Thursday, September 07, 2006

अन्‍या से अनन्‍या

प्रभा खेतान की आत्‍मकथा के अंश हमारे युग के खलनायक (बकौल साधना अग्रवाल) राजेंद्र यादव की हँस में नियमित प्रकाशित हुए हैं और हिंदी समाज में लगातार उथल पुथल पैदा कर रहे हैं। अब एक सुस्‍थापित सुसंपन्‍न लेखिका साफ साफ बताए कि वह एक रखैल है और क्‍यों है तो द्विवेदी युगीन चेतना वालों के लिए अपच होना स्‍वाभाविक है। जी प्रभा रखैल हैं किसी पद्मश्री ऑंखों के डाक्‍टर की (अपनी कतई इच्‍छा नहीं कि जानें कि ये डाक्‍टर कौन हैं भला) और यह घोषणा आत्‍मकभा में है किसी कहानी में नहीं। अपनी टिप्‍पणी क्‍या हो ? अभी तो कह सकता हूँ कि -
मेरे हृदय में
प्रसन्‍न चित्‍त एक मूर्ख बैठा है
जो मत्‍त हुआ जाता है
कि
जगत स्‍वायत्‍त हुआ जाता है (मुक्तिबोध)

Sunday, September 03, 2006

गोदना, बीयर और मुर्ग-मक्‍खनी: बोल मेरी हिंदी कितना पानी

हॉं मैं शामिल था और निरंतर केंद्र से परिधि की ओर आ-जा रहा था। जी, जनाब दिल्‍ली ब्‍लॉगिया पंचैट हुई, बाकायदा हुई और अच्‍छी हुई। दरबान के 'यस सर' में 'यस' की आपत्तिजनक दीर्घता 'सर' की विनम्रता से कहीं अधिक हावी थी। या शायद वह वैसे ही थी मैनें ही ज्‍यादा पढ़ा। खैर कालक्रम से मैं चौथा ब्‍लॉगर था। (सु)रुचिपूर्ण तैयार होकर आई तीन महिला ब्‍लॉगरों के बाद पहुँचा मैं बेतरतीब पुरुष (खासतौर पर ब्‍लो और
स्‍काउट को यौवनोचित निराशा हुई होगी ......... अब क्‍या करें हम तो ऐसे ही हैं)
एक एक कर

वरुण

शिवम

प्रसूंक

अरुणि

महाराजाधिराज



भी पहुँचे और पंचैट बाकायदा शुरु हुई। कुल हाजिरी नौ, लिंग अनुपात छ: पर तीन का था, गोदना (यानि टैटू) अनुपात भी छ: पर तीन का। मेजबानी व्‍यवस्‍था रही रिवर और
स्‍काउट की

ब्‍लॉगर समुदाय की खास बात रुचिगत वैविध्‍य है। इस नौ की मंडली में दो टेकीज़ ( यानि साफ्टवेयर पारंगत) थे तीन विद्यार्थी, हम दो (यानि मैं ओर रिवर) विश्‍वविद्यालय अध्‍यापक थे, दो पत्रकार थे और अन्‍य 'अन्‍य' थे। जाहिर है चर्चा के लिए अनंत विषयों की संभावना थी आर हुई भी- पत्रकारिता की दलदल को नापा गया, अध्‍यापिकाओं की उम्र को आंका गया, अनुपस्थित ब्‍लॉगरों की निंदा का सुख लिया गया । गोदने पर विस्‍तृत चर्चा हुई- गोदना संप्रदाय से तीन जीव थे, गोदना प्रशंसक एक और गोदना विरोधी एक - शेष तटस्‍थ । निष्‍कर्ष रहा- देह मेरी मर्जी मेरी। ति‍तलियॉं थीं, डेविड का सितारा था और अमूर्तन भी था। रिवर की सिफारिश वाला बटर चिकन  तो किसी को न मिला पर मिली तीन चार चरण बीयर, पनीर टिक्‍का, दाल रोटी और ढेर सारी मूंगफली और बाद में शौचालय शिकार (Loo Hunting) को विवश करती कॉफी डे की कॉफी। अच्‍छा समय रहा। और हॉं । बटर चिकन इसलिए नहीं मिला कि मीनू में खोजने वालों को उम्‍मीद न थी कि बटर चिकन को मुर्ग मक्‍खनी भी कहा जा सकता है।

Friday, September 01, 2006

बीयर कबाब में हिंदी हड्डी

रिवर ने सुझाया और कई ने हाथों हाथ लिया कि दिल्‍ली में एक ब्‍लॉगर मीट हो ( हिंदी में कहें तो ब्‍लॉगिया पंचैट) और कल सब मतलब कई लोग मिल रहे हैं। खर्चा खाना पीना (रिवर का सुझाव है बीयर और बटर चिकन) अपना अपना। बातचीत कविता पर और अपना-आपकी।
स्‍थान कैफे-100, कनॉट प्‍लेस समय - 2-9-2006 , 1 बजे
हिंदी ब्‍लॉग जगत से तो अकेला ही होउंगा जब तक कि आप में से कोई आने का इरादा न बना ले। रिवर के ब्‍लॉग पर कन्‍फर्म करें।