिल गया हो .

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  5. अव्व्वल तो हमें इस बात से एतराज करके मुंह फ़ुला लेना चाहिये कि हमको चिट्ठाचर्चा का माडरेटर कह कर बदनाम (?) करने की साजिश की जा रही है। सच तो है कि मेरा रोल केवल दोस्तों को निमंत्रण भेजने और चर्चा के लिये उकसाने और अगर कोई न कर सक रहा हो तो चर्चा करके डाल देने का रहा है। असहमति भले रही हो किसी मुद्दे पर लेकिन मेरी जानकारी में आजतक किसी की चर्चाकार की पोस्ट पर मेरे ख्याल से किसी ने कोई भी बदलाव/सुधार या सेंसर करने की हिमाकत नहीं की। सच तो यह है कि चर्चा की 1000 पोस्टों तक लोगों के जुड़ाव का कारण इसकी विविधता रही। लोग आते-जाते रहे लेकिन चर्चा में नियमितता और नया पन सा बना रहा। मैं आज देखा कि हम लोगों की की हुई कुछ चर्चायें हम लोगों की रोजमर्रा के स्तर से बेहतर हैं। धुरविरोधी चिट्ठा बंद होने पर की गयी तुम्हारा चर्चा एक अद्भुत चर्चा है।

    साथी लोग जुड़े रहे और मनमर्जी की चर्चा करते रहे इसीलिये यह बोझ जैसा न लगा और मामला १००० पोस्ट को पार गया।

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  6. नए चर्चा मंच दिखाई दे रहे हैं...उनकी मौलिकता को लेकर कुछ संशय है पर ये संशय भी मिटेंगे.


    हमारी भी ये ही राय है:)


    वीनस केशरी

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  7. सहमत-असहमत,एक से बढकर एक धुरंधरो का एक साथ इतना लम्बा सफ़र भी अपने आप मे एक बडी उपलब्धी से कम नही है।जारी रहे चर्चा का ये सुहाना और कुछ न कुछ सीखने को देने वाला ये सफ़र।बधाई सभी चर्चाकारों को।

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  8. ओल्ड इज़ गोल्ड...पर ये दिल मांगे मोर....

    जय हिंद...

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  9. मित्र मसिजीवी आप में और मुझ में एक समानता है, हम दोनों ही नारद, चिट्ठाचर्चा आदि अक्षरग्राम के प्रकल्पों के प्रति 'हमारा' वाली भावना रखते थे/हैं। कुछ भाई लोग इस भावना को नहीं समझते और उसे अतीतगान आदि उपमाएँ देते हैं।

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  10. आपकी राय जानकर हमेशा की तरह अच्छा लगा. :)

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  11. बहुत अच्छा लगा...चर्चा (चिट्ठाचर्चा)हर ब्लॉगर का जन्मसिद्ध अधिकार है.

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  12. चर्चा और परिचर्चा से बहुत कुछ जानने समझने को मिलता है।

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