tag:blogger.com,1999:blog-18436534.post312389057338426430..comments2024-01-10T15:57:22.152+05:30Comments on मसिजीवी: अपने बच्चे का मैला तो हमने भी कमाया है... शर्माजी जी इतनी नाराज क्यों हैं?मसिजीवीhttp://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-51797504791097091982009-07-08T22:47:14.955+05:302009-07-08T22:47:14.955+05:30padhkar man khatta ho gaya...aur Lavnya ji ke SHAR...padhkar man khatta ho gaya...aur Lavnya ji ke SHARMA par bhi...<br /><br />ab agar dalit kahen ki unka dard vahi samajh sakte hain to ek udaharan yah ghatiya bahas bhi hogiAshok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-17245474853438426232009-04-23T16:08:00.000+05:302009-04-23T16:08:00.000+05:30काहें गन्हवा रहे हैं भाई एतना बढिया बिलॉग. अब आप क...काहें गन्हवा रहे हैं भाई एतना बढिया बिलॉग. अब आप के पास लिखने के लिए कौनो बिसय नईं रह गया है का?इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-33081769364341907002009-04-02T11:38:00.000+05:302009-04-02T11:38:00.000+05:30ब्लॉग जगत पर ये सब चलता ही रहता है। आप किसी का मु...ब्लॉग जगत पर ये सब चलता ही रहता है। आप किसी का मुंह नहीं पकड सकते, कब कौन क्या कह दे, कहा नहीं जा सकता।<BR/><BR/>-----------<BR/><A HREF="http://tasliim.blogspot.com/" REL="nofollow">तस्लीम </A> <BR/><A HREF="http://sciblogindia.blogspot.com/" REL="nofollow">साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन</A>adminhttps://www.blogger.com/profile/09054511264112719402noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-75091949241127650972009-03-17T22:06:00.000+05:302009-03-17T22:06:00.000+05:30ऊंचे लोगो की ऊंची बाते । वैसे एक शब्द के कितने अर्...ऊंचे लोगो की ऊंची बाते । वैसे एक शब्द के कितने अर्थ निकलते है यह सभी बलोगर अछी तरह जानते है । इस लिये इस बहस को ज्यादा ना बढ़ाया जाये । यही श्रेयस्कर है । चांद को तारा कह भर देने से उसकी रोशनी कम नही हो जायेगी ।naresh singhhttps://www.blogger.com/profile/16460492291809743569noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-50140227827539090892009-03-16T16:42:00.000+05:302009-03-16T16:42:00.000+05:30totochaan ke kya kehne........Post kahin kisi KATH...totochaan ke kya kehne.....<BR/><BR/>...Post kahin kisi KATHIT samaj sudharak ke paas na pahoonch jaiye. Billi Barber ko Billo banne main tanik der nahi lagti bharat main .Post accha lagne ke bawjood tarif nahi kar paa rahe hain....<BR/>Gehoon ke saath mujh jaisa ghun bhi pos gaya toh?दर्पण साहhttps://www.blogger.com/profile/14814812908956777870noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-44988630922271643202009-03-16T08:36:00.000+05:302009-03-16T08:36:00.000+05:30लावण्यम जी से सहमति असहमति या विरोध भी हो सकता है ...