Tuesday, October 23, 2007

सरकारी मास्‍टर के रूप में मेरा सीटीसी क्‍या है?

नौकरियॉं करना शुरू की थी 1991 में, उम्र थी 19 वर्ष। डिप्‍लोमा के आखिरी साल में कैंपस इंटरव्‍यू में वोल्‍टास, महाराजा और शायद सीएमसी ने चुना था पर घर पर नहीं बताया क्‍योकि हिंदी आनर्स में प्रवेश ले लिया था और हिंदी पढ़ना चाहता था, फिर नौकरी करना और पढ़ना साथ साथ जारी रहा है- एक फैक्‍टरी में बजाज की आयरन के ईसीआर और ह्यूमिडिटी टेस्‍ट करने के अलावा सारी नौकरियॉं अकादमिक जगत की रही हैं। सरकारी नौकरी तीन बार छोड़ी इसलिए उसी का अनुभव अधिक है, इसलिए पिछले दिनों कारपोरेट दुनिया से जब एक नौकरी का प्रस्‍तावनुमा आया तो थोड़ा चौंकना पड़ा। वो इसलिए कि एचआर का प्रस्‍तावक जानना चाहता था कि मेरी सीटीसी अपेक्षा क्‍या है।...अब ये ससुरा क्‍या हुआ ?

सीटीसी हमारे लिए तो चाय के मतलब चीज है, इसलिए शानूं जी जाने तो जानें हमें क्‍या पता सीटीसी? हॉं सीटीस्‍कैन जरूर पता है पर क्‍या कोई नौकरी देने से पहले हमारा दिमाग स्‍कैन करवाएगा क्‍या ? ऐसे तो सारा पागलपन पकड़ में आ जाएगा।  खैर गए गूगल देवता की शरण में तो पता लगा महाशय उस चीज की बात कर रहे हैं जिसे कॉस्‍ट टू कंपनी कहा जाता है। पर गलतफहमी में न रहिएगा इसका मतलब वेतन नहीं है,  वेतन तो इसका छोटा सा हिस्‍सा है। कहावती रूप में देखें तो आपकी  सुविधा के लिए लगाए गए टायलेट पेपर तक की कीमत इसमें जोड़ लेती है कंपनी। वैसे शुद्ध बीए, एमबीए, सीए तक यानि नए नवेले बालकों तक को कंपनियॉं 10-25 लाख तक का सीटीसी देने लगी हैं, भले ही हाथ में महीने के 30-35 हजार ही पकड़ाए (पता नहीं कितना टायलेट पेपर इस्‍तेमाल करते हैं, प्राइवेट सेक्‍टर वाले) हम तो फिर भी 17 साल से इधर उधर धक्‍के खा रहे हैं।ctc

तो हमें बताना है कि अगर हम लगी लगाई इस सरकारी नौकरी (कस्‍बाई अभिव्‍यक्ति में कहूँ, और चौपटस्‍वामी, प्रियंकर नाराज न हों  तो, दिल्‍ली की प्रोफेसरी ) को छोड़कर अगर हम कोई प्राइवेट नौकरी करना चाहें तो कितने रूपे के पड़ेंगे...उस कंपनी को। पर इससे हमारे मन में सवाल कौंधा कि अब कितने के पड़ते हैं भई सरकार को। यानि हम सरकारी मास्‍टरों का सीटीसी क्‍या है, भई।

