पाठक लोग पहला सवाल की धार है
आपकी चिट्ठाकारी का भविष्य क्या है ( आप अपने मुंह मियां मिट्ठू बन लें कोई एतराज नहीं)
अब आप तो जानती हैं आपसे भी पैसे कई बार उधार लिए हैं हम। ये हिंदी कमबख्त हमारी माशूक है पीछा ही नहीं छोड़ती। सुनील दीपक जी पूछत रही कि इंजीनियरिंग काहे छोड़ दिए। अरे खब्ती रहे और क्या, और फिर छोड़े कब। इंजीनियरिंग में थे तो हिंदी हिंदी किया करते थे अब हिंदी में कंप्यूटर कंप्यूटर चिल्लाते हैं। ...हॉं तो क्या कह रहे थे। हॉं हिंदी... तो याद तो होगा ही आपको कि जब यूनिकोड ससुरा पईदा नहीं हुआ था तबहीं मैगजीन निकाले रहे हिंदी में ऊसका नाम रहिन 'ईत्रिका' और नारद उ ह तो ससुर हमार फांट का नाम रहि। फ्रीसर्वर पर थी बाद में डोमेन भी लिया पर का करिं बेरोजगारी अइसन पकरी कि अबहिं तक ना छोडि़। तो उह इत्रिका ओर उससे पहले xoom पर साहित्य, (इत्रिका के टाइटिल पर लिखा होता था हिंदी की पहली इंटरनेट पत्रिका) (ह ह ह जवानी में विश्व, सवसे पहले, ....कितना महत्व रखती हैं।) तो हम कहि रह हैं कि चिट्ठाकारी तो है ही वो चीज जिसके लिए हम हैं और तबसे इसके साथ हें जब ये होती ही नहीं थी पर सही वक्त पर सही जगह पर अनूपजी, जीतू भैया थे वे वो सब कर गए...अच्छा किया। हम भी अपना भर करेंगे...भारतेंदु वो ही सही हम शिवशम्भू ही सही। कभी कभी कंप्यूटर की पुरानी इत्रिका उत्रिका की फाइलें खोलकर देख लेते हैं...खुश होते हैं जो सोचा था कोई तो कर रहा है। और रही चिट्ठाकारी के भविष्य की तो सुनो वोह तो है आपके हाथ। मतबल ई कि नए लोगल को लाओ भविष्य बनाओ।
आपके पसंदीदा टिप्पणीकार।
आपहीं हैं और कौन। और किसी की तस्वीर में उह बात नहीं। वैसे एक प्रियंकर भैया रहिन पर ऊ रूसे हुए हैं। लजा लो लजा लो पर बुरा मानने की बात नहीं है्....होली है न।
तीसरा सवाल किसी एक चिट्ठाकार से उसकी कौन सी अंतरंग बात जानना चाहेंगे?
सभी व्यसनी चिट्ठाकारों से पूछन का है कि भैयन हमार तो चलो कोई बात एक तो हम सनके हुए हैं और घर-उर में सब लोगन को पहिले ही से ये मालूम रही फिर हमार जो घरआली हैं वो भी समझों कि इसे कैटेगरी की हैं जो जिआदा बुरा-उरा नहीं मानती। पर भैया लोग आप जो जी जान लगाकर खून फुंकर रहि हो...बहुत उमीद वुमीद तो नहीं रखे हो न। सवाल इह है कि कइसे मनाते हो भैया हमार भौजी लोग को..।

वह बहुत मामूली बात जो आपको बहुत परेशान किए देती है?
लो कल्लो बात। ससुरी बड़ी बात की तो औकात नहीं कि हम परेशान हों। अब नीलिमा की सादी हुई ...हुए हम परेशान...। बाजा आदमी होता तो बजीराबाद के पुल से छलांग लगा देता परेशानी में। नहीं भाई लोग हम परेशान नहींए होते। (हम तो पहिले ही कहे थे मान जाओ होली पर पंगा मत लो नहीं मानी...अब पता नहीं क्या क्या राज खुलेंगे आज।
आपकी जिंदगी का सबसे खूबसूरत झूठ?
अरे ससुर की नाती...हमार जिंदगी ही हईगी खूबसूरत झूठ। सोचत हैं किरांति करेंगे....पता है झूठ है पर खुद ही खुद कहते हैं कि हमें यकीन है। तो ई रहा खूबसूरत झूठ।
अब देखो बुरा लगा होई तो होली पर हमारी गुंझिया भी खुदहिं खा लहीं। ओर हमार का करिबै।