लावण्यम जी से सहमति असहमति या विरोध भी हो सकता है परन्तु इस बहस में उनकी स्वर्गीया मां को घसीटना किसी भी तरह से उचित नहीं है। आदरणीय द्विवेदी जी बात सही है पर यह तथ्य भी अपनी जगह है कि अधिकांश सवर्ण अभी भी इस विशेषण को हिक़ारत के साथ ही इस्तेमाल करते हैं।Dr. Amar Jyotihttps://www.blogger.com/profile/08059014257594544439noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-17325106392793481672009-03-15T23:26:00.000+05:302009-03-15T23:26:00.000+05:30दर असल ‘चमार’ शब्द का प्रयोग अब सिर्फ़ एक जाति के ल...दर असल ‘चमार’ शब्द का प्रयोग अब सिर्फ़ एक जाति के लिए ही नहीं होता बल्कि भाषा में यह एक जीवन शैली का अर्थ भी देता है। सवर्णों के बीच भी किसी के घटिया व्यवहार के लिए ‘चमारपन’ का विशेषण प्रयुक्त होता है। यहाँ चमार का मतलब गन्दा, असभ्य, बदतमीज, दुष्ट, अधम, फूहड़, घिनौना, संस्कारहीन, स्वाभिमानविहीन, निर्लज्ज, और मूर्ख कुछ भी हो सकता है। <BR/><BR/>कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था में सबसे निचले स्तर पर भंगी या मेहतर होते थे जिनका पेशा झाड़ू लगाना और सिर पर मैला ढोना होता था। ऐसे लोग गन्दगी के पर्याय होते थे। बड़ा ही तुच्छ समझा जाता था इन्हें। इनसे थोड़ा ऊपर चर्मकारी का पेशा था जो मरे हुए पशुओं का चमड़ा निकालने से लेकर उनका संस्कार करके चमड़े के जूते और दूसरे सामान तैयार करते थे। यही चमार (चर्मकार) कहलाते थे। मोचीगिरी इनका ही पेशा था। इन्हें समाज में जैसा स्थान प्राप्त था, और जैसी छवि थी उसी के अनुरूप इनके जातिसूचक शब्दों से भाषा में मुहावरे और विशेषण बन गये। <BR/><BR/>आज के आधुनिक समाज में अब जाति आधारित कामों के बँटवारे को समाप्तप्राय किया जा चुका है। सामाजिक दूरियाँ सिमट रही हैं। लेकिन भाषायी रूढ़ियों को इतनी आसानी से नहीं बदला जा सकता। किसी को ‘चमार’ कहना इसीलिए आहत करता है कि उसका आशय आजके समता मूलक समाज में पल रहे एक जाति विशेष के सदस्य से नहीं है बल्कि ऐसे अवगुणों से युक्त होना है जो आज का चमार जाति का व्यक्ति भी धारण करना नहीं चाहेगा। कदाचित् इसी गड़बड़ से बचने के लिए सरकारी विधान में जाति सूचक शब्दों के प्रयोग पर रोक लग चुकी है। <BR/><BR/>लेकिन सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ लेने के नाम पर अपने को ‘चमार’ कहे जाने का लिखित प्रमाणपत्र मढ़वाकर रखा जाता है। अपने को चमार बताकर पीढ़ी दर पीढ़ी उच्चस्तर की नौकरियाँ बिना पर्याप्त योग्यता के झपट लेने वाले भी समाज में चमार कहे जाने पर लाल-पीला हो जाते हैं। <BR/><BR/>किसी सवर्ण को जहाँ-तहाँ बेइज्जत करने का कोई मौका नहीं चूकते। अपनी इस कूंठा को खुलेआम व्यक्त करते हैं और दलित उत्पीड़न का झूठा मुकदमा ठोंक देने की धमकी देकर ब्लैक मेल करने पर इस लिए उतारू हो जाते हैं कि उसके बाप-दादों ने इनके बाप-दादों से मैला धुलवाया था।