Sunday, October 19, 2008

शानदार ऑफर- कार्ड खुरचो...मूर्ख बनो

अरसे तक मेरे पास क्रेडिट कार्ड नहीं था, कोई एकाध ही अवसर रहा होगा कि कोई कठिनाई हुई हो मतलब जिंदगी आसान ही थी। फिर गूगलएप्‍स से एक डोमेन लेने की जरूरत पड़ी तब लगा कि घर भर में एक क्रेडिट कार्ड तो होना ही चाहिए। जॉंच परखकर सरकारी बैंक का कार्ड लिया। अब तक कोई धोखा-धड़ी भी नहीं हुई बिल समय से आया और भरा गया इसलिए कोई पेनल्‍टी की भी नौबत नहीं। एकाध बार फालतू के फोन आए...सर अमुक अमुक प्रोडक्‍ट लेंगे क्‍या.. हमने प्‍यार से डपट दिया कि डू नॉट डिस्‍टर्ब रजिस्‍ट्री में नाम दर्ज है, सो फोन आने भी बंद। 

पिछले महीने बिल के साथ आफरों के कार्ड के साथ एक स्‍क्रैचकार्ड था कि आप को अमुक इनाम मिला है, हैंडलिंग चार्ज दें और मंगा लें...हमने इग्‍नोर कर दिया। अब आज फिर बिल आया इस बार के स्‍क्रैच कार्ड में खुरचा तो बताया गया कि वाह.. आपने 3990 रुपए की लुई क्‍वार्टज घड़ी जीत ली है। एकदम मुफ्त, ( बस हैंडलिंग चार्ज 590 रुपए) माथा ठनका... आज तक किसी लाटरी में चवन्‍नी तक नहीं निकली, अब तो नहीं पर बचपन में चूरन गोली वाले की ठेली पर लाटरी खरीदी ही हैं। मामला ललचाऊ लग रहा था, एकठो घडी खरीदने का मन भी था (मन से क्‍या होता हे हिम्‍मत होनी चाहिए, पैसा भी) सोचा चलो इस बार फ्रेंच घडी पहनकर इतराया जाए। स्‍क्रैच कार्ड पर गौर फरमाएं।

SBI offer

एसबीआई बैंक सरकारी है, कार्ड से हमारा पुराना अनुभव भी ठीक ठाक ही था पर गूगल की शरण में जाना ठीक समझा..पहले खोज परिणाम से पता चला कि लुई नाम के ब्रांड की घडी कम से कम डेढ हजार डालर की है। फिर एवीए मर्कें‍डाइजिंग, एसबीआई कार्ड के साथ खोजा तो हाथ लगा कंज्‍यूमर कंप्‍लेंट का यह पेज..ओत्‍तेरेकी ये तो पक्‍की जालसाजी है। यह घड़ी सौ-पचास रुपए की हाथ लगेगी....नकली। मजे की बात यह है कि एसबीआई कार्ड को लपेटे में नहीं लिया जा सकता क्‍योंकि उनका कहना है कि ये आफर तो मार्केटिंग कंपनी के हैं हमें इनसे कोई लेना देना नहीं, और ये भी कि हमारी घड़ी की कीमत अगर हम 3990 /-  कह रहे हैं तो बस है। खोजने से पता चला कि जेटलाइन एयरवेज, स्‍टैंडर्ड चार्टेड बैंक की तरफ से भी ऐसे ही प्रस्ताव बहुत से लोगों को चूना लगा चुके हैं। हमें खुशी है कि फुदककर इनाम मंगाने से पहले हमने गूगलसर्च मार लिया और 590 रुपए का चूना लगने से बच गया। हालांकि ये सवाल बरकरार है कि कानूनन ये बड़ी कंपनियॉं कैसे ग्राहक को चूना लगा सकती हैं और भरोसे का जो नुकसान इन कंपनियों का होता है उसकी ये कोई कीमत नहीं लगातीं।

Tuesday, October 07, 2008

चौप्‍टा- तुंगनाथ- चंद्रशिला से वापसी की हाजिरी में चंद तस्‍वीरें

जैसा कि अनूपजी ने बताया कि हम ताजा ताजा हाथ लगी छुट्टियों का भरपूर लाभ लेने फिर पहाड़ों की ओर पलायन कर गए थे, मानो फिर लौटना ही न पड़ेगा।

ऐसे ही मास्टर मसिजीवी सपरिवार छुट्टी मिलते ही निकल लिये सैर सपाटे को। छुट्टी मिलते ही लोग बाहर इसलिये निकल लेते हैं ताकि लौटकर कह सके -जो सुकून घर में है वो और कहीं नहीं। जब वो निकले तो हमें दे गये चर्चा का जिम्मा।

खैर.. गुरुत्‍वाकर्षण का नियम है कि गई चीज लौटती है। हम भी लौटे हैं। लिए ढेर सी यादें। इस बार रुख किया था भारत का स्विट्जरलैंड कहे जाने वाले चौप्‍टा की ओर। काश विजय गौड़ जी की तरह कह पाता कि सैलानी की तरह नहीं अपने हिस्‍से की तरह पहाड़ को देखा। कह सकता हूँ पर ईमानदार कथन नहीं होगा हॉं ड्राइविंग का आनंद खूब लिया और पहाड़ की खूबसूरती का भी।अस्‍तु.. हमारा रास्‍ता रहा .दिल्‍ली .. कोटद्वार - लैंसडाऊन (बाईपास किया)- खिरसू- खांकरा- ऊखीमठ- चौप्‍टा- तुंगनाथ- चंद्रशिला शिखर- देवरियाताल- ऊखीमठ- देवप्रयाग-कौडियाला-ऋषिकेश- दिल्‍ली

कई बातें हैं कहने की, पर फिलहाल वापसी की हाजिरी भर लगा रहे हैं। इन चंद तस्‍वीरों के स्‍लाइडशो के साथ।