Saturday, August 04, 2007

आपकी नेकनीयती सरमाथे पर कुछ सलाहें अंग्रेजी वालों को भी दें।

रचना हिंदी और अंग्रेजी में ब्‍लॉग में लिखती हैं, अंग्रेजी में शायद पहले से लिखती हैं और हिंदी में भी खूब लिख रही हैं, अगर पोस्‍टों की संख्‍या को मापदंड माना चाहे तो चिट्ठाजगत के धड़ाधड़ पैमाने के अनुसार उन्‍होंने हाल में 10 दिनों में 29 पोस्‍टें लिखी हैं। उनकी पंचलाइन ही है -हिंदी को आगे लाए जाने के लिये इंग्लिश का बहिष्कार ना करके उसका उपयोग करें तो ज़्यादा बेहतर होगा

मुझे यह कार्यसूची रूचती है, वे पहली नहीं हैं हमारे ज्ञानदत्‍त जी तो इसके पहले से ही बड़े पैरोकार रहे हैं, इतने कि वो कई बार जानबूझकर केवल उकसाने भर के लिए अपनी पोस्‍ट में रोमन में लिखी अंग्रेजी का इस्‍तेमाल करते रहे हैं। आप नहीं ही पूछेंगे कि हमें कैसे पता कि ये उकसाने के लिए लिखा गया है, अरे भई हमसे बेहतर कौन पहचानेगा कि उकसाने के लिए लिखना क्‍या होता है- क्‍यों अनूपजी ? :)

तो खैर हिंदी और अंग्रेजी के बीच स्वाभाविक वैमनस्‍य का काल्‍पनिक संधान कर उसे पाटने का महत जिम्‍मा अपने ऊपर लेने का काम रचना और ज्ञानदत्‍तो द्वारा अक्‍सर किया जाता रहा है। जबकि सही बात यह है कि चिट्ठाकारी में इसकी शायद कोई जरूरत ही नहीं, क्‍योंकि यहॉं अंग्रेजी विरोध कोई स्‍वाभाविक बीमारी की तरह लोगों के मन में जमा नहीं बैठा है, कम से कम उस तरह तो नहीं ही जैसा कि अंग्रेजी के चिट्ठाकारों में इस 'फिल्‍थी' हिंदी जमात के लिए रहा है। पुराने चिट्ठाकारों को खूब याद होगा कि ब्‍लॉगमेला या इंडीब्‍लॉगीज के आरंभिक संस्‍करणों में ही कैसे अंग्रेजी चिट्ठाकारों ने अपने 'पवित्र' गुबार हिंदी वालों के लिए प्रकट किए थे- बिल्‍कुल नए लोगों को बताया जाए कि एक समय था जब चिट्ठों व चिट्ठाकारों की कमी के चलते पुराने चिट्ठाकारों ने यह सोचा कि उन भारतीय ब्‍लॉगरों तक पहुँचा जाए जो अंग्रेजी में ब्‍लॉग लिखते हैं- इनके ब्‍लॉगों पर हिंदी में टिप्‍पणियॉं करने का बीड़ा कुछ लोगों ने उठाया इसके लाभ भी हुए पर कुछ पवित्रहृदयी अंगरेजों को यह उनके ब्‍लॉगों का अपमान लगा, जरा इस टिप्‍पणी पर गौर फरमाएं-

Thousands of NRIs (inlcuding Hindi speaking people) have got jobs offshore because they speak good english. Thousands of them are working in non hindi states because their beloved Hindi heartland (BIMARU states) have nothing to offer in terms of good jobs.
So what is the problem in expressing your thoughts in english when you earn bread and butter from this language. If a bunch of people want to read and write in their regional language they should keep it confined to their web sites.
By sneaking into greater disopera like BBM or english blog writers, by leaving nice comments at our sites with their URLs pointing to their hindi sites, they want to lure us to read the material written in hindi plagiarized from english blogs.
And dear indiablogger, what a pity, looks like you are pushing some sort of Hindi agenda from your blogger awards too.You have managed to make two jury members who have hindi blogs, you have managed to get 3 sponsors including Microsoft for hindi blogs (except Sidharth Sivasailam )