<BR/><BR/>आज सत्ता और सुविधा पाने के बाद ये जितनी जघन्यता से जातिवाद का डंका पीट रहे हैं उतना शायद इतिहास ने कभी न देखा हो। <BR/><BR/>तो भाई मसिजीवी जी, इस दोगलेपन का यही कारण है कि चमार जाति और चमार विशेषण का अन्तर इस शब्द के प्रयोग के समय अक्सर आपस में गड्ड-मड्ड हो जाता है। <BR/><BR/>लावण्या जी का आहत होना स्वाभाविक है। नीलोफ़र का असभ्य भाषा का प्रयोग निन्दनीय।<BR/><BR/>आधुनिक समाज में ये सारे काम मशीनों और दूसरे उद्योगपतियों ने भी सम्हाल लिए हैं। लेकिन इन विशेषणों से छुटकारा मिलने में अभी वक्त लगेगा। एक सभ्य आदमी को इसके प्रयोग से बचना चाहिए।Malayahttps://www.blogger.com/profile/00391978161610948618noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-24787140558756444472009-03-15T10:59:00.000+05:302009-03-15T10:59:00.000+05:30कुश ने जब लिखा कोई कुछ कह नहीं रहा है तो हम भी कह ...कुश ने जब लिखा कोई कुछ कह नहीं रहा है तो हम भी कह दिये इस पर कुछ। चर्चा में देखिये मेरी प्रतिक्रिया!<BR/>http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/03/blog-post_15.htmlAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-38304287528181905312009-03-14T18:08:00.000+05:302009-03-14T18:08:00.000+05:30मसिजिवी जी,मुझे क्षमा करें, मुझे आपके इस पोस्ट का ...मसिजिवी जी,<BR/><BR/>मुझे क्षमा करें, मुझे आपके इस पोस्ट का आशय समझ में नही आया. वह इसलिये कि बात हो रही है अंतरजाल पर बौद्धिक विचारों को प्रकट करने के शऊर की.<BR/><BR/>महज टिप्पणी के लिये ,संदर्भ के बिना किसी मां के बारे में क्या इस तरह से लिख कर हमारी बात या नाराजगी (?) का इज़हार सहे है? ये भी बहस क्यों कि चमारन या शर्मा लिखने का क्या औचित्य है.<BR/><BR/>मुख्तसर सी बात है.बात सही या गलत का यहां कोई सवाल ही नही है.शालीनता का जो तकाज़ा है, उस पर बहस क्यों नही? यह सब बहस ’संसदीय” हो चली है, आशा है सभी ध्यान रखें तो मेहरबानी.दिलीप कवठेकरhttps://www.blogger.com/profile/16914401637974138889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-27035244803832500892009-03-14T18:07:00.000+05:302009-03-14T18:07:00.000+05:30पूरे प्रसंग में शायद हम और आप से अधिक परिपक्व टिपण...पूरे प्रसंग में शायद हम और आप से अधिक परिपक्व टिपण्णी <A HREF="http://kushkikalam.blogspot.com" REL="nofollow">कुश</A> की रही ........ सिवाय इसके की कई प्रबुद्ध जनों ने टिपण्णी करने में गुरेज किया है !!!!!!प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-73546182519338398042009-03-14T18:02:00.000+05:302009-03-14T18:02:00.000+05:30मसिजिवी जी,(बड़े विश्वविद्यालय के मास्टर)@ प्रवीण ...मसिजिवी जी,(बड़े विश्वविद्यालय के मास्टर)<BR/><B>@ प्रवीण जी शुक्रिया... उम्मीद है किसी ब्लॉगर मीट में मिले तो इस भंगी/चमार के साथ चाय पीने से गुरेज नहीं करेंगे।<BR/>नहीं मास्साब... अब वो चिट्ठाउम्र नहीं रही कि ये वो तरीका अपनाएं.. मन में आता है लिख देते हैं..बस संयोग ही है कि दो पोस्टें पीठ दर पीठ पोलेमिकल हो गई हैं... यूँ इन तीनेक सौ पोस्ओं के बाद सभी जानते हैं कि हमारे लेखन में यूँ भी पोलिमिक्स के तत्व अधिक हैं। </B><BR/><BR/><BR/>जी बिलकुल नहीं करेंगे गुरेज आप जैसे नए जमाने वालों के साथ चाय पीने से !!