Sunday, September 03, 2006

गोदना, बीयर और मुर्ग-मक्‍खनी: बोल मेरी हिंदी कितना पानी

हॉं मैं शामिल था और निरंतर केंद्र से परिधि की ओर आ-जा रहा था। जी, जनाब दिल्‍ली ब्‍लॉगिया पंचैट हुई, बाकायदा हुई और अच्‍छी हुई। दरबान के 'यस सर' में 'यस' की आपत्तिजनक दीर्घता 'सर' की विनम्रता से कहीं अधिक हावी थी। या शायद वह वैसे ही थी मैनें ही ज्‍यादा पढ़ा। खैर कालक्रम से मैं चौथा ब्‍लॉगर था। (सु)रुचिपूर्ण तैयार होकर आई तीन महिला ब्‍लॉगरों के बाद पहुँचा मैं बेतरतीब पुरुष (खासतौर पर ब्‍लो और
स्‍काउट को यौवनोचित निराशा हुई होगी ......... अब क्‍या करें हम तो ऐसे ही हैं)
एक एक कर

वरुण

शिवम

प्रसूंक

अरुणि

महाराजाधिराज



भी पहुँचे और पंचैट बाकायदा शुरु हुई। कुल हाजिरी नौ, लिंग अनुपात छ: पर तीन का था, गोदना (यानि टैटू) अनुपात भी छ: पर तीन का। मेजबानी व्‍यवस्‍था रही रिवर और
स्‍काउट की

ब्‍लॉगर समुदाय की खास बात रुचिगत वैविध्‍य है। इस नौ की मंडली में दो टेकीज़ ( यानि साफ्टवेयर पारंगत) थे तीन विद्यार्थी, हम दो (यानि मैं ओर रिवर) विश्‍वविद्यालय अध्‍यापक थे, दो पत्रकार थे और अन्‍य 'अन्‍य' थे। जाहिर है चर्चा के लिए अनंत विषयों की संभावना थी आर हुई भी- पत्रकारिता की दलदल को नापा गया, अध्‍यापिकाओं की उम्र को आंका गया, अनुपस्थित ब्‍लॉगरों की निंदा का सुख लिया गया । गोदने पर विस्‍तृत चर्चा हुई- गोदना संप्रदाय से तीन जीव थे, गोदना प्रशंसक एक और गोदना विरोधी एक - शेष तटस्‍थ । निष्‍कर्ष रहा- देह मेरी मर्जी मेरी। ति‍तलियॉं थीं, डेविड का सितारा था और अमूर्तन भी था। रिवर की सिफारिश वाला बटर चिकन  तो किसी को न मिला पर मिली तीन चार चरण बीयर, पनीर टिक्‍का, दाल रोटी और ढेर सारी मूंगफली और बाद में शौचालय शिकार (Loo Hunting) को विवश करती कॉफी डे की कॉफी। अच्‍छा समय रहा। और हॉं । बटर चिकन इसलिए नहीं मिला कि मीनू में खोजने वालों को उम्‍मीद न थी कि बटर चिकन को मुर्ग मक्‍खनी भी कहा जा सकता है।

2 comments:

रवि रतलामी said...

...शौचालय शिकार ...

यह समस्या तो तमाम भारत भर में है!

amit said...

खूब, तो हमारे रणबाँकुरे butter chicken को मुर्ग मक्खनी के रूप में ना भाँप पाए!! लक्ख दी लानत!!! ;) :P हम होते तो ऐसा जुल्म कभी ना होने देते, खैर कोई बात नहीं, अगली बार सही!! :)