Tuesday, October 07, 2008

चौप्‍टा- तुंगनाथ- चंद्रशिला से वापसी की हाजिरी में चंद तस्‍वीरें

जैसा कि अनूपजी ने बताया कि हम ताजा ताजा हाथ लगी छुट्टियों का भरपूर लाभ लेने फिर पहाड़ों की ओर पलायन कर गए थे, मानो फिर लौटना ही न पड़ेगा।

ऐसे ही मास्टर मसिजीवी सपरिवार छुट्टी मिलते ही निकल लिये सैर सपाटे को। छुट्टी मिलते ही लोग बाहर इसलिये निकल लेते हैं ताकि लौटकर कह सके -जो सुकून घर में है वो और कहीं नहीं। जब वो निकले तो हमें दे गये चर्चा का जिम्मा।

खैर.. गुरुत्‍वाकर्षण का नियम है कि गई चीज लौटती है। हम भी लौटे हैं। लिए ढेर सी यादें। इस बार रुख किया था भारत का स्विट्जरलैंड कहे जाने वाले चौप्‍टा की ओर। काश विजय गौड़ जी की तरह कह पाता कि सैलानी की तरह नहीं अपने हिस्‍से की तरह पहाड़ को देखा। कह सकता हूँ पर ईमानदार कथन नहीं होगा हॉं ड्राइविंग का आनंद खूब लिया और पहाड़ की खूबसूरती का भी।अस्‍तु.. हमारा रास्‍ता रहा .दिल्‍ली .. कोटद्वार - लैंसडाऊन (बाईपास किया)- खिरसू- खांकरा- ऊखीमठ- चौप्‍टा- तुंगनाथ- चंद्रशिला शिखर- देवरियाताल- ऊखीमठ- देवप्रयाग-कौडियाला-ऋषिकेश- दिल्‍ली

कई बातें हैं कहने की, पर फिलहाल वापसी की हाजिरी भर लगा रहे हैं। इन चंद तस्‍वीरों के स्‍लाइडशो के साथ।

 

 

 

13 comments:

Anil Pusadkar said...

तस्‍वीरें बयां कर रही है आपकी यात्रा बहुत यादगार रही है।

Anonymous said...

बहुत खूब, तो आप भी तुंगनाथ हो आए! आशा है कि चोपटा से तुंगनाथ की चढ़ाई ने मन मोह लिया होगा, मेरा तो दोनो बार मोह लिया था! :)

वैसे आप सिर्फ़ तुंगनाथ के लिए निकले थे कि खिरसू आदि भी घूमते हुए निकले? मेरे ख्याल से वह रास्ता थोड़ा लंबा है दिल्ली-हरिद्वार-देवप्रयाद-रुद्रप्रयाग-उखीमठ-चोपटा वाले मार्ग के मुकाबले। या बराबर ही पड़ता है? अगली बार लैंसडाउन-खिरसू वाले रास्ते से जाने का प्रयास करेंगे, पता चल ही जाएगा! :)

मैथिली गुप्त said...

बहुत अच्छा लगा, हम तो एकदम ललचा गये!
अब आप हम जैसों के लिये विस्तृत रूप से लिख डालिये कि कैसे जायें, क्या करें, क्या क्या न करें. ताकि हम जैसे सिर्फ ललचा कर ही न रह जायें, आपका अनुगमन भी कर सकें

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Beautiful slide show

विजय गौड़ said...

्तस्वीरें सुन्दर हैं। उनका संयोजन और भी खूब।

समीर यादव said...

हाजिरी पूरी लगी...होम वर्क अनुपस्थिति के बाद भी पूरा किया जा रहा है. बढ़िया.

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

स्लाइड शो से लग रहा है कि आपकी यात्रा काफी मजेदार रही। कुछ फोटोज बहुत ही अच्छे बन पड़े हैं। आपकी यात्रा देखकर हमारा भी मन कर रहा है कि पहाड़ों पर हो ही आएं।

Anonymous said...

मास्टर साहब लोग भी लिखाई-पढ़ाई से दूर हो रहे हैं। केवल धांसू च फ़ांसू फ़ोटो सटा दे रहे हैं। अईसे कईसे चलेगा जी!

शुभ said...

तस्वीरें ब्याँ कर रही हैं कि आपने जिन्दगी का वो आनन्द लिया जो आपके चमकते शहर में आपको नसीब नहीं!

जितेन्द़ भगत said...

वाह, आनंद आ गया आपके बहाने पहाड़ों की यात्रा करके, आगे कब जा पाऊँगा, पता नहीं, तब तक फोटो देखकर ही तसल्‍ली कर लेता हूँ।

Udan Tashtari said...

Vah!! Tasveeren dekh kar aanand aa gaya. Bahut aabhar humare sath bantne ka.

Abhishek Ojha said...

उत्तराँचल जाने की इच्छा और बढ़ गई !

Anonymous said...

plz read waqthai.blogspot.com