<BR/>पर जल्दी किसी ब्लॉगर मीट में इसकी गुंजाईश कम ही है !!.....जाहिर है अपनी ही मांद में रहने वाला शेर ...या चूहा से अधिक अपने को ज्यादा नहीं समझता ??<BR/><BR/>पोलेमिकल जैसे भरी भरकम शब्दों से से तो आपने मास्टर की ( प्राईमरी का ) खटिया ही लगता है खड़ी करने की सोच ली है !!<BR/><BR/>और हाँ अंतिम बात .....चूकि लावण्या जी के ब्लॉग में बहुत पहले से ही माँ का नाम लिखा चला आ रहा है तो <B>शर्मा</B> पर इतना जोर देना उतना तार्किक मैं नहीं समझता हूँ !!प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-81601757718050879732009-03-14T15:23:00.000+05:302009-03-14T15:23:00.000+05:30This comment has been removed by the author.सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/12373406106529122059noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-15107383507146111802009-03-14T13:10:00.000+05:302009-03-14T13:10:00.000+05:30"तोतोचान एक शानदार किताब है तथा औसत पाठक की पसंद न..."तोतोचान एक शानदार किताब है तथा औसत पाठक की पसंद नहीं होती, जो अपने ब्लॉग का नाम तोता चान रखता है वो आउट आफ बाक्स सोचनेवाला ब्लॉगर है, कम से कम टुच्ची विषाक्तता के लिए तो नहीं।"<BR/><BR/>सर,<BR/><BR/>जो लोग औसत पाठक नहीं हैं, जो लोग विद्वान् हैं, बुद्धिजीवी हैं, उन्हें क्या केवल इस वजह से अधिकार मिल जाता है कि वे जिस तरह की चाहें, टिप्पणी या बात कर सकते हैं?<BR/><BR/>"तमाम डायपरबहुल पालनपोषण के बावजूद हमने भी अपने बच्चों का मैला कमाया है... "<BR/><BR/>नीलोफर जी ने अपनी टिप्पणी में जो लिखा और आपने जो लिखा, क्या दोनों एक ही बात है? मुझे दोनों बात एक सी नहीं लग रही. शायद मेरे औसत पाठक होने की वजह से मुझे ऐसा लग रहा हो. <BR/><BR/>एक और बात. अगर लावण्या जी की माँ के नाम के आगे शर्मा लगा है तो वे और क्या लिखें?Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-83503362919160638872009-03-14T12:08:00.000+05:302009-03-14T12:08:00.000+05:30लावण्या दी, परेशान न हों, जब हमारे मसिजीवी को मैं ...लावण्या दी, परेशान न हों, जब हमारे मसिजीवी को मैं और मां में अन्तर ही नहीं पता. उन्हें नहीं पता कि मैं का अस्तित्व मां के बाद होता है. कहीं...Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-39706469316114248492009-03-14T11:49:00.000+05:302009-03-14T11:49:00.000+05:30जो मैं महसूस करता हूं और व्यक्त न कर पाया वह कुश न...जो मैं महसूस करता हूं और व्यक्त न कर पाया वह कुश ने कह दिया.<BR/>हमारा हाथ, कुश के साथAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-11221213117172454922009-03-14T11:19:00.000+05:302009-03-14T11:19:00.000+05:30एक और बात.. 101 बार पढ़ी गयी इस पोस्ट पर सिर्फ़ 10...