Monday, July 11, 2011

लद्दाख यात्रा

अरसे बाद पोस्‍ट लिखी जा रही है, ब्‍लॉग पढ़ना भी कुछ कम हो रहा है... क्‍यों? कई बहाने बनाए जा सकते हैं पर हम मास्‍टरों की दिक्‍कत ये है कि वे लाख बहाने बनाएं पर दुनिया का सबसे चालू बहाना उनसे मुँह मोड़े रहता है... वे कह सकते हैं कंप्‍यूटर खराब है, बीमार हैं, इंटरनेट नहीं चल रहा... आदि आदि। पर वे ये नहीं कह सकते कि समय नहीं मिला, व्‍यस्‍त था। मास्‍टर और व्‍यस्‍त... कौन मानेगा, खुद समय आकर गवाही देगा...मैं समय हूँ..हर मास्टर के पास मैं बहुतायत में हूँ... जो मास्‍टर कहे मेरे पास समय नहीं है...वो झूठ बोलता है... उसने अपने विद्यार्थियों से अच्‍छे बहाने बनाना तक नहीं सीखा, उस पर विश्‍वास न करो। तो भैया हम बीमार थे (झूठ), हमारे कंप्‍यूटर खराब थे (झूठ), हमारे ब्राडबैंड का भट्टा बैठ गया था (झूठ)... पर हमारे पास समय की कमी नहीं थी (सच)। एक और सच ये भी है कि हम नहीं लिख रहे थे क्‍योंकि हमें पता है सदैव पता था कि मेरे-उसके- किसीके लिखने न लिखने दुनिया थमती नहीं है। तो आज मन किया इसलिए लिख रहे हैं :)

समय की अधिकता के कई साइड इफेक्‍ट्स में से एक ये भी है कि हम यात्रा खूब करते हैं। जबसे ब्‍लॉग लिखने में विराम आया तब से कई यात्राएं की हैं...हिमाचल में अलग अलग यात्राओं में सिरमौर क्षेत्र, डलहौजी, धर्मशाला, मैक्‍लाडगंज, मनाली, रेवलसार आदि जाना हुआ। बीच में काम से जुड़ी एक यात्रा में अहमदाबाद भी जाना हुआ जहॉ बेहद सौम्‍य संजय बेंगाणी भाई से भी एक संक्षिप्‍त मूलाकात हुई।  जिस यात्रा की बात मैं आज करना चाह रहा हूँ वह इनसे अलग हाल की हमारी लद्दाख यात्रा है। पिछले दिनों यानि 12 से 21 जून 2011 को हम भारत के 'अभिन्‍न अंग' कश्‍मीर राज्‍य में थे... तीन दिन घाटी के सुंदर इलाकों..गुलमर्ग, पहलगाम तथा श्रीनगर में बिताने के बाद हम उड़ चले लेह की ओर। श्रीनगर से लेह की हवाई यात्रा मात्र 30 मिनट की थी किंतु ये एक दुनिया से बिल्‍कुल भिन्‍न दुनिया में पहुँचने जैसा था... बहुत कम लोग पर्यटन के लिए लेह-लद्दाख पहुँचते हैं उनमें भी भारतीय पर्यटक और कम होते हैं...दरअसल कुछ साल पहले तक भारतीय पर्यटक विदेशी पर्यटकों की तुलना में चौथाई भी नहीं होते थे..राजग सरकार के विवादास्‍पद सिंधु-उत्‍सव के आयोजन के बाद से लद्दाख भारतीय स्‍थानीय पर्यटन के नक्‍शे पर आया है और पिछले तीन चार साल से भारतीय पर्यटकों की संख्‍या विदेशियों से अधिक हुई है। लोग अक्‍सर दिल्‍ली से सीधे लेह की फ्लाइट लेते हैं या कुछ लोग श्रीनगर से सड़क मार्ग से लेह जाना पसंद करते हैं जिसमें वे जोजिला दर्रे व कारगिल के खूबसूरत रास्‍ते से लेह पहुँचते हैं। ये रास्‍ता दो दिन में पूरा होता है जिसमें मार्ग में कारगिल में रुकना पड़ता है। सर्दियों में रास्‍ता बंद हो जाता है। हमारी योजना भी इसी रास्‍ते से जाने की थी पर श्रीनगर-लेह की टिकट सस्‍ती मिल जाने तथा इससे दो दिन बचने से ये कुल मिलाकर सड़क मार्ग की तुलना में सस्‍ती पड़ रही थी फिर बच्‍चों के आराम को ध्‍यान में रखते हुए हवाई मार्ग से ही लेह जाने का निर्णय लिया।