यहॉं बीबीएम से आशय भारतीय ब्लॉग मेला है। इस तरह की टिप्‍पणियों के जबाव भी दिए गए थे पर इतना तय है कि ये विचार नकचढ़े भारतीय अंग्रेजी ब्‍लॉगरों की काफी प्रचलित राय को व्‍यक्‍त करते हैं जो शायद अब भी काफी बदली नहीं है। एक अर्जित भाषा से उधारी का दर्प हमारी समझ से बाहर रहा है, इसलिए जहॉं कुछ परिचित लोगों के अंग्रेजी चिट्ठों पर हम टिप्‍पणियॉं यदा कदा करते रहे हैं पर इससे ज्‍यादा नहीं। अंग्रेजी व हिंदी सद्भाव के घोषित ऐजेंडे वालों की नीयत पर हमें कोई शक नहीं है पर एक बात उन्‍हें समझनी चाहिए कि वे कोई मौलिक काम नहीं कर रहे हैं, वे कोई आसान काम नहीं कर रहे हैं, और सबसे जरूरी ये कि वे रोग का इलाज रोगी में करने के स्‍थान पर एक स्‍वस्‍थ व्‍यक्ति का इलाज करने सिर्फ इसलिए जुट गए हैं कि यह स्वस्‍थ व्‍यक्ति इलाज करवाने के लिए तैयार है और असल रोगी आपको कोई भाव दे नहीं रहा है। दरअसल प्रिंट या विश्‍वविद्यालयी दुनिया में जो भी हो पर अंतर्जाल की दुनिया में हिंदी के लोग अंग्रेजी भाषा के प्रति दुराग्रह से पीडि़त नहीं है या कम पीडित हैं इसलिए आपकी नेकनीयती सरमाथे पर कुछ सलाहें अंग्रेजी वालों को भी दें।

15 comments:

Anonymous said...

please check my english blog after a day or so { i will mail the link to yu} i am making a punch line for it also for the people who detest hindi and being indian
and please dont give me so much importance to write a post on me , there are many otthers who will benifit with your blog . i write from my heart and for my own pleasure. the number of post does not indicate any thing it mearly indicates that i do writng for my mother who cant blog her self. i write small snippets and many times delete them and rewrite them so the aggregators show maore numbers .
but i want to thank you for reading my blogs and i would request you to please read http://mysparshtarang.blogspot.com/
my view about english is that like mr laxmi mittal take over london !! with english and an indian passport
i am sure he will one day buy the palace and make us all proud

अनूप शुक्ल said...

अरे भई हमसे बेहतर कौन पहचानेगा कि उकसाने के लिए लिखना क्‍या होता है- क्‍यों अनूपजी ? :)मसिजीवी आदतन खुराफ़ाती हैं। खुराफ़ाती खुराफ़ात क्यों करता है, कैसे करता है जरूरी नहीं कि उसको इसके बारे में पता हो। रचना सिंहजी ने जो लिखा कि वे दिल से लिखती हैं यह बात सही लगती है। हिंदी अंग्रेजी के बहाने इत्ती अंग्रेजी ठेल दी। इत्ती तो ज्ञानजी ने अभी तक कुल मिलाकर नहीं ठेली होगी।

Gyan Dutt Pandey said...

मसिजीवी की अंग्रेजी में श्रद्धा नहीं है. हिन्दी में है - यह वे जाने. शायद एक भाषा का प्रेमी दूसरी से अरुचि नहीं कर सकता.

बाकी क्या पचड़े में पड़ा जाये! वे मस्त रहें और हमारी जोड़-तोड़ की भाषा पढ़ते रहें! :)

ePandit said...

हाँ जी हमने भी शुरुआत में कुछ अंग्रेजी पसंद लोगों को हिन्दी स‌े जोड़ने की कोशिश की तो ऎसी ही बातें स‌ुननो को मिली। बस हमने तौबा कर ली, हम अपनी छोटी स‌ी दुनिया में खुश हैं। कोई आए तो स्वागत है, हम किसी को पकड़ कर न तो ला स‌कते हैं न लाने वाले हैं। वैस‌े भी अब इसकी जरुरत नहीं रही, लोग थोक के भाव में खुद-ब-खुद आ रहे हैं।

Divine India said...

मासिजीवी जी,
बड़ा जंग है भाई भाषा का, संवाद का, नैतिकता का, मगर कोई इमानदार है तो बतलाए…।
मेरा मात्र एक प्रश्न है, किसी भी हिंदी ब्लागर जिनका परिवार है उनके बच्चे क्या हिंदी स्कूल में पढ़ते हैं???
बहुत बड़ा प्रश्न है यह हमारा "क्वाइन" के आमूल अनुवाद में यह कहा गया है कि किसी भी भाषा का का सतही स्वरुप बिल्कुल समान होता है और इसकारण हम एक दूसरे को अनुवादीत कर पाते हैं समझ पाते हैं…
हिंदी है हम वतन है, कहने मात्र से हमारी जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती चाहे लाख हम यहाँ(ब्लाग) पर इसकी झूठी नैतिकता को बनाए रखें मगर हमारे अपने घर के चुल्हे से अंग्रेजी का धुंआ निकलता है…।
धन्यवाद!!!!

