कुछ मित्रों ने फोनकर बधाई दी...मुबारक आपको पला पलाया बेटा मिला है...अविनाश। हम भय से कॉंप गए...पता किया, पता चला कि अविनाश ने नीलिमा पर ये टिप्पणी की है-
कुपुत्रों का होना एक सबसे बड़ी सजा मानी जाती है...अविनाश के माता-पिता जानें क्यों भुगत रहे होंगे पर अविनाश सा कपूत हमें नहीं चाहिए। वैसे अविनाश कोई भाषा को लेकर असावधान व्यक्ति नहीं है। जरा यशवंत के एसएमएस की भाषा के विश्लेषण को पढें अविनाश जानते हैं और सही जानते हैं कि 'अपने परिवार का ध्यान रखना' का मतलब एक खतरनाक धमकी है। यूँ भी अपने लेखन में एक एक नुक्ते का इतना ध्यान रखते हैं कि अजीतजी शाबासी देते होंगे। वैसे नुक्ते कठपिंगल की पोस्ट में भी एकदम सही लगे हैं, ये अलहदा बात है।
भाषा में इतने सचेत अविनाश पत्रकार, नई पत्रकार स्मृति दुबे को सनसनी गर्ल कहें और टोके जाने पर नीलिमा को भूखा सांड और माताजी जैसी संज्ञाओं से अकारण नवाजने लगें ये पचता नहीं। इन 'मूर्ख' चोखेरबालियों को समझना चाहिए था कि जब इतना बड़ा यज्ञ चल रहा हो तो टोक नहीं लगानी चाहिए। इतनी मुश्किल से मौका मिला है ऐसे में ये कमअक्ल 'टोक गर्ल्स' मुदृदे को भटका रही हैं। यही कारण है संभवत पहली बार अविनाश ने अपने ब्लाग से कोई टिप्पणी मिटाई ये टिप्पणी नीलिमा ने की थी जिसमें कोई गाली गलौच नहीं थी।
कुछ अधिक गंभीर नजरिए से देखें तो ब्लॉगजगत में वर्चस्व की लड़ाई अब इतनी तीखी होने लगी है कि सामान्य शिष्टाचार तक लोग भूल रहे हैं...असहमति से सम्मान इतना कठिन भी नहीं। कोई झट से घोषित कर देता कि साथी ब्लॉगर/लेखिका ने बूढे प्रकाशक को साधकर अपनी किताब छपवाई, कोई दोस्ती निबाहने के लिए संघर्षरत पत्रकार को 'सनसनी गर्ल' घोषित करने पर उतारू है। और अब सिर्फ इसलिए कि आपको चोखेरबाली अपनी दुकानदारी के मुनासिब नजर नहीं आती इसलिए आप उन्हें भूखा सांड, माताजी और न जाने क्या क्या कहेंगे। अविनाश... थोड़ा थमो... यशवंत का यह कृत्य खुश्ा होने की नहीं चीज नहीं है (कि बच्चू अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे) वरन खेद की बात है। जैसे तुम्हें खेद है कि यशवंत कभी तुम्हारे मित्रवत रहा मझे भी ऐसे किसी संबंध का खेद है जो अविनाश से कभी रहे हों।