तो पहले तो होता है वेतन, मान लीजिए 25 हजार (हॉं भई उतने पुराने नहीं हैं, मोटी तनख्‍‍वाह वाले मास्‍साब तो वो हैं, वो हैं, यहॉं तक कि वो हैं :)) फिर सरकार पेंशन की गारंटी देकर बाल बच्‍चों की जिम्‍मेदारी लेगी,  छुट्टियॉं- असल माल तो मास्‍टरी में ये ही मिलता है, नियमत: कॉलेज में 11 घंटे प्रति सप्‍ताह लेक्‍चर लेने होते हैं, पांचेक घंटे ट्यूटोरियल बस। आने जाने पर कोई बंदिश नहीं है। इतनी पढ़ाई भी तब ही हो पाती है जब ग्रीष्‍मावकाश(पौने चार माह), शरदावकाश(15 दिन), बसंतावकाश(15 दिन), पर्व, चुनाव, परीक्षा, जाम, हड़ताल (कर्मचारी, शिक्षक, विद्यार्थी), मौसम होने दें। तिस पर कैज्यूअल लीव, अर्न लीव, मेडिकल लीव, मेटरनिटि/पैटरनिटि लीव, भी होती हैं। और हॉं सारा चिकित्‍सा व्‍यय पूरे परिवार का सरकार की ही जिम्‍मेदारी है। इसके अलावा पूरी नौकरी में कुल मिलाकर पॉंच साल की स्‍टडी लीव भी मिलती है जिसमें सरकार पूरा वेतन देती रहती है। नौकरी करते हुए मर मरा गए तो सरकार पूरा बीमा करती है तथा घरवालों को पेंशन देती है। वैसे टायलेट में टायलेट पेपर हमारे यहॉं भी होता है। पर असल बात सुरक्षा की है, आप नौकरी में हैं तो बस हैं। पिछली बार नौकरी छोड़ने की कोशिश की तो दो साल तक इस्‍तीफे के बाद इंतजार में रहा पर कंबख्‍त नहीं छूटी, फिर से शुरू की और दो साल करने के बाद फिर से छोड़ी तब जाकर छूटी।    तो कोई भला मानस बताए कि कॉस्‍ट टू कंपनी क्‍या बैठी। ध्‍यान रहे कि ये तो सरकार के सबसे दरिद्र तबके मास्‍टर की सीटीसी बताई है जिसे बंगला, नौकर, अर्दली, सैलून कुछ नहीं मिलता। ध्‍यान रहे कि छठा वेतन आयोग फिर से वेतन बढ़ाने वाला है और उसका भी मत है कि केवल वेतन न देखें कॉस्‍ट टू नेशन देखो। अपना अनुमान है कॉस्‍ट टू कंपनी( बोले तो जनता)  हमारी भी खूब है।  तो कहो कितने सीटीसी पर जाएं इस नगरी को छोड़कर।

Wednesday, October 10, 2007

ॐ अष्ट‌ध‌ातुओं के ईंटो के भ‌ट्टे.....ॐ म‌ह‌ाम‌हिम, म‌हम‌हो उल्लू के प‌ट्ठे - नागार्जुन की कविता आडियो में

उम्‍मीद हैं संघी मित्र नाराज नहीं होंगे। नागार्जुन की कविता मंत्र सही मायने में ए‍क ब्‍लॉगिया कविता है- बिंदास, सपाट, दुनिया की ऐसी की तैसी टाईप सच्‍ची कविता। संजय झा ने फिलम बनाई है स्ट्रिंग जिसमें इस कविता को ज़ुबीन ने गाया है। खुद संजय झा ब्‍लॉग बनाकर प्रचार भी कर रहे हैं। इस ब्‍लॉग में हिंदी भी है- तो इस मायने में इस तरह का पहला ब्‍लॉग हुआ। खैर पूरी कविता नीचे है और हमारे पहले पॉडकास्‍ट में हम इस गीत को प्रस्‍तुत कर रहे हैं।

 

 

मंत्र कविता / नागार्जुन

ॐ श‌ब्द ही ब्रह्म है..

ॐ श‌ब्द्, और श‌ब्द, और श‌ब्द, और श‌ब्द

ॐ प्रण‌व‌, ॐ न‌ाद, ॐ मुद्रायें

ॐ व‌क्तव्य‌, ॐ उद‌ग‌ार्, ॐ घोष‌णाएं

ॐ भ‌ाष‌ण‌...