Shastri JC Philip said...

प्रिय डिवाईन इंडिया,

कम से कम मैं एक हिन्दी चिट्ठाकर हूं जिसने अपने बच्चों के ग्वालियर के किसी भी अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में नहीं भेजा. अध्यापक होने के कारण मैं उनका दाखिला कहीं भी करवा सकता था. लेकिन मैं ने उनको ऐसे एक विद्यालय में पढाया जहां हिन्दी/अग्रेजी दोनों बराबर चलते थे. मुझे आज इस बात की खुशी है कि मैं ने यह किया जब कि मेरे मित्रगण इस बात से बहुत नाराज हो गये थे.

-- शास्त्री जे सी फिलिप

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

Neeraj Rohilla said...

मसिजीवीजी,

ये हिन्दी और अंग्रेजी का अन्तर धीरे धीरे पटेगा । इसके लिये महत्वपूर्ण है कि किसी भी एक भाषा को दूसरे से कमतर अथवा बढकर न देखा जाये, तभी आपस में विश्वास पनपेगा और दोनो भाषाओं को फ़ायदा मिलेगा ।

Rachna Singh said...
This comment has been removed by the author.
मसिजीवी said...

@ रचना,
ये शायद केवल उपागम का अंतर है- मेरे लिए हिंदी कोई परिधान नहीं है जिसे तिरंगा बनाकर मुझे पहनना, या अपने चिट्ठे पर फहराना पड़े, दरअसल मेरे लिए वह किसी राष्‍ट्रवाद का औजार भी नहीं है, इसलिए किसी राष्‍ट्रवादी द्वारा इस भाषा के इस्‍तेमाल से हमें संतोष नहीं होता। हमारे लिए तो हिंदी एक जीवंत भाषा हे जिसमें जीवंत संवाद होते हैं-
पुन: पढें हमने आपके और अन्‍यों के द्वारा प्रतिपादित दोनों भाषाओं में सद्भाव की वकालत का स्‍वागत किया है- बस इतना है कि हमें लगता हैं कि इस सद्भाव का अभाव अंग्रेजींदा लोगों में अधिक है बनिस्पत हिंदी ब्‍लॉगरों के।
रही बात हिट्स की- ससम्‍मान अर्ज है कि लिंक हिट उच्‍च पेजरैंक से लोअर कर तरफ होते हैं हमने अपने हिंदी के चिट्ठे जिसका पेजरैंक 4 था को अंगेजी में बदला ताकि ब्रिजब्‍लॉगिंग हो- ये हिट्स की भूख नहीं हो सकती, कोई ब्‍लॉगर इसे आत्‍महत्‍या कहेगा।
खैर आपकी इच्‍छा जो समझें पर इतना तय है कि आपको साड़ी में देखकर 'बहनजी' होने की घोषणा करने वाले हिंदीवाले नहीं ही होते होंगे। होते हैं क्‍या?

आप इन दो भाषाओं के बीच सद्भाव ला सकें - इसके लिए मेरी शुभकामनाएं स्‍वीकार करें।

Anonymous said...

http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2007/08/blog-post_05.html

भाई मसिजीवी जी उपागम का क्या मतलब होता है। बताएंगे क्या। आप और नीलिमा और नोटपैड वाले कोई ब्लॉग के बुश हैं क्या । हर जगह डंडा फटकारते फिरते हैं । आखिर आपलोग होते हैं कौन हैं किसी को समझाने वाले

Shastri JC Philip said...

प्रिय मसिजीवी,

रचना जी ने अपने चिट्ठों पर "personal space" समान शब्दों का प्रयोग करके कई बार यह व्यक्त किया है कि उनका चिट्ठा उनके लिये काफी व्यक्तिगत चीज है जिस पर चाहे तो उनके चिट्ठे पर टीकाटिप्प्णी की जा सकती है, लेकिन अन्यत्र करना उनके "personal space" में दखल देने के समान है.

चिट्ठाकारों में काफी विविधता है. इस वैविध्य के प्रति संवेदनशीलता दिखाना आपमुझ जैसे अध्यापकों के लिये अच्छा होगा.

Anonymous said...

mamta has left a new comment on your post "मसिजीवी सीमा का अतिक्रमण आप ने किया है । क्यो ? मु...":

हर कॉलेज मे जहाँ लडकियां सूट पहनती है उन्हें आजकल बहनजी ही कहा जाता है।

Durga said...

