ब्लॉगजगत में हलकान तत्व की प्रधानता व सजगता देख दिल बाग बाग हुआ जाता है। लोग हैदराबाद की उपेक्षा और वर्धा वालों की निमंत्रण सूची की अनुपयुक्तता से भी दुखी हैं... सजगता भली चीज है इसलिए इन आशंकाओं का स्वागत होना चाहिए। पर हम एक ब्लॉगर नजर से बात साफ कर देना चाहते हैं कि ब्लॉगिंग कोई कूढे का ढेर नहीं कि जिस पर खड़ा होकर कुक्कुट मसीहा होने की घोषणा कर सकें...चलिए एक ब्लॉगर नजर से बताते हैं कि क्यों विश्वविद्यालयी आयोजन उत्सव भले ही हों...भय खाने की चीज नहीं हैं- अनूपजी हमें यहीं छोड़कर कानपुर चले गए हैं हम भी गेस्टहाउस से उसी परिसर में आ गए हैं जहॉं कार्यक्रम था ताजा हाल ये है कि
नामवरी कुर्सियॉं औंधा दी गई हैं, पोडियम दबे पड़े हैं
आसनों की अट्टालिका कुछ कहती है क्या ?
घोषणापत्रों की गत ये हो गई है
अभी संजयजी ने बताया कि हम चौथा पॉंचवा खंबा हैं...
बाहर मीडिया से मिले तो बोल पड़े- यह पांचवा स्तंभ है. संभवत: नामवर सिंह भी मानते हैं कि चार स्तंभ कमजोर हुए हैं इसलिए नियति के कारीगर ने इस पांचवे स्तंभ को गढ़ने का काम शुरू कर दिया है.
गिनती आप खुद कर लें कि कौन सा है पर इतना तय है मीडिया एक खंबा तो है .. देख लें-
बहुत से लोगों को आपत्ति है कि कुछ को फूल मिले कुछ को नहीं... तो जान लें कि हर गुलदस्ते की परिणति एक ही है -'कचरापेटी'
तो तंबू बंबू उखड़ चुका है...लोगों से मिले उन्हें जाना.. मनीषा, आभा, प्रियंकर, अनूप, इरफान, भूपेन, रवि, अफलातून, बोधिसत्व, विनीत, अजीत,प्रवीण....और भी इतने लोग... किसी पर कोई प्राइस टैग नहीं था, कोई बिकाऊ नहीं था... सब जानते हैं मानते हैं कितनी ही संगोष्ठी हों... ब्लॉगिंग वो तो नूंहए चाल्लेगी :)