Friday, March 13, 2009

अपने बच्‍चे का मैला तो हमने भी कमाया है... शर्माजी जी इतनी नाराज क्‍यों हैं?

मैं लावण्‍याजी का लेखन यदा कदा पढ़ता रहा हूँ...आजकल लावण्‍या आहत हैं... बेहद आहत। आखिर उनकी माताजी को बुरा कहा गया है उन्‍हें नाराज होने का हक है। जरूरी नहीं कि आप वैध बात पर नाराज हों...आप चाहें तो बेबात या कम बात पर भी नाराज हो सकते हैं। हमारी पिछली पोस्‍ट को ही लें... बेचारे प्रोग्रामर ने दिन रात एक कर ज्‍योतिष पर प्रोग्राम बनाया हम बैठेठाले दु:खी होने की ठान बैठे।  लावण्‍याजी तो खैर इस बात पर नाराज हैं कि किसी नीलोफर ने उन्‍हें ये कहा...

कितना प्यारा होता हरिजन होना आज पता चला.
आप भी तो चमारिन ही हैं लावण्या दी यह तो आप ही बता चुकी हैं कि आपकी मां मैला कमाती थीं और आप उससे खेलती थीं।
अपनी जात का जिक्र करने का धन्यवाद।

ये चोखेरबाली की एक पोस्‍ट पर हुआ जिसमें लावण्‍या ने विमान परिचारिका कुंदा के जीवन से परिचय करवाया है थोड़ी बहुत गड़बड़ है मसलन 1976 में अपना कैरियर चुनने वाली कुंदा केवल 25 वर्ष की कैसे हुईं...पर ये ब्‍यौरों की बात दीगर है...विवाद नीलोफर की टिप्‍पणी से हुआ क्‍योंकि जैसे ही लावाण्‍याजी को याद दिलाया गया कि आपकी मॉं भी तो मैला कमाती थीं.. अत: चमारन हुईं वे आहत हो गईं तथा इसे वे अपनी माताजी के विरुद्ध अपशब्‍द मान बैठीं...और फिर नीलोफर नाम के विषाक्‍त मन की खोज शुरू हो गई।

मेरी अम्मा : स्वर्गीय सुशीला नरेंद्र शर्मा

मुझे जल्दी गुस्सा नही आता !परन्तु, मेरी अम्मा के लिए कहे गए

ऐसे अपशब्द,हरगिज़ बर्दाश्त नहीं कर सकती ।This is absolutely, "unacceptable "

a grave insult to my deceased & respected Mother who is not alive to defend herself.

('शर्मा' पर बलाघात मेरा है)

फिर नीलोफर की पहचान के सूत्र भी दिए गए हैं... ये ब्‍लॉगर तोतो चान नाम का ब्‍लॉग चलाती/ते हैं।

बस यहीं हमारे दिमाग की घंटी बजी.. तोतोचान एक शानदार किताब है तथा औसत पाठक की पसंद नहीं होती, जो अपने ब्‍लॉग का नाम तोता चान रखता है वो आउट आफ बाक्‍स सोचनेवाला ब्‍लॉगर है, कम से कम टुच्‍ची विषाक्‍तता के लिए तो नहीं। मैंनें टिप्‍पणी फिर पढ़ी और अब सोचता हूँ कि मैला कमाना (कथित कर्म आधारित जाति व्‍यवस्‍था के समर्थक सोचें) अगर दलित होने का परिचायक है तो कौन सी मॉं चमारन (सही शब्‍द भंगी बनेगा) नहीं है.. अपने बच्‍चे के पाखाना साफ करने से बचने वाली... बच सकने वाली मॉं कहॉं पाई जाती है ? कौन सा बच्‍चा कभी अपने पाखाने से खेलने का सत्‍कर्म नहीं कर चुका होता?

कितनी भी अरुचिकर लगे पर लावण्‍या दी थोड़ा क्‍लोज रीडिंग करें (मैंने गूगलिंग की पर मुझे वो पोस्‍ट नहीं मिली जहॉं लावण्‍याजी ने अपने 'सत्‍कर्म' की बात लिखी हो पर मैं मान लेता हूँ कि कहीं उन्‍होंने लिखा होगा कि उनकी मॉं शिशु लावण्‍या का पाखाना साफ करती थीं...जिससे वे खेलने पर उतारू होती थीं, ऐसा न भी लिखा हो तो ये कोई आपत्तिजनक कल्‍पना नहीं है)

पर दूसरी ओर देखें कि दलित (लावण्‍या न जाने क्‍यों अभी भी 'हरिजन' शब्‍द के इस्तेमाल पर बल देती हैं जिसे आमतौर पर जागरूक दलित आपत्तिजनक मानते हैं) मुद्दे पर संवेदनशीलता के साथ लिखने वाली लेखिका 'चमार' शब्‍द के इस्‍तेमाल से इतना आहत महसूस करती हैं..उन्‍हें करना भी चाहिए पर इसका प्रतिकार झट 'शर्मा' शब्‍द से विभूषित माताजी का नाम देने की अपेक्षा, चमार शब्‍द में निहित अपमान को हटाने की ओर प्रवृत्‍त होकर ही होना चाहिए। मुझे इस सारे प्रक्रम में बेबात के पैट्रोनाइजेशन लेकिन जरा सी त्‍वचा खुरचते ही जातिवादी अहम की झलक दिखाई देती है।  वरना यदि कोई मैला कमाता है या कमा चुका है इससे उसे हरिजन/भंगी/चमार कहकर अपमानित किया जा सकता है? इस आधार पर हममें से सभी की मॉं हमारा मैला कमा चुकी हैं... तमाम डायपरबहुल पालनपोषण के बावजूद हमने भी अपने बच्‍चों का मैला कमाया है... आप चाहें तो कहें हमें भंगी/चमार।

Thursday, March 05, 2009

धत्‍त !!! अब ज्‍योतिष ब्‍लॉगवाणी में भी

ज्‍योतिष के साथ तो पता नहीं पर ब्‍लॉगजगत के ज्‍योतिषियों साथ हमारा 'स्‍नेह' अब जग जाहिर है। ऐसे में अपनी छवि के साथ न्‍याय करते हुए हमारा हक बनता है कि कहीं नया ज्‍योतिष प्रपंच देखें तो चिहुँकें तो इसी बात से न्‍याय करते हुए आज हम धत्‍त कह रहे हैं। इस छवि को देखें-

jyotish

वैसे तो जो कलंक रेखा :) जो हमने खींची हे वो पर्याप्त मोटी है पर तब भी दिखने में कुछ कठिनाई हो तो छवि पर चटका लगा सकते हैं।

वैसे ये विज्ञापन भर है जो ब्‍लॉगवाणीकार मित्रों की कंपनी द्वारा विकसित उत्‍पाद को प्रचारित भर करता है, और बेशक उन्‍हें इसका पूरा हक है। पर जब हमने दु:खी होने की ठान ली है तो भला हमें कौन रोक सकता है। वैसे प्रोग्रामर मित्र इस साफ्टवेयर को लेकर काफी लौकिक सोच रखते हैं पर आशंका है कि कुछ लोग तो इसकी अलौकिक लपेट में आते ही होंगे।

हमें लगा कि ज्योतिष के पसरते गर्तचक्र पर अपना रंज व्‍यक्त करते चलें। बाकी तो होगा वही जो ब्‍लॉगजगत की 'कुंडली में लिखा' होगा।:)