मसीजीवी जी

मै कोइ चिट्ठाकार नही हु पर मै रचना जी के ब्लाग काफी समय से पढता रहा हू ।

मुझे आप दोनो के विवाद का सन्दर्भ तो नही पता है, न ही मै जानता की किस सन्दर्भ मे रचना जी ने यह कहा "हिंदी को आगे लाए जाने के लिये इंग्लिश का बहिष्कार ना करके उसका उपयोग करें तो ज़्यादा बेहतर होगा"।

मसीजीवी जी, आपका कहना है "तो खैर हिंदी और अंग्रेजी के बीच स्वाभाविक वैमनस्‍य का काल्‍पनिक संधान कर उसे पाटने का महत जिम्‍मा अपने ऊपर लेने का काम रचना और ज्ञानदत्‍तो द्वारा अक्‍सर किया जाता रहा है।"

आप अध्यापक है और आपके बाकी के लेख पढने के बाद, यह बहुत साफ है, की आपकी सोच काफी सटीक है । सामयिक विषयो पर अच्छी व्याख्या करते है - परंतु मै आपकी उपर लिखी बात समझ नही पाया - हिंदी और अंग्रेजी के बीच स्वाभाविक वैमनस्‍य???? इस मे स्वाभाविक क्या है?? जहा तक मै समझता हू - भाषाओ के बीच तो कोई वैमनस्‍य होता नही है - हा वैमनस्‍य भाषा बोलने वालो के बीच तो हो सकता है - जैसा की आपने उदाहरण दिया ही ।

मगर मसीजिवी जी, आपके शब्द "काल्‍पनिक संधान", से मै बिल्कुल सहमत नही हु ।

रचना जी का "हिंदी को आगे लाए जाने के लिये इंग्लिश का बहिष्कार ना करके उसका उपयोग करें तो ज़्यादा बेहतर होगा", से क्या मतलब है, यह तो मै नही कह सकता, मगर मेरी अपनी सोच मे यह बात सही है। डिवाईन इंडिया जी ने बहुत अच्छा सवाल पूछा है और यह भी बहुत शानदार लिखा है - "मगर हमारे अपने घर के चुल्हे से अंग्रेजी का धुंआ निकलता है"। मै समझता हु, शास्त्री जी जैसे हिन्दी के भक्त कम ही होगे - की अपने बच्चो का विद्यालय मे दाखिला कराते समय हिन्दी को ईतनी एहमियत देते होगे । ज्यादातर बढे शहरो मे, लोग, अपने बच्चो के विद्यालय का चयन करते समय हिंन्दी के विषय मे सोचते तक नही है। मुझे, काम के सिलसिल मे, गॉव और छोटे शहरो मे भी आना जाना रहता है - और थोढी बहुत बातचीत मे, मैने जहॉ तक समझा है, मुझे तो यही लगा, की ज्यादातर माता -पिता पूरी कोशिश करते है, की उनके बच्चे अग्रेजी माध्यम विद्यालय में ही पढे !
सबकी राय अलग हो सकती है, मगर मेरी समझ तो यही कहती है की आज के समय मे, पूरे भारत मे, अग्रेजी को बहुत महत्व दिया जा रहा है - यह सही है की नही, ऐसा होना चाहिए की नही, यह एक अलग मुद्दा है - मगर मेरी समझ मे तो, इस बात को नजर अंदाज नही किया जा सकता, की भारत मे अग्रेजी जानने वालो की गिनती बढती जा रही है।
क्य़ोकि मुद्दा चिट्ठा समुदाय मे उठा है, तो मै, यह भी कहना चाहुगा, कि भारत मे बिकने वाले अधिकतर कंप्यूटर "बाई-डिफौल्ट" अग्रेजी मे ही चलते है, किबोर्ड भी अग्रेजी के ही है ... हिंन्दी का प्रयोग करना सम्भव है, और कितना मुश्किल है की आसान है, यह बात ज्यादातर लोग नही जानते है, इसलिए जो भी "बाई-डिफौल्ट" चल रहा है, और जिस मे भी शिक्षा दी गयी है (कंप्यूटर शिक्षा भी ज्यादातर अग्रेजी मे ही दी जाती है!) स्वभावतः व्यक्ति उसी भाषा का प्रयोग करने लग जाता है। मै समझता हु की यह बात नजर अंदाज नही की जा सकती, इसलिए मेरे विचार मे यह जरुरी है, की रचना जी कि बात पर ध्यान दिया जाए की "हिंदी को आगे लाए जाने के लिये इंग्लिश का बहिष्कार ना करके उसका उपयोग करें तो ज़्यादा बेहतर होगा"
अगर उपर लिखी बात सही न होती, तो कोइ भी बुद्धिमान व्यक्ति हिंन्दी transliteration पर काम नही करता - गूगल भी यह ओप्शन देता है, क्योकि वे जानते है कि अग्रेजी मे टाइप करना ज्यादातर लोग सिखते है, तो उस बात का "बहिष्कार ना करके उसका उपयोग करें तो ज़्यादा बेहतर होगा", सोच रखते हुए ही, हिंन्दी transliteration के ओप्शन का जन्म हुआ है।
मै किसी ओर के विषय मे नही कह पाउगा, मगर यदि transliteration का ओप्शन नही होता, तो मै शायद इस टिप्प्णी को हिन्दी मे टाइप कर पाने के आन्नद से वंचित रह जाता।