एक और बात.. 101 बार पढ़ी गयी इस पोस्ट पर सिर्फ़ 10 टिप्पणिया होना बहुत सारे सवाल छोड़ जाता है.. पर इसके जवाब शायद हमे अपने अंदर ढूँढने चाहिएकुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-68483482204822886342009-03-14T11:16:00.000+05:302009-03-14T11:16:00.000+05:30तोतोचान के बारे में जानकार अच्छा लगा.. वाकई में नी...तोतोचान के बारे में जानकार अच्छा लगा.. वाकई में नीलोफर जो कोई भी हो एक औसत बुद्धि से उपर है तभी तो एक टिप्पणी भर से उन्होने कितनी परते खोल दी.. किसी भी रूप में दलित शब्द गाली नही होता.. ना ही हमे इसे अपने उपर गाली की तरह लेना च्चाईए.. यदि हम हर जाति या वर्ग को समानांतर देखना चाहते है या यदि हम इस प्रकार की कोई बात भी करते है तब इसकी कोई गुंजाइश ही नही रहती.. <BR/><BR/>मेरी लवयान्या जी से बस यही असहमति थी की जब आप एक डाली (हरिजन) कन्या के विषय में लिख रही है तो आपको ये शब्द कहे जाने पर अपमानित नही होना चाहिए.. <BR/><BR/>मुझे दुख तब हुआ जब इतने सारे समझदार लोग भी सांत्वना देकर निकल लिए.. अगर किसी से बात करो तो सबका जवाब होगा हम बहस में नही पड़ना चाहते.. क्या वाकई ऐसा है? या फिर आप डरते है की कोई नाराज़ हो गया तो टिप्पणिया नही मिलेगी.. या फिर असली चेहरा सामने आ जाएगा.. <BR/><BR/>लावन्या जी को नाराज़ होने का पूरा हक है.. मेरी माताजी के बारे में भी अगर कोई अपशब्द कहे तो मैं ज़रूर नाराज़ होऊँगा.. मगर यदि कोई तमिल में या मलयालम में मुझे कुछ बोल दे.. तो मुझे कोई फ़र्क़ नही पड़ेगा.. क्योंकि मुझे वो समझ ही नही आता.. जो शब्द किसी ने कहा है मुझे नही पता की वो गाली है या अपशब्द है.. तो मुझे बुरा नही लगेगा.. पर यदि मुझे पता है की वो अपशब्द है तो अवश्य मैं बुरा मान जाऊँगा.. <BR/><BR/>आर अनुराधा का फ़ैसला ग़लत है या नही ये मुझे नही पता.. पर नीलोफर एक विशुद्ध पाठक है चोखेर बाली की ऐसा मुझे लगा उनकी ब्लॉग लिस्ट देखकर.. फिर आपने भी उन्हे एक औसत पाठक से बढ़कर कहा.. तो क्या वजह रही होगी इस टिप्पणी के पीछे.. इतना क्षोभ क्यो हुआ की उन्हे ये टिप्पणी करनी पड़ी.. जबकि लावन्या जी के साथ उनकी कोई दुश्मनी नही.. शायद वे आए और बताए तो कुछ बात बने.. <BR/><BR/>फिलहाल लावन्या जी से यही कहूँगा.. आपके लिए मेरा सम्मान जो पहले था वही आज भी है. और हमेशा रहेगा.. कृपया मेरी टिप्पणी को अन्यथा ना ले ये आपके खिलाफ नही है बस एक सोच के खिलाफ है.. और विचारो में असमानता होना बहुत ही स्वाभाविक है.. इस से व्यक्ति की दूसरी बातो पर कोई प्रभाव नही पड़ता.. <BR/><BR/>आप दिल छोटा ना करे.. अभी बहुत लंबा सफ़र तय करना है.. <BR/>मसिजीवी जी के लिए तो यही कहूँगा की आपने बेबाकी से अपनी बात रखी.. जो मुझे बहुत पसंद आई.. इस तरह की बाते अक्सर लोग अनाम रहकर किया करते है..कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-35834569808513069152009-03-14T09:12:00.000+05:302009-03-14T09:12:00.000+05:30बुरी बात है आजकल आप हमारे क्षेत्र मे दखल दे रहे है...बुरी बात है आजकल आप हमारे क्षेत्र मे दखल दे रहे है मास्साब बुरे फ़सेगे किसी दिन . गुरुदक्षिणा देकर ही ऐसे कार्य शुरू करे . अपने को एक लव्य ना समझे जी :)Arun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-42691923043065620122009-03-14T00:16:00.000+05:302009-03-14T00:16:00.000+05:30@ लावण्या हॉं वाकई इस टिप्पणी को लेकर हमारी प्रत...