इधर हिंदी का चिट्ठाजगत एक किस्म की बेचैनी साफ दिखाई देती है, क्राइसिस है कि नहीं कहना कठिन है पर इतना तय है कि बदलाव के मुहाने पर तो हैं ही हम। दिल्ली की आज की ब्लॉगर मीट में भी इस बदलाव की छाया और स्वर दोनों थे। पहला बदलाव तो यह था कि मेजबान नदारद थे, और जिनके जैसे तेसे पहुँच जाने भर की उम्मीद थी वे बैठे हर मेज पर जाकर कुरेद कुरेदकर पूछ रहे थे कि भाईसाहब क्या आप वो हिंदी ब्लॉगर....., फिर हमारा साक्षात्कार एक आपत्तिसूचक नकार से होता था। हमें लगा कि ये ब्लॉगर मीटिंग कहीं ब्लॉगर डेंटिंग में न बदल जाए (जी साहब ब्लॉग शोधार्थी थीं ही वहाँ) पर खैर होनी को कौन टाल सकता है। धीरे धीरे ये लोग पहुँच गए-
(किसी नाम के आगे ‘जी’ नहीं लगाया गया है, हमारी संघ-आयु मात्र दो घंटे है....)
मैं
नीलिमा
नोटपैड
अमिताभ
सृजनशिल्पी
जगदीश
अमित
अविनाश व मुक्ता
भूपेन
वैसे पता चला कि मैथिली मिल न पाने के कारण उल्टे पाँव लौट गए थे और अमित काफी पहले से ही किसी और कॉफी डे में कॉफी सुढ़क रहे थे।
खैर चर्चा शुरू हुई (बाद में खत्म भी हुई इसी बात पर कि) ये.....ये माजरा क्या है ? अविनाश से तो हमने सीधे पूछा कि बताएं कि आपके इरादे क्या हैं- उन्होंने राष्ट्र के नाम संदेश नुमा कुछ बताया और अंत तक उसी पर कायम रहे। (शायद नौकरी का सवाल हो...) हमे लगा कि शायद अविनाश का निजी एंजेंडा तो कुछ न हो पर वैसे इलैक्ट्रानिक मीडिया के मोहल्ले में कुछ पक रहा है......वे आ रहे हैं। हमारी राय में कल की चिट्ठाचर्चा के कयासों में दम था। खैर चर्चा चली, कॉफी चली.....चर्चा गर्म हुई, काफी ठंडी हुई।
लोकमंच बनाम मोहल्ला हुआ, पर तू-तू मैं-मैं नहीं हुई, सद्भाव कायम रहा। और बात...किस किस पर बात नहीं गई, महमूद फारुकी, इरफान, जितेंद्र, अनूप, नारद, घुघुती, प्रत्यक्षा, ...
कैफे कॉफी डे के बाद ‘हरी घास में दमभर’ बैठे और भूखे पेट चिट्ठाकारी को आसमान पर जा ले बैठाया। हम तो इसी मेल मिलाप के लिए गए थे सो बतला दिया। सृजनशिल्पी जरूर किसी तयशुदा ऐजेंडा से थे सो बताएंगे ही। हमारे लिए काम के मिनट्स ये हैं।
कैफे कॉफी डे के टायलेट में पानी नहीं था।
अविनाश के सेलफोन पर जब मनीषा का फोन आता है, तो वो सबको सुनाते हैं
हमें मुफ्त में कैफे की शक्कर तक मिले ये तक नीलिमा से बर्दाश्त नहीं
नोटपैड को ‘boys will be boys’ से परहेज है
पहली हिंदी टीन को जगदीशजी चिट्ठाकारी में लाने वाले हैं
लोकमंच पर लाल सलाम होगा- मोहल्ले में नमस्ते सदा वत्सले...