transliteration को तो आप "काल्‍पनिक संधान" नही मानेगे?? यह तो बिल्कुल सच्चाई है, जिसका मै अभी प्रयोग कर रहा हू ! transliteration हिंदी और अंग्रेजी के बीच के "स्वाभाविक वैमनस्‍य" का "काल्‍पनिक संधान" नही है बल्कि, "उसे पाटने का" बेह्तरीन उदाहरण है ।

मेरी समझ मे "इंग्लिश का बहिष्कार" तभी उचित होगा, जब की सभी शिक्षा संस्थानो मे, विषेशकर जहॉ कंप्यूटर शिक्षा दी जाती है, वहॉ यह भी बताया जाए, की जो कंप्यूटर "बाई-डिफौल्ट" अग्रेजी मे चल रहा है, वह उतनी ही आसानी से, हिन्दी मे भी चल सकता है... (क्या हिन्दी चिट्ठा समुदाय, इस विषय मे कुछ कर सकता है, की हिन्दी चिट्ठाकारी को सभी शिक्षा संस्थानो मे बढ़ावा दिया जाए?? ओर युवा पीढी को आकर्षित करने के लिए, हिन्दी चिट्ठाकारी के "टूल्स" के सहज प्रयोग की जानकारी दे और कुछ "कैम्पेन" करे, जिससे हिन्दी चिट्ठाकारी "कूल" लिस्ट मे आ जाए!!!)

साथ ही मे, मै यह भी कहना चाहुगा की, मै रचना जी का, अग्रेजी चिट्ठा पढा करता था। मुझे पता तक नही था की हिन्दी मे भी चिट्ठाकारी होती है!! शायद रचना जी को भी नही पता था, क्योकि जहॉ तक मुझे याद है, उनका हिन्दी कविताओ का चिट्ठा, रोमन लिपि मे था। उनके हिन्दी चिट्ठे को जितेन्द्र जी का भी सहयोग प्राप्त हुआ और जब नाराद जी की क्रपा से अन्य हिन्दी चिट्ठाकार आए, तो धीरे-धीरे समझ आया, की हिन्दी चिट्ठाकारी की भी बडी दुनिया है!!
अब तक भी हिन्दी टाइप करने की आदत नही है, मगर फिर भी कम से कम कुछ तो लिख ही पा रहा हू ! यह सब बताने का तात्पर्य यह है, की जिस तरह मै अग्रेजी चिट्ठा पढते, हिन्दी चिट्ठो तक पहुचा हु, तो मेरे जैसे और भी हो सकते है।

आपके कहे वाक्य पर वापिस आने की इजाजत चाहुगा - "तो खैर हिंदी और अंग्रेजी के बीच स्वाभाविक वैमनस्‍य का काल्‍पनिक संधान कर उसे पाटने का महत जिम्‍मा अपने ऊपर लेने का काम रचना और ज्ञानदत्‍तो द्वारा अक्‍सर किया जाता रहा है।"
"काल्‍पनिक संधान" पर तो चलिए विवाद रहा - न जाने अन्य पाठको की क्या राय हो, मगर, इस बात पर चाए किसी की राय कुछ भी हो, मेरा यह निश्चित मानना है, की "ज्ञानदत्‍तो" - इस प्रकार से किसी का नाम लिखना शोभा नही देता - किसी दूसरे व्यक्ति की राय चाहे कुछ भी हो, इस तरीके से ज्ञानदत्‍त जी लिखने की जगह, "ज्ञानदत्‍तो" लिखना उचित तो नही लगता।
यह वाक्य ही क्यो, शायद यह पूरा लेख आप किसी व्यक्ति विशेष का नाम लिये बिना ही लिख सकते थे.... यदि किसी बात मे दम हो, तो केवल बात कहना भर काफी है, किसी और के नाम की क्या जरुरत है .....इस बात को अन्यथा ना लिजिएगा, पुराने चिट्ठाकारों का जो अनुभव रहा, मुझे भी पढ कर अच्छा नही लगा,.. और मेरे दिल मे आपके लिए भी बहुत इज्ज़त है, परंतु कोई बात यदी सही न लगे, तो अव्शय बोलना चाहिए, ऐसा मेरा मानना है, सो कह दिया, आशा है, आप अन्यथा नही लेगे..