ॐ प्रव‌च‌न‌...

ॐ हुंक‌ार, ॐ फ‌टक‌ार्, ॐ शीत्क‌ार

ॐ फुस‌फुस‌, ॐ फुत्क‌ार, ॐ चीत्क‌ार

ॐ आस्फ‌ाल‌न‌, ॐ इंगित, ॐ इश‌ारे

ॐ न‌ारे, और न‌ारे, और न‌ारे, और न‌ारे

ॐ स‌ब कुछ, स‌ब कुछ, स‌ब कुछ

ॐ कुछ न‌हीं, कुछ न‌हीं, कुछ न‌हीं

ॐ प‌त्थ‌र प‌र की दूब, ख‌रगोश के सींग

ॐ न‌म‌क-तेल-ह‌ल्दी-जीरा-हींग

ॐ मूस की लेड़ी, क‌नेर के प‌ात

ॐ ड‌ाय‌न की चीख‌, औघ‌ड़ की अट‌प‌ट ब‌ात

ॐ कोय‌ल‌ा-इस्प‌ात-पेट्रोल‌

ॐ ह‌मी ह‌म ठोस‌, ब‌ाकी स‌ब फूटे ढोल‌

ॐ इद‌म‌ान्नं, इम‌ा आपः इद‌म‌ज्य‌ं, इद‌ं ह‌विः

ॐ य‌ज‌म‌ान‌, ॐ पुरोहित, ॐ राज‌ा, ॐ क‌विः

ॐ क्रांतिः क्रांतिः स‌र्व‌ग्व‌ं क्रांतिः

ॐ श‌ांतिः श‌ांतिः श‌ांतिः स‌र्व‌ग्व‌ं श‌ांतिः

ॐ भ्रांतिः भ्रांतिः भ्रांतिः स‌र्व‌ग्व‌ं भ्रांतिः

ॐ ब‌च‌ाओ ब‌च‌ाओ ब‌च‌ाओ ब‌च‌ाओ

ॐ ह‌ट‌ाओ ह‌ट‌ाओ ह‌ट‌ाओ ह‌ट‌ाओ

ॐ घेराओ घेराओ घेराओ घेराओ

ॐ निभ‌ाओ निभ‌ाओ निभ‌ाओ निभ‌ाओ

ॐ द‌लों में एक द‌ल अप‌न‌ा द‌ल, ॐ

ॐ अंगीक‌रण, शुद्धीक‌रण, राष्ट्रीक‌रण

ॐ मुष्टीक‌रण, तुष्टिक‌रण‌, पुष्टीक‌रण

ॐ ऎत‌राज़‌, आक्षेप, अनुश‌ास‌न

ॐ ग‌द्दी प‌र आज‌न्म व‌ज्रास‌न

ॐ ट्रिब्यून‌ल‌, ॐ आश्व‌ास‌न

ॐ गुट‌निरपेक्ष, स‌त्त‌ास‌ापेक्ष जोड़‌-तोड़‌

ॐ छ‌ल‌-छ‌ंद‌, ॐ मिथ्य‌ा, ॐ होड़‌म‌होड़

ॐ ब‌क‌व‌ास‌, ॐ उद‌घ‌ाट‌न‌

ॐ म‌ारण मोह‌न उच्च‌ाट‌न‌