आयरिश एक तरह की कॉफी होती है जिसे 90+(वजन, उम्र नहीं) के ब्लॉगर पी सकते हैं
अमित खजुराहो हो आए हैं, यानि केवल वयस्कों के लिए पोस्ट आने वाली है
दोनों तस्वीरें नोट पैड के सौजन्य से हैंइति श्री मीट कथा
16 comments:
बहुत कम और सधे शब्दों में बहुत कुछ बता दिया आपने।
नामों के साथ लिंक सही नहीं लगे, कृप्या ठीक कर लें :)
मसिजीवी वाकई मसिजीवी हैं। संघ की दीक्षा लेने के लिये धन्यवाद।
बहुत खूब! अब मैं इस बात का इंतजार कर रहा हूं कि कब मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के चिठ्ठाकार मिलेंगे।
अच्छा रहा वृतांत...सुना है कि सबसे मजा आपको आया?? :)
भेंटवार्ता के बारे में पढकर अच्छा लगा
अच्छा है। सूत्रवाक्य में सारा कुछ कह दिया आपने। यह अपने आप में एक उपलब्धि है कि लोग आये मिले।
बढिया ! पर हम तो छूट गये :-(
लोकमंच पर लाल सलाम होगा- मोहल्ले में नमस्ते सदा वत्सले...
सचमुच सफल रही ये सदभाव वार्ता। इसी के लिए तो जाना जाता है हिंदी चिट्ठाजगत... बंगला हो न हो, दिल में जगह बहुत है।
आपकी रपट ज्यादा वजनी है।
बहुत सही,
साफ़, सधे और संतुलित शब्दों मे चिट्ठाकार वार्ता का सार (लगता है प्रति शब्द टंकण सुविधा का लाभ उठाया गया था।)
मसिजीवी जी, आपसे मिलने की बड़ी इच्छा है, उम्मीद है इस बार की यात्रा मे आपसे मुलाकात अवश्य होगी।
हमें तो इस बार छोड दिया मिल के, लोकमंच वालों ने, मुहल्ले वालों ने...
खेर असल न सही चर्चा तो हमारे नसीब में था, शुक्रिया, शुक्रिया
इस कड़ी में अमिताभजी ने भी अपने दिल की बात लोकमंच पर रख दी है... वे इस चिट्ठाकार मिलन को एक नई पहल मानते हैं.
मसिजीवी जी कुछ ब्लॉगरों की शैली ऐसे होती है कि हर पोस्ट को रोचक बना देते हैं, आप भी उन्हीं में से एक हैं। कुछ ही समय पहले आपको पढ़ना शुरु किया और हैरान हुआ कि अब तक आपके बारे में कैसे नहीं जानता था।
जानकर खुशी हुई कि मिलन अच्छा और सार्थक रहा। इस तरह के मिलन न केवल आपसी मित्रता बढ़ाने में उपयोगी है वरन चिट्ठाकारी की दशा दिशा तय करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
बाकी भाई सब लोगों ने सस्ते में रिपोर्ट निपटा दी, आखिर छह घंटे आप लोगों ने इतनी बातें की, हम भी तो यहाँ बैठे कल से रिपोर्ट का इंतजार कर रहे थे हाँ।
@ जगदीश जी, शुक्रिया, लिंक ठीक कर दिए हैं।
@ अमिताभ जी नहीं कोई दीक्षा नहीं ली, अगर वह शाखा हमारे क्रिकेट मैदान पर ना हो रही होती तो मैं भी बच जाता। मैं कोई अविनाश थोड़े ही हूँ। ;)
@ संजीत, समीर, तरुण धन्यवाद
@ प्रत्यक्षा जी मैं इसे केवल आपके समय से ईमेल न पढ़ पाने की विवशता न मानकर, उस दृष्टिकोण से देखूँगा जिससे नीलिमा कह रही हैं.....प्रत्यक्षा पहुँच नहीं पातीं, नोट पैड को जल्दी जाना पड़ता है और नीलिमा के रूकने पर कयास लगते हैं जबकि कई पुरुष चिट्ठाकार मीट के बाद भी जमे रह पाते हैं।
शशि, अविनाश,मोहिंद्र श्रीष धन्यवाद
जितेंद्र, जरूर इसकी आस मुझे अरसे से है। इधर आएं तो इशारा जरूर करें मैं सर के बल पहुँच जाउंगा, आपके पास।
और हॉं श्रीष,
धन्यवाद। कृपया कयास न लगाएं। दूसरों की चक्की को अपना अपना अनाज पीसने दें। :) आपसे भी मिलने की बड़ी इच्छा है।
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