Wednesday, March 30, 2016

संविधान

एक, दो ,तीन...चार सौ अड़तालीस
मेरे भीतर एक क्‍लाउन गिनकर लेता है
हर चुटकुले पर अट्टहास
साश्रु कभी-कभी,
संविधान साला चुटकले की किताब हो गया है।

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