लद्दाख में हम कुल सात दिन रहे। पहले दो दिन समुद्रतल से दस हजार से ज्‍यादा ऊंचाई पर होने के कारण कम आक्‍सीजन में अभ्यस्‍त होने के लिए लेह में ही रहे... पहले दिन आराम किया तथा दूसरे दिन लेह का स्‍थानीय भ्रमण किया जिसमें हेमिस तथा थिक्‍से की बुद्ध विहार तथा सिंधु नदी का दर्शन प्रमुख था। दरअसल लद्दाख में हर मोड़, भू आकृति इतनी भिन्‍न इतनी खूबसूरत है कि लद्दाख को टूरिस्‍ट प्‍वाइंटों में बांटकर उसे मार्केट करने की रणनीति मुझे मूर्खता लगती है...अपनी भू आकृति में अपेक्षाकृत बंजरता भी इतनी सुंदर हो सकती है इसे केवल महसूस ही कर सकते हैं। मैं और नीलिमा दोनो ही भाषा के व्‍यक्ति हैं पर पहँचते ही समझ गए कि इस सौंदर्य का वर्णन करने का प्रयास भाषा की क्षमता को बढ़ाकर आंकना है। कश्‍मीर बेहद सुंदर है...उसे धरती का स्‍वर्ग कहा जाता...ठीक है किंतु लद्दाख...इसे कुछ कहा नहीं जा सकता यह कहे जाने के परे है। ये चहकने पर नहीं मौन पर विवश करता है।

अगल दो दिन हमने नुबरा-घाटी कहे जाने वाले लद्दाख क्षेत्र में बिताए। हुंडर गांव में लगाए गए कैंप में हम रूके। ये वह क्षेत्र है जो मेरी अब तक देखी गई भूआकृतियों में सबसे हैरान करने वाला रहा। सबसे पहले तो यहॉं पहुँचने के लिए खार्दुंग ला नाम के दर्रे से गुजरना होता है दुनिया का सबसे ऊंचा मोटरमार्ग वाला दर्रा है 18000 फीट से अधिक ऊंचाई पर आक्‍सीजन बेहद कम हो जाती है तथा अक्‍सर यात्रियों की तबियत बिगड़ जाती है... वहॉं अधिक देर न रुकने की सलाह दी जाती है। इसके बाद उतरकर हम पहुँचते हैं नुबरा नदी क्षेत्र में जो इस बर्फीली दुनिया में बाकायदा एक रेगिस्तान है जिसमें बालू के दूर दूर तक बिखरे टिब्‍बे हैं जिनपर बाकायदा ऊंटों की सवारी होती है। यानि एक ही भूआकृति में बर्फीले पहाड़, नदी, और रेगिस्तान है... आप कुदरत की रचना पर बस हैरान हो सकते हैं।

नुबरा से लौटकर अगल दो दिन बेहद खूबसूरत पांन्‍गांग झील की यात्रा में बिताए। थ्री ईडियट फिल्‍म में लोकेशन के तौर पर इस्‍तेमाल होने के कारण लोकप्रिय हुई यह विशालकाय झील दुनिया की सबसे ऊंची खारे पानी की झील है। झील का तीन चौथाई हिस्‍सा चीन तथा एक चौथाई भारत के पास है। पानी इतना खारा है कि झील में मछली तक नहीं रह पाती। ये झील निश्चित तौर प्राकृतिक सौंदर्य की खान है... आंखें खुद ब खुद झुक जाती हैं मानों हार स्‍वीकार कर रही हों कि इतना सौंदर्य खुद में समा सकें इतना बूता नहीं हैं। फिर से एक मौन।

