Sunday, December 30, 2007

संडे दिन ही है चिरकुटई का

कुछ ब्‍लॉगर मित्र संडे की ब्‍लॉगिंग को संडे चिरकुटई कहकर करते हैं, कुछ समूची ब्‍लॉगिंग को चिरकुटई घोषित कर चुके हैं। अब प्रमोदजी से तो कोई पंगा लेने से रहा...जब वे कहते हैं कि वे महान हैं तो हम मान लेते हैं कि वे हैं और अब वे कह रहे हैं कि वे चिरकुट हैं तो हम होते कौन हैं कहने वाले  कि वे नहीं हैं- वे महान हैं, वे चिरकुट हैं और जब जक कि वे और खोजें कि वे इसके अलावा क्‍या क्‍या हैं हम माने लेते हैं कि वे महान चिरकुट हैं।

लेकिन बाकी लोग जो वीकडेज़ पर तो नहीं होते पर संडे को उन्हें लगता है कि वे चिरकुट हो गए हैं उनसे हमारी पूरी सहमति है। संडे दिन ही है कम्‍बख्‍त चिरकुटई का। अगर आप पतनशील हैं‍  यानि ताजिंदगी अविनाश टाईप हमेशा पोलिटिकली करेक्‍ट होने का बोझा नहीं ढोना चाहते कभी कभी वो भी र‍हना चाहते हैं जो आप हैं तो जाहिर है कि आप अचानक संडे के दिन महान स्‍त्री संवेदनशीलता नहीं ओढ़ लेना चाहेंगे। आप अपना दिन रसोई में मसाला भूनते नहीं बिताना चाहेंगे। आप चाहेंगे कि आप शनिवार रात से ही संडे शुरू मानें और देर रात तक जागें, संडे खूब देर तक सोएं। रगड़कर अपनी मोटरसाइकल साफ करें या गोल्फ के डंडे को मखमल के रूमाल से रगड़ें। परांठे का नाश्‍ता करें जिसपर मक्‍खन तैरता फिरे। कंप्‍यूटर के कीबोर्ड पर अलसाई अंगुलिया चलाएं, पोर्न देखें या गेम खेलें। नाश्‍ता खत्‍म होते न होते लंच का समय हो चुका हो पर बिना तंग किए कोई इंतजार करे कि कब आपका लंच का मन है और जब आप अंगड़ाते हुए डाइनिंग टेबल तक पहुँचें ठीक तब ही आपका मनपसंद खाना परोस दिया जाएं.....

सूची और लंबी है पर लुब्‍बो लुआब बस इतना है कि संडे को आप लोकतंत्र और संवेदनशीलता को छुट्टी  पर भेज देना चाहते हैं और सामंतवाद और मर्दवाद की छांव में पसरना चाहते हैं।chirkut आप इनमें से कुछ कुछ कर पाने में सफल भी हो जाते हैं मसलन आप लकी हैं तो आपको परांठे का नाश्‍ता मिल जाता है वगैरह वगैरह पर जरा इन कामों पर फिर नजर डालें इनसे ज्‍यादा चिरकुटई और क्‍या होगी।  बोनस में आपको कई और काम करने ही होंगे जैसे आपको नाई की दुकान की तरफ ठेल दिया जाएगा साथ में संलग्नक की तरह एक बच्‍चा कि जरा इसे भी हेअरकट दिलवा दीजिए। कबाड़ी बुलवा लिया जाएगा और आप अपने तमाम लीवर व सिंपल मशीन के ज्ञान से जानते हैं कि इसका फुल्‍क्रम सेंटर में नहीं है तो क्‍या...आप सहजता से मूर्ख बनना स्‍वीकार कर लेते हैं। चिरकुट हैं और क्‍या। सत्रह किलो अखबार छ: रुपए से कितने हुए साब..आप हिसाब लगाते हैं सत्रह छिका एक सौ दो ...पर बोलते नहीं चिढ़े हुए हैं देगा  तो फिर भी एक सो दो ही न। आप उसके जाने का इंतजार करते हैं ताकि फिर से अपने संडे में पहुँच सकें। संडे ससुर एक ही है, चौबीस ही घंटे का और उससे आपकी उम्‍मीदें बहुत हैं...कारपेंटर का काम, बिजली का भी, इसका उसका, बच्‍चे को एलसीएम सिखाने का और छुट्टी मनाने का भी। फिर से इन कामों पर नजर डालो जरा...सब एक से बढ़कर एक चिरकुटई काम।

और कुछ नहीं तो खीजकर कंप्‍यूटर आन करो और गिना दो दूसरे चिरकुट ब्‍लॉगरों को कि संडे के दिन आपने क्‍या क्‍या चिरकुटई की। संडे दिन ही है चिरकुटई का....।

3 comments:

  1. अच्‍छा तो इसीलिए आपने यह चिरकुटयाई लिख दी. बहुत खूब.

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  2. अच्छा लेख है । यदि कोई हमसे पूछे तो हम आपको सप्ताह में ३ संडे तो दिलवा ही दें । आपके छात्र भी खुश रहेंगे ।
    घुघूती बासूती

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  3. गुरु अपना तो संडे को भी संडे नहीं होता, इसलिए चिरकुटई से बचे रहते हैं.

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