ॐ क‌ाली क‌ाली क‌ाली म‌ह‌ाक‌ाली म‌ह‌ाक‌ाली

ॐ म‌ार म‌ार म‌ार व‌ार न ज‌ाय ख‌ाली

ॐ अप‌नी खुश‌ह‌ाली

ॐ दुश्म‌नों की प‌ाम‌ाली

ॐ म‌ार, म‌ार, म‌ार, म‌ार, म‌ार, म‌ार, म‌ार

ॐ अपोजीश‌न के मुंड ब‌ने तेरे ग‌ले क‌ा ह‌ार

ॐ ऎं ह्रीं क्लीं हूं आङ

ॐ ह‌म च‌ब‌ायेंगे तिल‌क और ग‌ाँधी की ट‌ाँग

ॐ बूढे़ की आँख, छोक‌री क‌ा क‌ाज‌ल

ॐ तुल‌सीद‌ल, बिल्व‌प‌त्र, च‌न्द‌न, रोली, अक्ष‌त, ग‌ंग‌ाज‌ल

ॐ शेर के द‌ाँत, भ‌ालू के न‌ाखून‌, म‌र्क‌ट क‌ा फोत‌ा

ॐ ह‌मेश‌ा ह‌मेश‌ा राज क‌रेग‌ा मेरा पोत‌ा

ॐ छूः छूः फूः फूः फ‌ट फिट फुट

ॐ श‌त्रुओं की छ‌ाती अर लोह‌ा कुट

ॐ भैरों, भैरों, भैरों, ॐ ब‌ज‌रंग‌ब‌ली

ॐ ब‌ंदूक क‌ा टोट‌ा, पिस्तौल की न‌ली

ॐ डॉल‌र, ॐ रूब‌ल, ॐ प‌ाउंड

ॐ स‌ाउंड, ॐ स‌ाउंड, ॐ स‌ाउंड

ॐ ॐ ॐ

ॐ ध‌रती, ध‌रती, ध‌रती, व्योम‌, व्योम‌, व्योम‌, व्योम‌

ॐ अष्ट‌ध‌ातुओं के ईंटो के भ‌ट्टे

ॐ म‌ह‌ाम‌हिम, म‌हम‌हो उल्लू के प‌ट्ठे

ॐ दुर्ग‌ा, दुर्ग‌ा, दुर्ग‌ा, त‌ारा, त‌ारा, त‌ारा

ॐ इसी पेट के अन्द‌र स‌म‌ा ज‌ाय स‌र्व‌ह‌ारा

ह‌रिः ॐ त‌त्स‌त, ह‌रिः ॐ त‌त्स‌त‌

[रचनाकार:नागार्जुन - 1969]

 

मंत्र कविता / नागार्जुन

ॐ श‌ब्द ही ब्रह्म है..

ॐ श‌ब्द्, और श‌ब्द, और श‌ब्द, और श‌ब्द

ॐ प्रण‌व‌, ॐ न‌ाद, ॐ मुद्रायें

ॐ व‌क्तव्य‌, ॐ उद‌ग‌ार्, ॐ घोष‌णाएं

ॐ भ‌ाष‌ण‌...

ॐ प्रव‌च‌न‌...