@ लावण्या <BR/>हॉं वाकई इस टिप्पणी को लेकर हमारी प्रतिक्रियाएं केवल हमारे 'पाठ' पर आधारित हैं...नीलोफर के विचार एकदम भिन्न भी हो सकते हैं। <BR/><BR/>निउणिया (उफ निर्गुणिका) नागर के नाच्यौ बहुत गोपाल की पात्र तथा हिन्दी साहित्य में दलित विमर्श की कल्पना इसकी उपेक्षा कर संभव नहीं है। यह जन्म से ब्राह्मण पात्र एक मेहतर का साथ चुनती हे तथा जल्द समझ जाती है कि बिना पूरी तरह से मेहतर बने इस समुदाय के साथ की बात केवल हवाई ही है...मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-31409241319318916362009-03-13T23:11:00.000+05:302009-03-13T23:11:00.000+05:30कितनी ब्राह्मणियों में निउणिया बनने का साहस होता ह...कितनी ब्राह्मणियों में निउणिया बनने का साहस होता है। हमारी संवेदनशीलता अक्सर त्वचा के ऊपर ऊपर ही होती है। <BR/><BR/>'भारतीय' होने की ही त्रासद विरासत है भंगी/चमार/दलित होना, वरना आप खुद ही गिना रही हैं कि गैर<BR/> भारतीय... इस त्रासदी से उतना ग्रस्त नहीं।<BR/>---------------------------<BR/>मसिजिवी जी,<BR/>'सँवेदनशीलता' मेरी तो <BR/>परिपक्व ही हुई है -<BR/>फिर कह रही हूँ <BR/>मैँ,<BR/> सभी को एक समान ,<BR/> सन्मानित दर्जा देती हूँ <BR/>ब्राह्मण, <BR/>निऊणियाँ <BR/>( ये शब्द पहली बार ही<BR/> सुन रही हूँ :)<BR/> का फर्क मेरे मन मेँ तो है ही नहीँ -<BR/>और भँगी, चमार या कोई भी जाति या स्त्री पुरुष पर हम उनसे पहले' भारतीय' भी हैँ ही -<BR/>परदेसी हूँ परँतु भारतीय मूल की भी हूँ ..और उससे आगे, हम सभी इन्सान हैँ <BR/>That is undisputed , obvious - fact -<BR/>Here , there are Class & Color boundries & prejudices which are going through change - slowly but surely - <BR/>और नीलोफर जी की बात ये है कि अपना कमेन्ट लिखा और अब<BR/> खामोश हैँ ! <BR/>सच मानिये <BR/>हम और आप <BR/>'अन्तर्मन का विश्लेषण'<BR/> करते रहेँ <BR/>पर मै ,<BR/>उनका क्या अभिप्राय है<BR/> ये जानना चाहती हूँ <BR/>ताकि मैँ भी समझ पाऊँ कि,<BR/> मेरी कहाँ भूल हुई है - <BR/>स स्नेह, <BR/> <BR/>- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-41316242425584518002009-03-13T22:22:00.000+05:302009-03-13T22:22:00.000+05:30लावण्या दी, और हम तो पुराने जमाने के हैं जी चमारिन...लावण्या दी, और हम तो पुराने जमाने के हैं जी चमारिन का नया अर्थ पता नहीं है। <BR/><BR/>वरना आज तो भारत में इस जाति का होने का फर्जी प्रमाणपत्र बनवाने को अनेक लोग अदालतों दफ्तरों में भटकते नजर आते हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-83130449679458303782009-03-13T21:30:00.000+05:302009-03-13T21:30:00.000+05:30@सिरिल :)) हा हा। आपके बिना कहे ही यकीन है... वो ...@सिरिल :)) हा हा।<BR/> आपके बिना कहे ही यकीन है... वो प्रोग्रामर तो यकीनन उद्यमी बालक है.. बेचारा तो कतई नहीं।