मेरे भीतर एक क्लाउन गिनकर लेता है
हर चुटकुले पर अट्टहास
साश्रु कभी-कभी,
संविधान साला चुटकले की किताब हो गया है।
उदास कविता मैं भी लिख सकता हूँ
आज
आज दिन
और आज रात भी
शायद आज के बाद की हर रात
मैं लिख सकता सबसे उदास कविता
पाब्लो नेरुदा।
तुम्हारी तरह मैंने भी उसे प्यार किया था
और कभी कभी उसने भी
हम सब की
कवियों की और कम कवियों की भी
उदासियाँ उपजती हैं
उस बहुत गहरे प्यार से
जो उन्होंने किया था
और कभी कभी उनसे भी किया गया था।
सुनो प्यार
काश तुम कुछ कम उपजाऊ होते
और सुनो
पाब्लो नेरुदा
उसकी बड़ी बड़ी शांत आँखों से
तुम्हारी इस शिकायत में शामिल समझो मुझे
दुनिया को कुछ कम
उदास कविताओं की जरूरत है
हर दिन
हर रात ।
(पाब्लो नेरुदा की कविता 'आज रात...मैं लिख सकता हूँ' को)
''हम दूर हो जाते हैं क्योंकि बात ही नहीं कर पाते। न समझ पाते हैं और न समझा पाते हैं। समझने-समझाने की जरूरतें भी सबकी एकसमान नहीं होतीं।''मुझे यह समझने समझाने से ज्यादा वाकई समझने की जरूरत समझाने का संकट ज्यादा लगता है। मैं जब अपना संकट समझाने की चेष्टा करता हूँ तुम समझती हो मैं कह रहा हूँ - कि तुम नहीं समझ सकती जाने दो, जाहिर है यह अहम पर चोट देने वाली समझ है और इसके बाद तो संवाद की संभावना ही समझो खत्म, शायद दोबारा तत्काल कोशिश भी मुश्किल और लो फिर ऐसा मौन पसरता है कि क्या खाएंगे, क्लास कब है बच्चों ने होमवर्क किया या नही...बस यही बचता है अगले कितने ही घंटे या दिन। फिर हम समझाते हैं कि देखो हम दु:खी नहीं है कितना सुखी और प्यार भरा तो परिवार है। बाकी सब आह भरें ऐसा। फिर कोशिश करते हैं अक्सर एक रिक्ति फिर भी जमी रहती है। हम जानते हैं कि हमारा संवाद और संवाद की जरूरत का एहसास निन्यानवें फीसदी से बेहतर है पर ये अपने आप में कोई दिलासा देने की तो बात न हुई... संवाद तो वैसी ही जरूरत है जैसी खाने पीने या साथ सोने की। संवाद इसलिए अहम है और किसी पर न हो तो असंवाद पर से ही श्ुारू किया जाए।
छड्ड पुत्तर। अपनी पढ़ाई पूरी कर। काम धाम कर मां बाप का हाथ बटा। अठ्ठाईस साल की उमर हो गयी। कब तक टेक्सपेयर्स के बल पर मिली स्कॉलरशिप की रोटियां तोड़ चौधराहट करेगा।
हंसने की नहीं,
मरने की नहीं
करने की भी नहीं
नहीं मुझसे और कोई उम्मीद न रखो
कि मेरे हाथ में कलम है।
लड़ने की नहीं
अड़ने की नहीं
धरने की भी नहीं
नहीं मुझसे और कोई उम्मीद न रखो
कि मेरे हाथ में कलम है।
कलम को मैंने बना लिया है
अपना ढाल हथियार और मोर्चा सब
शब्दों की नहीं
भाव की नहीं
त्रास की नहीं
सच की नहीं
अपने कुछ की भी नहीं
नहीं मुझसे और कोई उम्मीद न रखो
कि मेरे हाथ में कलम है।