Saturday, September 13, 2008

दिल्‍ली के ये बम मीडिया के लिए सौदा हैं

ये पोस्‍ट बेहद गुस्‍से में लिखी गई है, विवेक की उम्‍मीद न करें।

दिल्‍ली में इस वक्‍त कुछ बम विस्‍फोट हो रहे हैं। लोग मारे जा रहे हैं' ये दुकानदारी का समय है चैनलों के लिए। जिस पैमाने पर गैर जिम्‍मेदाराना रिपोर्टिंग अभी चल रही है, उसके बिना पर तो खुद इन चैनलों पर आतंकवाद फैलाने का मुकदमा चलना चाहिए। मौके पर खड़े पत्रकार शोर सुनते ही शोर मचा रहे हैं नेशनल मीडिया में कि मानव बम मिला ... कमबख्त मुड़कर जॉंच भी नहीं रहे कि खबर है या अफवाह... दो ही मिनट बाद गुब्‍बारे वाला बच्‍चा- मानव बम नहीं .. सबसे अहम गवाह हो जा रहा है। मुझे तो लगता है कि मीडिया वालों से तो कहीं ज्‍यादा जिम्‍मेदार व पेशेवर खुद वे आतंकवादी हैं जिन्‍होंने बम प्‍लांट किए। उनका काम है आतंक फैलाना और वे वहीं कर रहे हैं। लेकिन ये कम्‍बख्‍त पत्रकार व चैनल क्‍या इनका काम भी आतंक फैलाना है..अगर नहीं तो वे क्‍यों ये कर रहे हैं।  कोई इन्‍हें बंद करो नहीं तो ये देश में आग लगवा देंगे- 

एक बानगी देखें-

 

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19 comments:

Nitin said...

isme vivek ki zarurat bhi nahi he. Elec. Media ne haer chiz ka aesa houva bana rakha he ki had ho gai. Inki badolat Indore(MP) me ek 16 saal ki kishori ne khudkusi kar li, kyonki wo Tv per pralay ki afwaah dekhkar dar gai thi. aapne sahi likha he.

Anonymous said...

अन्याय के खिलाफ़ गुस्सा लाजमी है लेकिन विवेक खोने की बात न कहें । यूट्यूब की क्लिप नहीं दिख रही।हटा दी है?

मसिजीवी said...

क्लिप अभी अपलोड की है पर यूट्यूब थोड़ा वक्त लेती है इसे प्रोसेस करने में इस वजह से अभी क्लिप दिख नहीं रही है। कुछ मिनटों में आ जानी चाहिए
असुविधा के लिए खेद है।

Anonymous said...

मिडिया को सनसनी फेलाने की बजाय जिमेदारी भी निभानी चाहिए

अविनाश वाचस्पति said...

चैनलों को काम मिल गया है अब
सतर्कता ही जीवन बना बंधु अब
ग्राफिक्‍स वाले लगे हुए हैं लेकर
अपने माउस, चैनल तख्‍ते ताउस।

मोहन वशिष्‍ठ said...

पता नहीं क्‍या चाहते हैं ये देश के हत्‍यारे भगवान तो क्‍या इनको कोई भी माफ नहीं करेगा इस पर मैंने भी कुछ लाईनें लिखी हैं दुखी मन से

MANVINDER BHIMBER said...

gussa ana to laajmi hai...maine bhi office mai is khabar ko suna....mere shahar mai bhi high arart kar diya gaya hai....aaj khabar kikhne ka bhi man nahi ho rah thaa

MANVINDER BHIMBER said...

mere blog par bhi aae agar time ho to

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

मैने १० मिनट यह समाचार देखा और टीवी बन्द करके नेट पर आ गया। ये चैनेल वही समाचार चौबीस घण्टे तक चलाएंगे। तबतक हम कुछ और पध़्अ-लिख लें... अच्छी पोस्ट।

दिवाकर प्रताप सिंह said...