पुराने चिट्ठाकारों का जो अनुभव रहा, वह तो अच्छा नही है।
जो टिप्‍पणी आपने प्रस्तुत की है, उसका उपयुक्त जवाब तो वहॉ दिया ही गया था, जवाब बिल्कुल सही है मगर दुर्भाग्य की उन जवाबो का आदर नही हुआ - शायद जिन्होने प्रशन किए, वे हिन्दी मे कोइ रुची नही रखते थे, और "जबरद्स्ती" तो हो नही सकती।
मगर फिर भी अग्रेजी के बढते हुए महत्व को ध्यान रखते हुए, यदी "हिंदी को आगे लाए जाने के लिये इंग्लिश का बहिष्कार ना करके उसका उपयोग करें तो ज़्यादा बेहतर होगा"
कम से कम, जो चिट्ठाकार इंग्लिश मे चिट्ठा लिख रहे है, उन्हे हिन्दी मे चिट्ठाकारी के विषय मे जरुर् बताना चाहिये - कोइ "हार्ड सेलिंग" नही होनी चाहिए - केवल जानकारी ओर उचित प्रोत्साहन (यदि सम्भव हो ओर सबसे जरुरी यह की, यदि वह चिट्ठाकार भी रुचि दिखाए..) ।
यह स्पष्ट है की ऐसा करने पर पहले जैसी समस्या तो अवश्य आ सकती है, , फिर भी केवल इसलिए की कोइ इंग्लिश मे चिट्ठा लिख रहा है, उसका बहिष्कार नही होना चाहिये ..

पुराने चिट्ठाकारों का जो अनुभव रहा, वह खराब अव्शय है, मगर जहॉ सम्भव हो, कोशिश तो जारी रहनी चाहिए, बहिष्कार शायद उचित न हो .... आप स्वयं ही कहते है "इसके लाभ भी हुए"....

जो भी हो यदि "हिंदी को आगे लाए जाने के लिये का बहिष्कार ना करके उसका उपयोग करें" शायद उतना बुरा भी नही है - रचना जी अपनी हिन्दी की कविताए, इंग्लिश मे भी प्रकाशित करती है - और जैसे मै उनके इंग्लिश ब्लौग से हिंदी चिट्ठे पर आ गया, मुझे पक्का विशवास है की ओर भी ऐसे पाठक है - आज वे हिंदी चिट्ठा पढ रहे है, कल हिंदी चिट्ठा बना भी सकते है ...

"बीमारी" से आपका तात्पर्य भाषा के विरोधी विचारो से है.. तो यह तो अच्छा ही है की हिंदी चिट्ठाकारों में यह "बीमारी" नही है!
आपने इस भाषा विरोधी विचारधारा का जो निन्दन किया है, वह भी उचित है।

आपके विचार - "अंग्रेजी व हिंदी सद्भाव के घोषित ऐजेंडे वालों की नीयत पर हमें कोई शक नहीं है पर एक बात उन्‍हें समझनी चाहिए कि वे कोई मौलिक काम नहीं कर रहे हैं, वे कोई आसान काम नहीं कर रहे हैं", भी उचित लगे ।

आपके विचार "और सबसे जरूरी ये कि वे रोग का इलाज रोगी में करने के स्‍थान पर एक स्‍वस्‍थ व्‍यक्ति का इलाज करने सिर्फ इसलिए जुट गए हैं कि यह स्वस्‍थ व्‍यक्ति इलाज करवाने के लिए तैयार है और असल रोगी आपको कोई भाव दे नहीं रहा है।" से मै सहमत नही हू, क्योकि इलाज शायद कोइ नही कर रहा है, केवल प्रोत्साहन दिया जा रहा है, की हिन्दी मे चिट्ठाकारी की तरफ रुचि बढे..

यदि भाषा विरोधि विचारधारा "बीमारी" है, तो मै समझता हू की यह बिमारी लाइलाज है, या इसका इलाज इतना कठिन है, की किसी भी चिट्ठाकार को इस पर समय नही देना चाहिए - केवल उन्ही की सहायता की जा सकती है, जो की स्वयं "ठीक होने" की रुचि रखते हो, इसलिये प्रोत्साहन को "स्‍वस्‍थ व्‍यक्ति का इलाज" बता कर बहुत से लोगो का मन न तोड़े!

