Saturday, February 25, 2006

कामरेड की मौत पर एक बहस

वह
पलक झपकाने भर तक को तैयार नहीं
उत्‍साह से कहती हैं
उसकी ऑंखें
देखना जल्‍द ही सवेरा होगा

मैं मुस्‍का देता हूँ हौले से बस।
होती हो सुबह- हो जाए
मुझे गुरेज नहीं
पर तुम सा यकीन नहीं मुझे
सवेरे के उजाले में

सच मानों मैं तो डरता हूँ
उस बहस से- जो तब होगी
जब अँधेरे में अपलक ताकने से
पथरा जाएंगी तुम्‍हारी ऑंखें
साथी कहेंगे- कामरेड
अँधेरे ने एक और बलि ले ली
मैं कहूँगा
ये हत्‍या उजाले ने की

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