दरअसल देश और यहाँ के बाशिंदे इसी तरह की त्रासदियों को भोगने के लिए अभिशप्त हैं। चरम पर पहुँच चुके भ्रष्टाचार, अय्याशी और क्षेत्रवाद के बीच देश के बारे में सोचने के लिए किसी के पास फुरसत ही नहीं है। हम सहिष्णुता की आड़ में कायरता दिखाते आए हैं। राष्ट्र के बारे में सोच कर निर्णय लेने का समय और क्षमता हमारे पास है ही नहीं। निर्णय के कारक तो सीधे वोट बैक और तुष्टिकरण से जुड़े हुए हैं।

Anonymous said...

मीडिया चैनलों के लिए तो वाकई दुकानदारी का सीज़न है! बेचारे इधर उधर खबर तलाशते घूमते रहते हैं कि क्या दिखाएँ, कैसे टीआरपी हासिल करें, भूत प्रेत भी कब तक दिखाएँगे। तो ऐसे में बम फट जाए, कोई और लफ़ड़ा हो जाए तो वाकई इन लोगों के लिए ग्राहकी बढ़ाने का सौदा हो जाता है। खबर कन्फर्म नहीं है कि उस बालक के बम बंधा था कि गुब्बारा, खुद उनका संवाददाता कह रहा है, लेकिन ये बड़े ही विश्वास के साथ स्क्रीन पर दिखा रहे हैं कि मानव बम पकड़ा!!

टुच्चेपन में वाकई न्यूज़ चैनलों की कोई सानी नहीं है, इनका कोई घरवाला मर रहा होगा तो उसको भी ये सनसनीखेज खबर बना के बेच दें!! अभी आज ही पढ़ रहा था, अमेरिका में कोलोरैडो (Colorado) के एक अखबार ने एक तीन साल के बच्चे के अंतिम संस्कार को ट्विट्टर पर लाइव प्रसारण कर दिया। लानत है ऐसे समाचार माध्यमों पर! यही कारण है कि मैंने टीवी वाले न्यूज़ चैनल देखने ही बंद कर दिए, खबर अब इंटरनेट पर ही पढ़ता हूँ, गूगल न्यूज़ खोलो और सभी खबरे वहाँ पढ़ो।

सचिन मिश्रा said...

sach likha hai aapne.

شہروز said...

sahi kah rahe ho bandhu.
ye media nahin hai jiski kalpana kabhi hamne ki hogi.
jiske sapne dekh ham gaon se dille aaye the.
log yun bol rahe hain maano inhain sab kuch pata hai.

Udan Tashtari said...

सहमत हूँ.


अफसोसजन..दुखद...निन्दनीय घटना!!

संजय बेंगाणी said...

मैं तो इनकी नीचता गुजरात दंगो के समय से ही देखता आया हूँ, और अब समाचार देखना ही बन्द कर दिया है. नेट जिन्दाबाद.

bhuvnesh sharma said...

मैंने इसी कारण से टीवी देखना छोड़ दिया है

बेहद शर्मनाक

Pawan Kumar said...

पहली बार आपके ब्लॉग पर आया. गुस्से में लिखी आपकी पोस्ट पढ़ी.आपने सामयिक विषय पर गंभीर टिपण्णी दी है वाकई मीडिया की गैर जिम्मेदाराना हरकत से दुःख होता है मगर मीडिया की ख़ुद की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो भी आत्म मंथन करे कि वो सनसनी के बहाने जनता को क्या परोस रहे हैं

Abhishek Ojha said...

कल से तो ऐसा लग रहा है की धमाको में शायद सबका ही फायदा है... केवल निरीह घायल जनता को छोड़कर.

Sumit Pratap Singh said...

सादर नमस्ते !

कृपया निमंत्रण स्वीकारें व अपुन के ब्लॉग सुमित के तडके (गद्य) पर पधारें। "एक पत्र आतंकवादियों के नाम" आपकी टिप्पणी को प्रतीक्षारत है।