ॐ हुंक‌ार, ॐ फ‌टक‌ार्, ॐ शीत्क‌ार

ॐ फुस‌फुस‌, ॐ फुत्क‌ार, ॐ चीत्क‌ार

ॐ आस्फ‌ाल‌न‌, ॐ इंगित, ॐ इश‌ारे

ॐ न‌ारे, और न‌ारे, और न‌ारे, और न‌ारे

ॐ स‌ब कुछ, स‌ब कुछ, स‌ब कुछ

ॐ कुछ न‌हीं, कुछ न‌हीं, कुछ न‌हीं

ॐ प‌त्थ‌र प‌र की दूब, ख‌रगोश के सींग

ॐ न‌म‌क-तेल-ह‌ल्दी-जीरा-हींग

ॐ मूस की लेड़ी, क‌नेर के प‌ात

ॐ ड‌ाय‌न की चीख‌, औघ‌ड़ की अट‌प‌ट ब‌ात

ॐ कोय‌ल‌ा-इस्प‌ात-पेट्रोल‌

ॐ ह‌मी ह‌म ठोस‌, ब‌ाकी स‌ब फूटे ढोल‌

ॐ इद‌म‌ान्नं, इम‌ा आपः इद‌म‌ज्य‌ं, इद‌ं ह‌विः

ॐ य‌ज‌म‌ान‌, ॐ पुरोहित, ॐ राज‌ा, ॐ क‌विः

ॐ क्रांतिः क्रांतिः स‌र्व‌ग्व‌ं क्रांतिः

ॐ श‌ांतिः श‌ांतिः श‌ांतिः स‌र्व‌ग्व‌ं श‌ांतिः

ॐ भ्रांतिः भ्रांतिः भ्रांतिः स‌र्व‌ग्व‌ं भ्रांतिः

ॐ ब‌च‌ाओ ब‌च‌ाओ ब‌च‌ाओ ब‌च‌ाओ

ॐ ह‌ट‌ाओ ह‌ट‌ाओ ह‌ट‌ाओ ह‌ट‌ाओ

ॐ घेराओ घेराओ घेराओ घेराओ

ॐ निभ‌ाओ निभ‌ाओ निभ‌ाओ निभ‌ाओ

ॐ द‌लों में एक द‌ल अप‌न‌ा द‌ल, ॐ

ॐ अंगीक‌रण, शुद्धीक‌रण, राष्ट्रीक‌रण

ॐ मुष्टीक‌रण, तुष्टिक‌रण‌, पुष्टीक‌रण

ॐ ऎत‌राज़‌, आक्षेप, अनुश‌ास‌न

ॐ ग‌द्दी प‌र आज‌न्म व‌ज्रास‌न

ॐ ट्रिब्यून‌ल‌, ॐ आश्व‌ास‌न

ॐ गुट‌निरपेक्ष, स‌त्त‌ास‌ापेक्ष जोड़‌-तोड़‌

ॐ छ‌ल‌-छ‌ंद‌, ॐ मिथ्य‌ा, ॐ होड़‌म‌होड़

ॐ ब‌क‌व‌ास‌, ॐ उद‌घ‌ाट‌न‌

ॐ म‌ारण मोह‌न उच्च‌ाट‌न‌

ॐ क‌ाली क‌ाली क‌ाली म‌ह‌ाक‌ाली म‌ह‌ाक‌ाली

ॐ म‌ार म‌ार म‌ार व‌ार न ज‌ाय ख‌ाली

ॐ अप‌नी खुश‌ह‌ाली

ॐ दुश्म‌नों की प‌ाम‌ाली

ॐ म‌ार, म‌ार, म‌ार, म‌ार, म‌ार, म‌ार, म‌ार

ॐ अपोजीश‌न के मुंड ब‌ने तेरे ग‌ले क‌ा ह‌ार

ॐ ऎं ह्रीं क्लीं हूं आङ

ॐ ह‌म च‌ब‌ायेंगे तिल‌क और ग‌ाँधी की ट‌ाँग

ॐ बूढे़ की आँख, छोक‌री क‌ा क‌ाज‌ल

ॐ तुल‌सीद‌ल, बिल्व‌प‌त्र, च‌न्द‌न, रोली, अक्ष‌त, ग‌ंग‌ाज‌ल

ॐ शेर के द‌ाँत, भ‌ालू के न‌ाखून‌, म‌र्क‌ट क‌ा फोत‌ा

ॐ ह‌मेश‌ा ह‌मेश‌ा राज क‌रेग‌ा मेरा पोत‌ा

ॐ छूः छूः फूः फूः फ‌ट फिट फुट

ॐ श‌त्रुओं की छ‌ाती अर लोह‌ा कुट

ॐ भैरों, भैरों, भैरों, ॐ ब‌ज‌रंग‌ब‌ली

ॐ ब‌ंदूक क‌ा टोट‌ा, पिस्तौल की न‌ली

ॐ डॉल‌र, ॐ रूब‌ल, ॐ प‌ाउंड

ॐ स‌ाउंड, ॐ स‌ाउंड, ॐ स‌ाउंड

ॐ ॐ ॐ

ॐ ध‌रती, ध‌रती, ध‌रती, व्योम‌, व्योम‌, व्योम‌, व्योम‌

ॐ अष्ट‌ध‌ातुओं के ईंटो के भ‌ट्टे

ॐ म‌ह‌ाम‌हिम, म‌हम‌हो उल्लू के प‌ट्ठे

