Friday, September 07, 2007

एक नुमाइशी जुगलबंदी- गीताप्रेस गोरखपुर और विल्‍स इंडिया फैशनवीक

दिल्‍ली आसानी से देश की प्रकाशन राजधानी भी है इसलिए भले ही 'दिल्‍ली पुस्‍तक मेला' अपने आकारादि में विश्‍व पुस्‍तक मेले (यह भी दिल्‍ली में ही होता है) के सामने कहीं न ठहरे तो भी यह ऐसी नुमाइश तो होती ही है कि हम इसके हर बार दर्शक ठहरते हैं। इस बार भी गए। प्रगति मैदान के हाल संख्‍या 9-10-11-12 में जमाए गए जमावड़े़ में कई प्रकाशक नदारद थे तो कुछके स्‍टाल व प्रतिभागिता का स्‍तर काफी कम था। यहॉं तक कि अकादमियॉं आदि भी कम संख्‍या में थीं। पर इसके बावजूद प्रबंध अच्‍छा है जो प्रकाशक हैं उनके पास भी इतना माल तो है ही कि उसके बहुत ही थेड़े अंश को खरीद पाते हैं बहुत सा टालना पड़ता है मन मसोसना पड़ता है खासकर अंगेजी की डालर पाउंड वाली किताबे अपनी पहुँच से बाहर ही लगी- पुस्‍तकालय के ही भरोसे पढ़ पाएंगे। हॉं हिंदी की किताबे अभी भी जम के खरीदी जा सकती हैं। देवनागरी में उर्दू साहित्‍य अब खूब दिख रहा है।

कौन थे दर्शक- घर-परिवार वाले लोग सपरिवार, और थे विद्यार्थी, अध्‍यापक, शोधार्थी सब जाने पहचाने से चेहरे- एक तसल्‍ली के भाव से। किताब किताब पर ठहरकर खिसकते...तसल्‍ली का दुर्लभ सा होता भाव पसरा था।

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अगर आप हॉल 9 से घुसेंगे और किताबों की सारी नुमाइश के बाद निकलेंगे तो आपका निकलना होगा हॉल 12 से और बाहर आते ही उई बाबा रे.... 

नहीं यूँ तो हर एयर कंडीशंड क्षेत्र से बाहर निकलते ही एक गर्म भभका आकर टकराता ही है चेहरे से पर यहॉं मामला दूसरा है। हॉल 7-8-9 हॉल इस हॉल से सटे हॉल हैं और यही है इस साल के विल्‍स इंडिया फैशन वीक  का स्‍थान।



तमाम ज्ञान बघारें, स्‍त्री विमर्श पढें या पढ़ाएं यानि कितने ही चेहरे ओढ़ लें एक बनैला आदमी छिपा ही होता है। किताबों का झोला टांगे बाहर आएं और (शायद समय ऐसा था' शाम के छ: होंगे) अचानक एक के बाद एक मॉडल और डिजाइनर आदि लोग चमचमाते चेहरों और दीप्‍त न जाने किस बात के आत्‍मविश्‍वास के साथ इस रहस्‍यलोक में गुम होते जाएं तो....हम तो अकबका गए।

दो इतनी भिन्‍न दुनिया- किताब की दुनिया वालों को तो पता है कि वो पेज थ्री वाली दुनिया है पर उससे उनका कोई वास्‍ता नहीं। उस फैशन वीक पीढ़ी को तो शायद पता ही नहीं कि ये किताब वाली पीढ़ी का वजूद भी है। पर देखिए मजा कि दोनों को एक दूसरे का पड़ोसी बना दिया। आप दोस्‍त बदलें, दुश्‍मन बदलें पर पड़ोसी नहीं बदल सकते। पुस्‍तक मेले से निकले कुछ लोग जो किन्‍हीं हसरतों से फैशनवीक मंडली की तरफ  देख रहे थे और उन्‍हें बेहद हिकारत से देखा जा रहा था...खूब जुगलबंदी थी। स्‍त्री विमर्श की पैरोकार मित्र ने मुस्‍कराकर हमारी अकबकाहट को देखा और गीताप्रस गोरखपुर से निकली स्‍त्री नैतिकता पर लिखी किताब दिखाते हुए उसकी मूर्खतापूर्ण शिक्षाओं पर अपनी राय देने लगीं।

 

7 comments:

अजित वडनेरकर said...

बढ़िया है। कुछ पुस्तकों की, नए प्रकाशनों की जानकारियां देते तो और अच्छा था। अगली पोस्ट में अपेक्षा रखें ?

Yunus Khan said...

वाह क्‍या दृष्टि है भाई । अच्‍छा लगा ।
बहुत बढि़या पोस्‍ट ।

Anonymous said...

these fashion shows are for geting export orders. once the order is achieved they are made in bulk depending on the price . garment / fashion industry and hometextile industry is a sorce to earn dollars . this is work / profession for the designers/ models/ buyers . like a teachers earn by teaching we earn by selling our expertise .

Anonymous said...

लेकिन कपड़े बेचने के लिये नंगापन फैलाने की ही जरूरत है? क्या एक्सपोर्ट आर्डर्स इस नंगेपन के बिना नहीं मिलेंगे?

Anonymous said...

हे नर , क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम


क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम
कि नारी को हथियार बना कर
अपने आपसी द्वेषो को निपटाते हो
क्यों आज भी इतने निर्बल हो तुम
कि नारी शरीर कि
संरचना को बखाने बिना
साहित्यकार नहीं समझे जाते हो तुम
तुम लिखो तो जागरूक हो तुम
वह लिखे तो बेशर्म औरत कहते हो
तुम सड़को को सार्वजनिक शौचालये
बनाओ तो जरुरत तुम्हारी है
वह फैशन वीक मे काम करे
तो नंगी नाच रही है
तुम्हारी तारीफ हो तो
तुम तारीफ के काबिल हो
उसकी तारीफ हो तो
वह "औरत" की तारीफ है
तुम करो तो बलात्कार भी "काम" है
वह वेश्या बने तो बदनाम है

Anonymous said...

@permanand
sir it really depends on what you want to see and how you want to see
its a business event and i dont think you were invited and if you were then please be kind enough to share your views on the product and not on how the product was displayed
comment to the business and its strnghts and weekness and not on what you are seeing in that business

मसिजीवी said...

@ परमानंद, आप कह रहे हैं कि वहॉं केवल नग्‍नता होती है तो संभव है सही हो पर मुझे किसी फैशन वीक या फैशनशो से कुछ अधिक दिक्‍कत नहीं है एक किसम का इन्डिफ्रेंस है- हॉं यहॉं स्‍थान के एक ही होने की वजह से इन दो दुनियाओं का एक दूसरे को देखना एक मजेदार अनुभव था तो साझा किया।

@ रचना, आपकी कविता देखी और उसके लिंक्स भी, दिल से लिखी है - बधाई