आपके विचार - "अंतर्जाल की दुनिया में हिंदी के लोग अंग्रेजी भाषा के प्रति दुराग्रह से पीडि़त नहीं है या कम पीडित हैं इसलिए आपकी नेकनीयती सरमाथे पर कुछ सलाहें अंग्रेजी वालों को भी दें"
:-)
यदि "सलाह" से आप वही "बिमारी" के इलाज वाली बात बोल रहे है, तो मेरे विचार तो स्प्ष्ट ही है - "सलाह" बेकार जाएगी, यह आप भी जानते है - इसलिए मेरे विचार मे, जो रचना जी पहले ही कर रही है - वे अपने इंग्लिश ब्लौग पर भी हिन्दी कविता के अनुवाद देती है ओर लिंक्स भी - जैसे की यहॉ
http://myownspacemyfreedom.blogspot.com/2007/07/some-interesting-links-to-make-your.html

ऐसा करना, मेरी समझ मे यही है, जो shrish जी ने बताया "कोई आए तो स्वागत है, हम किसी को पकड़ कर न तो ला स‌कते हैं न लाने वाले हैं।" - लिंक्स दे दिये है रचना जी ने - जो आए उनका स्वागत है - मेरी हिन्दी भी ज्यादा अच्छी नही है - तो कई बार रचना जी से शब्दो के अर्थ भी पूछ्ने पढे, तो उन्होने जरुर मदद की ....

ओर shrish जी, बढिया खबर भी दे रहे है "वैस‌े भी अब इसकी जरुरत नहीं रही, लोग थोक के भाव में खुद-ब-खुद आ रहे हैं।" ;-)

Neeraj Rohilla जी की बात भी मुझे बहुत अच्छी लगी ।

रचना जी की "मुझे जवाब चाहिये ? ?" टिप्प्णी सीधी आपसे है, इसलिए, उस पर मै कोइ टिप्प्णी नही करना चाहता ...

आपने जो रचना जी को जवाब दिया है, उसमे आपने कहा की "ये शायद केवल उपागम का अंतर है" - तो मै समझता हू की उपागम का अंतर जरुर है, मगर उपागम का अंतर बताते हुए आप भी राष्‍ट्रवाद ओर तिरंगे पर पँहुच गए!!!! रचना जी को भी शायद तिरंगे को, हिन्दी को बढावा देने से थोडा दूर रखना चाहिये। हो सकता है, "८०० ब्लोग पर तिरंगा" भी बदलाव लाए, फिर भी जो विवाद है, वो तो कुछ और है... - "हिंदी को आगे लाए जाने के लिये इंग्लिश का बहिष्कार ना करके उसका उपयोग करें तो ज़्यादा बेहतर होगा"

और आपके विचार "बस इतना है कि हमें लगता हैं कि इस सद्भाव का अभाव अंग्रेजींदा लोगों में अधिक है बनिस्पत हिंदी ब्‍लॉगरों के।" का भी आदर है क्योकि पहले के अनुभव का भी आदर होना चाहिए .. फिर भी यह माना भी जाए, की अंग्रेजींदा लोगों मे "बिमारी" ज्यादा है तो भी क्या उनका बहिष्कार उचित होगा - वे गलत है तो क्या हम भी गलत हो जाए?? यदि नही, तो.....

वैसे उपागम का अंतर, जो मुझे समझ आया, वह शायद यह है की रचना जी हिन्दी को बढावा देने मे इंग्लिश का भी साथ लेना चाहती है और शायद आप इसे उचित नही समझते - तभी विवाद है, वरना आप लेख क्यॉ लिखते ।
और यदि आप कहना चाहते है की लेख मे कोइ विवाद नही है, तो मै आपसे अव्शय जानना चाहुगा की
एक तरफ आपकी शुभकामनाएं है - "आप इन दो भाषाओं के बीच सद्भाव ला सकें - इसके लिए मेरी शुभकामनाएं स्‍वीकार करें।" और वही "तो खैर हिंदी और अंग्रेजी के बीच स्वाभाविक वैमनस्‍य का काल्‍पनिक संधान कर उसे पाटने का महत जिम्‍मा अपने ऊपर लेने का काम रचना और ज्ञानदत्‍तो द्वारा अक्‍सर किया जाता रहा है।" जैसी तिखी टिप्प्णी और साथ ही आपने पोस्‍टों की संख्‍या पर भी टिप्प्णी कर डाली - भला इसका "हिंदी को आगे लाए जाने के लिये इंग्लिश का बहिष्कार ना करके उसका उपयोग करें तो ज़्यादा बेहतर होगा" से क्या संबंध?? यह तो केवल एक व्यक्तिगत ...
मै रचना जी की, या ज्ञानदत्‍त जी की तरफदारी नही कर रहा हू - महज "हिंदी को आगे लाए जाने के लिये इंग्लिश का बहिष्कार ना करके उसका उपयोग करें तो ज़्यादा बेहतर होगा" पर टिप्पणी है और साथ ही मे, मुझे आपके द्वारा लिखी गयी, कुछ बाते व्यक्तिगत चोट पहुचाने वाली लगी, सो आप को लिख दिया है - आशा है इसे अन्यथा नही लेगे..
सादर धन्यवाद!