<BR/><BR/>लावण्या- आशा है मेरे किसी कथन से संदेश नहीं जा रहा कि मैं किसी के प्रति भाषिक हिंसा का समर्थन कर रहा हूँ..नहीं कतई नहीं। यहॉं तो केवल हमारे 'अंतर्मन' के विश्ले<BR/>षण का प्रयास भर है कि कैसे किसी संभ्यता के एक बड़े हिस्से ने इन संज्ञाओं को सहा है सह रही हैं हम उनके संघर्षों के समर्थन का दावा भी करते हैं पर उस अपमान की छवि भर को झण भर के लिए साझा करने भर से सहम जाते हैं। कितनी ब्राह्मणियों में निउणिया बनने का साहस होता है। हमारी संवेदनशीलता अक्सर त्वचा के ऊपर ऊपर ही होती है। <BR/><BR/>'भारतीय' होने की ही त्रासद विरासत है भंगी/चमार/दलित होना, वरना आप खुद ही गिना रही हैं कि गैर भारतीय... इस त्रासदी से उतना ग्रस्त नहीं।<BR/><BR/>@ प्रवीण जी शुक्रिया... उम्मीद है किसी ब्लॉगर मीट में मिले तो इस भंगी/चमार के साथ चाय पीने से गुरेज नहीं करेंगे।<BR/>नहीं मास्साब... अब वो चिट्ठाउम्र नहीं रही कि ये वो तरीका अपनाएं.. मन में आता है लिख देते हैं..बस संयोग ही है कि दो पोस्टें पीठ दर पीठ पोलेमिकल हो गई हैं... यूँ इन तीनेक सौ पोस्ओं के बाद सभी जानते हैं कि हमारे लेखन में यूँ भी पोलिमिक्स के तत्व अधिक हैं।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-33319075328917161672009-03-13T20:51:00.000+05:302009-03-13T20:51:00.000+05:30चलिए यदि आपका इतना ही मन है तो कह ही देते हैं .......चलिए यदि आपका इतना ही मन है तो कह ही देते हैं .......भंगी , चमार !!<BR/><BR/>पर सच तो यही है की आज का चमार भी भंगी या मेहतर जाति से उतनी ही दूरी बनाये रखने का प्रयास करते हैं ......जितनी की कोई उच्च वर्णीय जाति !!<BR/><BR/>अतः इसमें बहुत बहस की गुंजाइश मैं तो नहीं समझता हूँ ......आपकी बात से सहमत होते हुए भी कहीं यह अन्य प्रकार की ब्लॉग-लोकप्रियता का हथकंडा तो नहीं ????<BR/><BR/><A HREF="http://masijeevi.blogspot.com/2009/03/blog-post.html" REL="nofollow">आखिर यह लगातार दूसरी कोशिश ?????? </A>प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-63551051010716697592009-03-13T20:49:00.001+05:302009-03-13T20:49:00.001+05:30मसिजिवी जी," मैँ हरिजन कन्या हूँ " ये कुन्दा जी के...मसिजिवी जी,<BR/>" मैँ हरिजन कन्या हूँ "<BR/> ये कुन्दा जी के शब्द हैँ <BR/>और २५ वर्ष उम्र तथा अन्य जानकारियाँ भी <BR/>कुन्दा जी की दी हुईँ हैँ <BR/>मैँने उनका बयान जैसा कहा<BR/> वेसा प्रस्तुत कर दिया है - <BR/>"दलित" भगी चमार <BR/>बनिया कायस्थ <BR/>इत्यादी के बजाय <BR/>"भारतीय " <BR/>ही कहना चाहीये<BR/> हमेँ,<BR/> अपने आपको - <BR/>क्या कहना है आपका ? <BR/>- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-21924702687174770422009-03-13T20:49:00.000+05:302009-03-13T20:49:00.000+05:30बाकी तो पोस्ट पढ़ के समझता हूं लेकिन यकीन मानिये व...बाकी तो पोस्ट पढ़ के समझता हूं लेकिन यकीन मानिये वो प्रोग्रामर बेचारा नहीं है :)CGhttps://www.blogger.com/profile/01338787191916748749noreply@blogger.com