ॐ दुर्ग‌ा, दुर्ग‌ा, दुर्ग‌ा, त‌ारा, त‌ारा, त‌ारा

ॐ इसी पेट के अन्द‌र स‌म‌ा ज‌ाय स‌र्व‌ह‌ारा

ह‌रिः ॐ त‌त्स‌त, ह‌रिः ॐ त‌त्स‌त‌

[रचनाकार:नागार्जुन - 1969]

 

 

संजयझा के ब्‍लॉग से साभार

Sunday, October 07, 2007

'कलक्‍टर' व 'डीआईजी' के पिता की भूख से मौत: वाह देश-वाह गोरखपुर

अगर यह खबर देश की राजधानी के पहले पन्‍ने तक पहुँच पाई हे तो इसने कई रास्‍ते तय किए होंगे। या शायद देशभर में हो रहे घटनाक्रम का केवल एक अंश है जो राजधानी तक पहुँच पाया है।  गोरखपुर कोई अनजान गॉंव नहीं है, महंतो से लेकर साहित्यिकों, राजनीतिकों सब का अखाड़ा है। आज की एक मुखपृष्‍ठ खबर के अनुसार 50 साल केविनोदकुमार की भूखमरी से मौत हो गई। जिला प्रशासन आसानी से भुखमरी की मौतों को स्‍वीकार नहीं करते इसलिए पता नहीं औपचारिक रूप से इसका क्‍या कारण दर्ज किया जाएगा पर सच्‍चाई यही हे कि देशभर में गरीबी का नाच बढ़ा है  और अब भूख दर दराज के गॉंवों ही नहीं वरन ऐन शहरों की भी सच्‍चाई हो गई है। इस गरीब विनोद के ही परिवार के दो और सदस्‍य अभी अस्‍पताल में मौत से लड़ रहे हैं पर गरीबी एक बार के इलाज से दूर होने वाली बीमारी नहीं है।

इस खबर के बरक्‍स प्रदेश की मुख्‍यमंत्री की महारैली पर ध्‍यान दें, कम से कम 16 लाख लोगोंको जुटाने में हर जिले का स्थानीय प्रशासन (जी, पार्टी तो जो करेगी वो करेगी ही, कलक्‍टर और आला पुलिस अधिकारी भी इसी काम में लगे हैं) इस रैली को सफल बनाने में जुटा है। यह भी त्रासद व्‍यंग्‍य है कि इस गरीब विनोद कुमार ने अपने बच्‍चों में से दो के नाम  कलक्‍टर व डीआईजी रखे हुए थे।  कलक्‍टर व डीआईजी नाम के बच्‍चों का यह पिता भुखमरी का शिकार हुआ।

अब यदि कोई कहना चाहे कि देश भर में व्‍याप्‍त इस भुखमरी व बाजारवादी नीतियों के बीच संबंध है तो हमें तो शक है कि इस बात कोई गंभीरता से सुनेगा भी नहीं। पर केवल राज्‍य ही की बात क्‍यों करें पास पड़ोस, नाते रिश्‍तेदारी सभी सामाजिक सपार्ट स्‍ट्रक्‍चर चरमरा गए हैं वरना इतना निकट एक पूरा परिवार महीनों भूखा मरता रहा और सब सोते रहे। इस घनघोर संवेदनहीनता का दोषी कौन माना जाए....क्‍या हम खुद भी नहीं।

Thursday, October 04, 2007

क्‍या मेरे चिट्ठे के रोमन रूप पर मेरा कापीराईट है ?

