Friday, June 22, 2007

हमारा बि‍ब और उनकी भड़ास....शुक्रिया पेजफ्लेक्‍स

पेजफ्लेक्‍स क्‍या है इसे अभी समझने की कोशिश ही कर रहा हूँ। तकनीकज्ञों की दुनिया मे कलमची समझकर उपहास का पात्र हूँ और हिंदी के लोग कीबोर्ड की गिटर-पिटर करने वाला समझतें हैं, इस दो दुनियाओं से परिचय ने अन्‍य चीजों को समझने के मेरे तरीके पर भी प्रभाव डाला है। मसलन इस पेजफ्लेक्‍स को लें रवि रतलामी के चिट्ठे पर इसे देखा तो रोचक चीज लगी। खोजबीन की तो पता लगा एक किस्‍म का मनचाहा होमपेज बनाने की सेवा ही तो है जो शायद पहले गूगल या याहूवाले भी दे चुके हैं। पर इस्‍तेमाल देखा तो उस सब से ज्‍यादा काम की चीज लगी क्‍योंकि ये पर्सनल व पब्लिक में शफलिंग की गुंजाइश देती है आप अपने फ्लेक्‍स को प्रकाशित कर सकते हैं या शेयर कर सकते हैं। रविजी ने अपने चिट्ठे पर अपने अपने टंबलर के एग्रीगेशन को प्रकाशित किया है और बाईं ओर देखें हमने इस पेजफ्लेक्‍स के ब्‍लॉग को अपनी स्‍क्रेपबुक बनाकर यहॉं चेप दिया है जिसपर आप चाहें तो कमेंट भी कर सकते हैं पिक्‍चर इन पिक्‍चर (पिप) की तर्ज पर ये हुआ ब्‍लॉग इन ब्‍लॉग (बिब)। इसके अलावा एक पेज हमने ऐसा बनाया है जिसमें हिंदी के तीन एग्रीगेटर यानि जितेंद्रजी का नारद, प्रतीक का हिंदी ब्‍लॉगरवि रतलामी का टंबलर स्‍क्रेप। हमने इन तीनों से मिलाकर जो पेज बनाया वो यहॉं है। जो कुछ कुछ इस तरह दिखता है।




अब ये कोई तकनीकी कारीगरी नहीं है लेकिन इस छोटी सी एप्लिकेशन से कई बातें दिखाई देती हैं- मसलन भड़ास को लीजिए – ये भी एक किस्‍म का मोहल्‍ला ही है इसके लिंक रवि के टंबलर पर दिखते हैं ये मस्‍त लेखन है लेकिन नारदीय शुचिता से मुक्‍त (पता नही इसे तारीफ कहें की कमी- फिलहाल बिना मूल्‍य आकलन, ‘वैल्‍यू जजमेंट’ के समझा जाए) है। इस पर रियाज भी हैं ओर अभिषेक भी पहुँच जाते हैं कभी कभी और यशवंत आदि आदि हैं। नारद पर वे चलती फिरती नजर रखते हैं कुछ कुछ फक्‍कड लेखन, पर बांधता है- बेपरवाह है इसलिए कुछ कुछ सच्‍ची ब्‍लॉगिंग जैसा प्रभाव देता है पर भाषा के मामले में सब की ऐसी तैसी करने वाला लेखन है। आज जो मांधाता साहब ने वो सेक्‍स ट्वाय के बहाने से तैं-पैं की है उसके लिए वह किसी बहाने का मोहताज नहीं।....तो इस भड़ास तक हम पहुँच पाते हैं इस नए औजार से। और खुद के पर्सनल व पब्लिक पक्ष के बीच के स्‍क्रेप को पहुँचा देते हैं आप तक। और अगर आप हमारे उस त्रिदेवी पेज पर जाएं तो आप अगल बगल में टिके इन फीडों से देख सकते हैं कि कुछ कितना है जो जो हिंदी ही है और आसपास ही है। हालांकि जैसा मैंने स्‍क्रेप किया कि इसका सैद्धांतिक ढांचा अभी समझने की कोशिश ही कर रहा हूँ।

8 comments:

  1. बहुत बढ़िया.

    त्रिनेत्रीय दुनिया है यह तो... आपकी कल्पनाशीलता ने देखिए कमाल कर दिया!

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  2. त्रिदेवी पेज का कॉन्सेप्ट पसंद आया. बढ़िया इस्तेमाल है तकनिकी का.

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  3. Anonymous9:09 PM

    अरे जब मै साथ हू तो यशवंत के भडास पर जाकर गालिया निकालने मे क्या हर्ज है दिल मे मत रख जब मस्त कह रहा है तो चल

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  5. Web 2.0 की माया है जी सब, अभी तो बहुत सी चीजें आएंगी। आपका प्रयास पसंद आया।

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  6. स्पष्ट करें 'भडास' का टैग क्यों है ? क्या आप अपने-अपने 'नारदों' को बढ़ावा देना चाहते हैं ? गोपीचन्द जासूस नज़र रखे हुए है !

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  7. सब के सब अब नारद बन जायेगें तो भगवान कौन होगा ? :)


    मसिजीवी जी को प्रचार के लिये गया गया होगा, तभी इन्‍होने अपने लेख मे टैग किया है। अच्‍छा प्रचार है, हमें भड़ास पर पर पहुँचा कर अपनी भड़ास निकालने के लिये धन्‍यवाद1

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  8. गया मे पहले गया को कहा पढें धन्‍यवाद

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