सराए में राकेश ने हिन्दी ब्लॉगिंग पर कार्यशाला का आयोजन किया था। रविकांत थे, सराए की शोधकर्त्री होने के नाते नीलिमा थीं। विनीत भी थे और चोटी के ब्लॉगर अविनाश थे। बंधुआ घाघ होने के नाते हम भी पहुँचे थे। सराए कॉपीलेफ्ट, ओपन सोर्स की अहम जगह है इसलिए बात सहज ही कापीराइट वगैरह पर पहुँच गई। रविकांत का कहना था जिससे हमारी पूरी सहमति है कि जिन्हें लगता है कि उनका लिखा सिर्फ 'उनका' रहे उन्हें केवल अपनी डायरी में लिखना चाहिए, इंटरनेट उनकी जगह नहीं है ब्लॉगिंग तो बिलकुल नहीं। यहॉं कितना भी हल्ला कर लो टेक्स्ट इस या उस वजह से इधर उधर जाएगा ही, जाना भी चाहिए। अचानक अविनाश ने मानो धमाका किया, कहा कि उन्होंने अपने चिट्ठे को नकल से बचाने का इंतजाम कर लिया है। अविनाश तकनीक के मामले में हमारी तरह पग्गल तो नहीं हैं पर ग़ीक भी नहीं हैं इसलिए हम जानते थे कि कापीस्केप वगैरह (यानि आप राइट क्लिक कर कापी या सेलेक्ट करने की कोशिश करें तो कोई स्क्रिप्ट आपको रोक लेती है) किया होगा- जो उन्हें तो चिढ़ा देता हे जो समीक्षा, प्रसार वगैरह के लिए आपको बढ़ावा देना चाहते हैं पर जो वाकई चोरी करके कंटेट इस्तेमाल करना चाहते हैं उन्हें नहीं रोक सकता। (दरअसल कंटेट अगर इंटरनेट पर है उसे फैलने से कतई नहीं रोका जा सकता)
केवल बताने भर के लिए मोहल्ला से कापी पेस्ट हाजिर है-
लेकिन फिल्म तो अच्छी तब बनती जब ईशान अच्छा पेंटर भी नहीं बनता या कुछ भी अच्छा नहीं कर पाता तो भी लोग उसे समझते और प्यार देते। हर बच्चा कुछ न कुछ बहुत अच्छा करे ये उम्मीद नहीं करना चाहिए। ये जरूरी तो नहीं है कि वो कुछ बढ़िया करे ही। कोई भी बच्चा एवरेज हो सकता है, एवरेज से नीचे भी हो सकता है। लेकिन इस वजह से कोई उसे प्यार न दे ये तो गलत है।
(हमने कुछ नहीं किया ये ताला ओपेरा पर खुद ही नहीं चलता)
हिन्द युग्म के मामले में काफी बहस से यही तय हुआ था कि कापीराईट समर्थकों के लिहाज से भी कंटेट पर ये ताला बेकार है। पर हिन्द युग्म के मामले में ये फिर भी थोड़ा समझ में आने वाली बात थी कि वे नए आगे आने की कोशिश करते कवियों की जगह है और कविता पर रचनात्मक मालिकाना दावे को बहुत अच्छा न भी कहें तो भी ये समझ में तो आता ही है।
पर मोहल्ला तो बंधुवर है ही मोहल्ला। मेरा तेरा इसका उसका मोहल्ला। क्या ये सिर्फ उनका है जो इसमें रहते हैं कि उनका भी है जो इससे गुजरते भर हैं। चॉंदनी चौक में कटरा, कूचा, मोहल्ला, बाजार ये सब अलग अलग किस्म की बसावटें मानी जाती हैं। कूचे में जरूर इस बात का प्रावधान होता है कि बाहर ही एक दरवाजा है जिस पर ताला चाहें तो लगा सकते हैं पर उस पर भी ताला लगाते नहीं हैं। आप तो माहल्ला ही तालाबंद किए दे रहे हैं। अरे मित्र जो चोरी कर आपका कंटेंट ले जा रहे हैं वे ले तो मोहल्ला ही रहे हैं न। जहॉं ले जाकर उसे टिकाएंगे वो ही खुद मोहल्ला हो जाएगा जो दरअसल 'आपका' ही होगा। वैसे ये भी मजेदार हे कि हिन्द युग्म और मोहल्ला दोनों ही सामुदायिक ब्लॉग हैं जिन्हें सामग्री के प्रचार (भले नाम हटाकर) से कम गुरेज होना चाहिए क्योंकि इन ब्लागों पर भी मुख्य मॉडरेटर की सामग्री कम होकर अन्य साथियों की अधिक होती है।
खैर अपनी तो राय यह है कि भाई लोग, जो मोहल्ला तालाबंद है वह भी क्या मोहल्ला हुआ।
मार्क्स ने कभी कहा था...
ReplyDeleteचोर इतने चतुर न होते तो ताले इतने एडवांस नहीं हो पाते।
ग्रेट गुरु। लौटती डाक से ताला हटाता हूं। ग़लती हो गयी थी। मुआफी मुआफी।
ReplyDeleteहम्म, सोचने की बात है ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
:)
ReplyDeleteबहुत खूब. पता चल गया कि आप चोरी के भी उस्ताद हैं.
ReplyDeleteइंटरनेट पर कॉपीराइट का उल्लंघन रोकना उतना ही मुश्किल है जितना की वर्षा की बूंदे रोक पाना। यदि आपकी चिट्ठियां कॉपीलेफ्ट हैं तो यह सारी झंझटों से मुक्ति।
ReplyDeleteआपका सही कहना है.
ReplyDeleteइंटरनेट एक्सप्लोरर पर व्यू >पेज सोर्स के जरिए सामग्री की नकल आसानी से की जा सकती है.
ताला, सचमुच चोरों के लिए नहीं होता.
ऊपर सामग्री की जगह तालाबंद सामग्री पढ़ें
ReplyDeleteदिमाग चलाइये ताले के बहुत तोड़ है :)
ReplyDeleteओपेरा की कोई नई बात नही है
दिलचस्प पोस्ट । चोरी की फिक्र नही करनी चाहिए। सब प्रभु पर छोड़िये।
ReplyDeleteइब्ने इंशा साहब ने कहा है-
इस जग में सब कुछ रब का है
जो रब का है, वो सबका है
ईश्वर आपका भी भला करे।