Yatish Jain said...

मसिजीवी,
आपकी पहल को प्रणाम,
आज के दौर में अंग्रेजी का बहिष्कार करना अपना सर अपने हाथ से दीवार में दे मरने के बराबर हैं।
में अंग्रेजी का अनुयायी नही पर विरोधी तो बिल्कुल नही हूँ। में एल प्रश्न पुचना चाहता हूँ सभी लोगो से की आपने ये ब्लोग्स बनाए क्यों हैं।
१. अगर आप ये कहते हैं कि मेने इसे अपने लिए सिर्फ बनाया हैं जो हमारी इस संस्कृति के जनक महोदय ब्लॉगर ने उसमें एक सुविधा दीं हैं इसे व्यक्तिगत करने की।
२. अगर इसे सबको दिखाना हैं के उद्देश्य से बनाए हैं तो क्यों ना सारा विश्व देखे।
३. अगर आप कुछ्लोगो को ही अपने विचार दिखाना चाहते हैं तो आप के पास साधन हैं, अन्यथा ये तो कूपमंडूक वाली बात हो गयी।
हिंदी पर चर्चा करना एक गम्भीर विषय हैं। आज सिर्फ हिंदी जानने वालो की प्रगती के मार्ग पर अग्रसर होने की क्याक्या मजबूरियां हैं ये शायद आप नही जानते।
मेरे ख़याल से आप हिंदी फिल्म उद्योग और विज्ञापन की दुनिया को तो जानते होंगे। नही जानते तो आपकी जानकारी के लिए बतादु कि हिंदी को बेचने केलिये अर्थात काम करने के लिए अंगरेजी का आना बहुत ज़रूरी हैं इस कड़वे सच को दिन में तीन बार रोज पीताहू में।
अगर आप इसे सही करना चाहते हैं तो जंतर मंतर खुला हैं दिल्ली में अपनी टोली लाकर धरना दीजिए ।
हमसे ज्यादा तो हिदी प्रेम अंगरेजी वालों को हैं, क्या आप जानते हैं सबसे पहले किस न्यूज़ चैनल ने हिंदी में वेबसाइट बनाई , बीबीसी ने । अब निकालो हिंदी प्रेम का जलूस। आज तक किसी चिट्ठाकार समुह ने इसपर मुहिम चलाई क्या । मन में सब जानते हैं किसमें कितना हैं दम, कोई नही लड़ सकता इस बात से कोरी बातें हैं
मै किसी की भावनायों को ढेस नही पहुचाना चाहता और नही किसी के देश प्रेम पर उंगली उठाना चाहता अगर हिदी जगत को मेरी बात का बुरा लगे तो माफी चाहता हूँ।

मसिजीवी said...

शास्‍त्रीजी मैं आपकी राय से सहमत हूँ, यह पसंद का वैविध्‍य रहा जिसका मेरा आकलन गलत था। मेरी अपनी समझ में चिट्ठे हमारे स्‍व का सार्वजनिक पक्ष होते हैं पर वह सिर्फ मेरी राय ठहरी। रचनाजी की मूल आपत्ति शीर्षक में उनका नाम होने से थी- मैंने हटा दिया है।

प्रिय यतीश व दुर्गा- मेरी इस पोस्‍ट से आपके लेखन से परिचित होने का सौभाग्‍य तो मिला, अपनी राय से अवगत कराने का शुक्रिया।

चेंकि यह थ्रेड अब अपनी विमर्शात्‍मक गुण्‍वत्‍ता से प्रेरित नहीं बचा है इसलिए मैं इस पर और टिप्‍पणियों को रोक रहा हूँ, खेद है।
रचनाजी पर तथा मुझ पर तथा कुछ अन्‍य इस पोस्‍ट से असंबद्ध लोगों पर अप्रिय टिप्‍पणियॉं आईं जिनकी वजह मॉडरेशन शुरू करना पड़ा इसका भी खेद है।