इधर चिट्ठों की दुनिया में चोरी-चकारी खूब बढ़ गई है- कुछ तो बाकायदा पेशेवर चोर हैं। अब जब ऐसा है तो जाहिर है कि कुछ लोगों को इन्‍हें रंगे हाथों पकड़ने का जिम्‍मा भी लेना पड़ेगा। तो बेचारे शास्‍त्रीजी सरीखे कुछ मित्र मेहनत कर कर खोजते रहते हैं कि कब, कहॉं, किसने, क्‍या चोरी किया, किसका माल चोरी गया। चुराए जाने का गौरव प्राप्‍त लोगों में अधिकतर कवि बिरादरी के लोग हैं पर व्‍यंग्‍यकारों ने भी जब तब गर्व से घोशित किया है कि हमें ऐसा वैसा न जानो आखिर हमें भी चुराया जाता है। हम इस चुराने-चुराए जाने के मामले में किनारे खड़े बस देखते रहते हैं। बहुत बार चुराए गए माल पर नजर डाल ये जरूर जानने की कोशिश करते हैं कि भई इसे आखिर चुराया क्‍यों गया। किसी अधेड़ दंपत्ति को जाते देख जब कोई ये बताए कि देखो इन्‍होंने 'लव मैरिज' की थी, तो कुछ लोग खूब आंखे गाड़कर ये जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर इसमें क्‍या रहा होगा....। हम भी चुराई पोस्‍टों में चोरिएबिलिटी के तत्‍व खोजते हैं। पर सही कहें कि हम तो खूब कन्‍फ्यूज हैं।

पहला भ्रम तो यह है कि भई किसी ब्‍लॉग में ब्‍लॉगर का क्‍या है- मतलब तकनीकी तौर पर पूरा ब्‍लॉग बनता है पोस्‍ट से और उसपर की गई टिप्‍पणियों से। टिप्‍पणी पाठक की 'रचना' है और पोस्‍ट लेखक की। दोनों मिलकर तो लेखक-पाठक की रचना हुए फिर काहे की चोरी- तेरा तुझको सौंपे क्‍या लागे मेरा। पर ये भी तो सच है कि अगले (लेखक) ने इतplagiarisनी मेहनत से लिखा  तो श्रेय पर तो हक बनता है कि नहीं। पर अगर एडसेंस की दुनिया से बात करें तो (वैसे हम खूब जानते हैं कि महीने भर की हिंदी एडसेंस से हफ्ते भर की प्‍याज खरीदने लायक भी कमाना संभव नहीं पर मात्रा छोड़ें सैद्धांतिक स्‍तर पर बात करें)  तो चूंकि लेखन से कमाई पर लेखक का हक बनता है इसलिए बिना अनुमति किसी और की सामग्री नहीं छापी जानी चाहिए। यहॉं एक और लोचा है- कई ब्‍लॉगों पर गेस्‍ट लेखकों की रचनाएं छपती हैं (मसलन रचनाकार, मोहल्‍ला) तो उनकी अनुमति लेखक से ली जाए कि ब्‍लॉगर से।

पर असल भ्रम है रूपातंरित रचनाओं पर। नया चिट्ठाजगत आया है। अंगेजी में। देखें वो बाकायदा आपकी ही नई नवेली (और पुरानी) पोस्‍टों के रोमन संस्‍करण को सामने रख रहा है- डंके की चोट पर। वहॉं कहा गया है-

Chitthajagat.com is automated devanagari to english (Roman Hindi) transliteration of chitthajagat.in.
Chittha (Blog) Jagat (World) dot in aggregates and publish devanagri blogs. Here you can read them in roman. To read the original article in Hindi click the title of entry, and to read it in roman click more at the end of clipping.

