Sunday, January 15, 2012

अब तो ये नूंहए चाल्‍लेगी

 

ब्‍लॉग लिखना नहीं वरना ब्‍लॉग पढ़ना भी कम हुआ है। आज रवीश की एक कवितानुमा पोस्‍ट देखी तो मन में सवाल भर्राया कि भले आदमी आनलाइन दुनिया में इतना समय खपाने और बहुल उपस्थिति को साधें कैसें ? अगर ट्विटर, फेबु, ब्‍लॉग, प्‍लस वगैरह के साथ ईमानदारी से रहें और घर, परिवार, नौकरी में भी बेईमान न हों तो ये बुहत मुश्कि‍ल हो जाएगा। सवाल केवल समय का नहीं है, मास्‍टर कोई सबसे व्‍यस्‍त जीव तो है नहीं पर मामला दिमागी तौर पर जुड़ाव का भी है। खैर फिलहाल हम ईमानदारी को टाल रहे हैं, डिसक्‍लेमर ये है कि भले ही रिश्‍वत उश्‍वत की कोनो गुंजाइश हमारे धंधे में नहीं है पर हम साफ बता दे रहे हैं कि सोचने, लिखने व नौकरी पीटने, घर गिरस्‍ती संभालने के मामले में हम पूरी तरह से ईमानदारी से सक्रिय नहीं हैं। कुल मिलाकर अपना नएसाला प्रण ये है कि लिखेंगे मन की, अगर वो 140 अक्षरों में हुआ तो ट्विटर पर ठेलेंगे...थोड़ा ज्‍यादा हुआ तो फेसबुक पर... कुछ और ज्‍यादा तो ब्‍लॉग पर। अब तो ये नूंहए चाल्‍लेगी।