tag:blogger.com,1999:blog-18436534.post3338755902630656260..comments2024-01-10T15:57:22.152+05:30Comments on मसिजीवी: जूते का फीता खरीदना क्योंकर पिछड़ना हुआमसिजीवीhttp://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-82088179208013625162008-04-21T20:39:00.001+05:302008-04-21T20:39:00.001+05:30do take ki baatdo take ki baatतीसरी आंखhttps://www.blogger.com/profile/17326026042106304025noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-43632768016171831422008-04-21T20:39:00.000+05:302008-04-21T20:39:00.000+05:30do take ki baatdo take ki baatतीसरी आंखhttps://www.blogger.com/profile/17326026042106304025noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-14868219581054567572008-04-21T20:01:00.000+05:302008-04-21T20:01:00.000+05:30हमने तो मन बना लिया है कोई कुछ कहे-हम पिछड़े ही ठीक...हमने तो मन बना लिया है कोई कुछ कहे-हम पिछड़े ही ठीक है मगर बाजार के साथ नहीं बहेंगे.<BR/><BR/>बहुत अच्छा मुद्दा लिया.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-36583498033443382182008-04-21T19:28:00.000+05:302008-04-21T19:28:00.000+05:30सही कहा आपने... मध्यम वर्गीय लोगों को आये दिन इस त...सही कहा आपने... मध्यम वर्गीय लोगों को आये दिन इस तरह शर्माना पड़ता है!<BR/>दरअसल आई टी क्षेत्र में लोगों को इतना पैसा मिलता है कि वे मुंहमांगे दाम में चीजें खरीद लेते हैं और इस तरह से बाजारों/विक्रेताओं को भी आदत पड़ जाती है।<BR/>( यहां आई टी वाले मित्र नाराज ना हों,मैं यह नहीं कह रहा कि उन्हें पैसे फालतू में ही या उनकी योग्यता से ज्यादा मिलते हैं)सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-79644724325215636172008-04-21T18:40:00.000+05:302008-04-21T18:40:00.000+05:30आपकी बात बहुत सही है । कोई जमाना था कि फाउन्टेन पै...आपकी बात बहुत सही है । कोई जमाना था कि फाउन्टेन पैन भी सुधारे जाते थे । अब तो घड़ी सुधारना भी हास्यास्पद हो रहा है । वस्तु बिगड़ी तो फैंक दो । ना भी बिगड़ी तो फैंककर नयी खरीद लो । वैसे छोटी जगहों में आज भी यह सब ठीक करने का काम हो जाता है । आपकी पुरानी दिल्ली में भी शायद होता होगा । मैं तो बच्चों से कहती हूँ जो दुरुस्त कराना हो यहाँ ले आओ ।<BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18436534.post-46211935846462115912008-04-21T17:37:00.000+05:302008-04-21T17:37:00.000+05:30यथार्थ। अब क्रेता और विक्रेता के संबंध पहले जैसे न...यथार्थ। अब क्रेता और विक्रेता के संबंध पहले जैसे नहीं रहे जब विक्रेता क्रेता को इज्जत की नजर से देखता था। आपको एक सच्ची बात बताता हूँ। कुछ दुकानें ऐसी हैं जहाँ आप सामानों को देखकर ही छोड़ दिए तो दुकानदार चिल्लाने लगता है कि जब नहीं खरीदना था तो मेरा समय क्यों व्यर्थ किया। वह पसंद और नापसंद की बात नहीं करते हैं।Prabhakar Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04704603020838854639noreply@blogger.com