अब आप क्‍या कहेंगे। चोरी .... या क्रिएटिविटी। हम बताएं हमें तो लगता है कि अपने लिखे पर मालिकाना हक को कुछ लोचदार बनाया जाना चाहिए। कोई अगर लिंक व नाम देकर उपयोग करे तो करने दें। लिंक व नाम नहीं भी दे रहा होगा तो हम कर ही क्‍या लेंगे पर कम से कम तब हम नैतिक रूप से जरूर उसे 'चोर' कह सकते हैं।

 

Wednesday, October 03, 2007

कहो तो कह दें....साधुवाद, पर अविनाश हमें तुमसे और बेहतर की उम्‍मीद है

कादम्‍बनी में बालेन्‍दुजी के लेख के बाद फिर से छापे में ब्‍लॉग की कवरेज की ओर ब्‍लॉगरों का ध्‍यान गया है। अत: जरूरी जान पड़ा कि आपको याद दिलाया जाएं कि हिंदी ब्‍लॉगिंग पर एक नियमित कॉलम प्रतिष्ठित पत्रिका कथादेश में छपता हे जिसे अविनाश लिखते हैं। एक नई जानकारी ये है कि गंभीर समझे जाने वाले दैनिक जनसत्‍ता ने भी एक नियमित कालम अपने रविवारीय में पाक्षिक रूप से शुरू किया है। इस स्‍तंभ का शीर्षक है ब्‍लॉग लिखी। यह स्‍तंभ भी अविनाश ने ही लिखना शुरू किया है। यानि अब दो ही नियमित स्‍तंभ हैं- एक इंटरनेट का मोहल्‍ला जो कथादेश में आता है और दूसरा ब्‍लॉगलिखी जो जनसत्‍ता में शुरू हुआ। इस मायने में अविनाश की छापे में यह पहलकदमी निश्‍चय ही स्‍वागतयोग्‍य है।

इस रविवार को आए ब्‍लॉगलिखी का स्‍कैन्‍ड संस्‍करण इस प्रकार है-

(बड़े आकार में देखने के लिए क्लिक करें)

 

फिर भी हमने इतनी बदमजा हैडिंग क्यों दी, सनसनीखेजता के लिए नहीं वरन इसलिए कि दोस्‍तों से कुछ आजादी ले ली जाती है। कथादेश के स्‍तंभ में तो अविनाश अपने रंग में होते हैं- साफगोई होती है तथा साधुवादी सवर नहीं होता- किसी को बुरा लगे तो लगे वाला स्‍वर होता है- सो ठीक अविनाशोनुकूल है पर जनसत्‍ता में अब तक वो आजाद स्‍वर दिखा नहीं। शिष्‍टाचार को ताक पर रख कहे दे रहे हैं कि दोस्‍त बिंदास लिखो। है तो ये भी अच्‍छा पर हमें अविनाश से और बेहतर की उम्‍मीद है आखिर तमाम लोगों की तिरछी भौंहों के बावजूद वे इस साल के सबसे तेजी से आगे बढ़े ब्‍लॉगर हैं- टेक्‍नोराटी, चिट्ठाजगत या बाकी जो स्‍केल हो हर पर वे सबसे तेजी से बढे ब्‍लॉगर हैं- इसलिए मित्र हमारी अपेक्षाओं के ही लिए सही- इन बड़े नामों के पदार्पण पर हर्ष दिखाने की बजाय उन पर ध्‍यान केंद्रित करें जिनकी वजह से हिंदी ब्‍लॉगिगं सर्वाधिक लोकतांत्रिक किस्‍म की विधा है। आने दें चक्रधरों, राजकिशोरों,  उदयप्रकाशों को अच्‍छी बात है आएं पर हिंदी की ब्‍लॉगिंग खास है इसलिए कि यहॉं वे आते हैं - जमते हैं, जो हिंदी लेखन में कहीं न थे- सागर, अरुण, शुएब, ज्ञानदत्‍त ....। सुनोगे अविनाश ??