Thursday, April 29, 2010

चूर चांदनी से चीयर-गर्ल्‍स - एक यात्रा

साल भर काम करने (या काम करने का अभिनय करने) के बाद छुट्टियॉं शुरू हो गई हैं। कक्षाएं तो एक महीने पहले ही समाप्‍त हो गई थीं इसलिए बीच में कुछ दिन निकालकर पहाड़ों पर एक सप्ताह बिता आए। आज इसी यात्रा को आपसे साझा करने का मन है। इस ब्लॉग पहले भी कई यात्राओं पर पोस्‍ट हैं लेकिन इस बार अलग ये था कि हमें परिवार के साथ न जाकर एक दोस्‍त के साथ इस यात्रा पर गए थे- इसलिए इस या उस तरह के इंतजाम में सर खपाना, सुरक्षा या सुविधा की विशेष चिंता करना आदि का पंगा नहीं था... एक दम जाट मुसाफिर किस्‍म की यात्रा थी इसलिए आनंद गारंटिड था। उत्‍साह इसलिए भी था कि ये दोस्‍त पुराना कॉलेज के समय का साथी है हद दरजे की बेतकल्‍लुफी का संबंध है हम दोनों ड्राइविंग भी कर लेते हैं।

तो यात्रा शुरू हुई 12 अप्रैल की दोपहर के ही लगभग अपनी गाड़ी एविओ युवा में अपना एक एक बैग डाला और चढ़ बैठे राष्‍ट्रीय राजमार्ग संख्‍या एक पर। कोई निश्चित कार्यक्रम नहीं था बस इतना सोचा था कि चार पॉंच दिन हिमाचल घूमेंगे और इसी क्रम में पता लगा तो 16 अप्रैल को धर्मशाला में होने वाले आईपीएल मैच की टिकट भी इंटरनेट से बुक करवा लीं तेरह सौ पचास रुपए लगे और कम से कम हम लफंडरों की यात्रा का एक मुकाम तो तय हो गया कि चार दिन बाद धर्मशाला पहुँचेंगे। इसी तरह इस दोस्‍त के एक छात्र का बार बार का आग्रह था कि सर यात्रा की शुरूआत उनके यहॉं से की जाए...ये छात्र फिलहाल रेणुका झील वाले इलाके के तहसीलदार हैं। तो तय हुआ कि 12 को रेणुका और 16 को धर्मशाला 17 या 18 को घर वापस बाकी जैसा रास्‍ते में तय हो।

12 को कॉलेज के दिनों की याद और एक दूसरे की टांग खींचते चार बजते न बजते रेणुका जा पहुँचे-

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सिरमौर इलाके की यह रमणीक झील के धार्मिक महत्‍व पर तो हमसे कुछ उम्‍मीद न रखें पर वैसे सुंदर व शांत जगह थी। गेस्‍ट हाउस आरामदेह था तथा खातिरदारी दमदार थी (जब भी ऐसी खातिरदारी होती है बार बार मन करता है कि मेजबान को झकझोर कर कहें कि भई फिर सोच लो ये हम हैं...एंड वी जस्‍ट डोन डिजर्व इट, डू वी ?)  खैर वहीं तय हुआ कि जब यहॉं पहुँचे ही हैं तो क्‍यों न शिमला सिरमौर क्षेत्र की सबसे ऊंची चोटी चूर-चॉंदनी तक की ट्रेकिंग की जाए हमने आइडिए को झट से लपक लिया। आगे की वयवस्‍था भी झट हो गई  अगले दिन सुबह नौराधार के लिए रवाना हुए जहॉं से चूर चॉंदनी (स्‍थानीय लोग इसे चूड़ेश्‍वर महादेव के नाम से जानते हैं) का ट्रेक शुरू होता है। नौराधार के एक छोटे से रिसॉर्ट में हमारे विश्राम तथा लंच की व्‍यवस्‍था थी थोड़े आराम के बाद हम चले- अब तक स्‍प्‍ष्‍ट हो चुका था कि जैसा पहले पता चला था उसके विपरीत ये ट्रेक केवल 4-5 घंटे का नहीं वरन कम से कम नौ दस घंटे का था तथा काफी मुश्किल किस्‍म का था। आगे की कहानी चित्रों से

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अंतिम फ्रेम के इन जूतों ने इस ट्रेक में क्‍या क्‍या नहीं सहा। रात 11 बजे हम ऊपर पहुँचे उस थकान में तो कुछ आनंद लेने की स्थिति में थे नहीं सो मंदिर की सराय में एक बकरी व एक कुत्‍ते वाले कमरे में कुल जमा पंद्रह किराए के कंबलों में थकान व ठंड से लड़ते रहे। सुबह उठकर देखा तो आस पास की बर्फ और हिमालय के शिखरों के दृश्‍य देख मन नाच उठा।  अगले दिन शाम तक वापसी हुई, थके थे पर तय किया कि धर्मशाला की दिशा में प्रस्‍थान किया जाए... नौराधार से राजगढ़-सोलन होते हुए पिंजौर पहुँचे जहॉं जिस गेस्‍ट हाउस में सोने की व्यवस्‍था थी वह बेहद भव्‍य था उसका लॉन देखें-

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खैर आगे धर्मशाला-मैक्‍लॉडगंज और फिर आईपीएल का मैच-

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यह आईपीएल मैच हिमाचल के लिए अब तक का सबसे बड़ा खेल आयोजन था सारा सरकारी अमला इसे सफल बनाने में जुटा था..दसेक हजार की आबादी के शहर में पच्‍चीस हजार की क्षमता का मैदान और पूरा फुल-

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आईपीएल कोई खेल नही पूरा तमाशा भर है। खैर रात 10:30 बजे जब दूसरी पारी के पॉंच ओवर फेंके जा चुके थे हमने लौटने का निर्णय लिया और सारी रात गाड़ी चलाते हुए सुबह नौ बजे वापस घर पहुँचे। तस्‍वीरें कुछ बताती हैं लेकिन यात्रा का असली आनंद उसे भोगने में ही है हमारे लिए ये बरसों बाद खुद में झांकने की यात्रा थी जो एक शानदार याद बन गई है।