ऊपर लिखे शब्‍दों को यात्रा वृतांत न माना जाए...लद्दाख अवर्णनीय है। ये शब्‍द तो केवल सनद हैं कि हम वहॉं थे। एक अंजुलि चित्र, यदि कभी दुस्‍साहस कर पाया तो विस्‍तार से इस यात्रा को शब्‍दों में बांटने का प्रयास करुंगा -

स्‍लाइडशो की दुड़वा तस्‍वीरों की बजाए इत्‍मीनान से तस्‍वीरें देखना चाहें तो पूरी एल्‍बम नीचे है।

Ladakh 2011

15 comments:

अफ़लातून said...

मसिजीवी की अवर्णनीय यात्रा को यदि दिल्ली वि.वि. ने प्रायोजित नहीं किया तो पर्यटन विभाग करे । हमारा अगली LTC तय ।

मनोज कुमार said...

अहा! क्या अद्भुत वर्णन है। इस जगह ना जाने की कमी तब तक अखरती रहेगी जब तक हो न आऊं!

शबनम खान said...

काफी समय से लद्दाख घूमने जाना चाह रही हूं.... औऱ जा नही पा रही... लेकिन जब भी सुनती हूं कोई वहां से घूमके आया है मन में तुरंत ईर्ष्या टाइप की फीलिंग आने लगती है....लेकिन आपको पढ़ना अच्छा लगता है सर इसलिए इस बार ईर्ष्या नहीं कर रही.... बस इतना ही कहूंगी मुबारक हो आप लद्दाख घूम आए.... :)

Abhishek Ojha said...

कितने दिन में हो सकती है लद्दाख की यात्रा? ४ दिन में संभव है क्या ?

मसिजीवी said...

@ अफलातून... नहीं जी विश्‍वविद्यालय ने नहीं..बड़े कसाले से चार साल में एक एलटीसी मिलता है तो कंजूसी से खर्च करते हैं पिछले मोके पर लक्षदीव गए थे अगली बार अंडमान का विचार है.. गांठ से पेसा खर्च हुआ... लद्दाख की यात्रा सस्‍ती नहीं है..हवाई टिकट तथा अन्‍य परिवहन पर खास तौर पर खूब खर्च होता है।
@ शबनम/मनोज शुक्रिया
@ अभिषेक संभव का मतलब कर दिखाना है तो क्‍या दिक्‍कत है एक-डेढ घंटे की फ्लाइट है जाकर आ सकते हैं पर लगभग दो दिन एक्‍ल्‍मटाइज होने के लिए अनिवार्य हैं इस तरह लद्दाख का वास्‍तविक होश तो शुरू ही तीसरे दिन होता है..कम से कम छ: दिन रखें हो सके तो आठ।

अनूप शुक्ल said...

बहाने तो सारे लचर हैं लेकिन मास्टर एलाउंस देते हुये मान लिये गये।

लद्धाख यात्रा के फ़ोटू देखकर मन खुश हुआ। सो जानना।

Anonymous said...

बहुत बढ़िया एवम रोचक यात्रा वर्णन रहा . अंत भला सो सब भला . आपने फोटो भी शेयर किये ओर अच्छा लगा . लिखते रहे. धन्यवाद् .

vijay kumar sappatti said...

बहुत दिनों से मन था कि लद्दाख घूमने जाऊं , लेकिन कुछ हो नहीं पाया , अभिया आपकी यात्रा का वृतांत पढ़ा तो मन प्रसन्न हो गया ..

आपको बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

ghughutibasuti said...

बहुत सुंदर फोटो हैं.मजा आ गया. भाग्यवान हैं जो इतने सुंदर दृश्य देख आए. बधाई.
घुघूतीबासूती

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत दिन हो गये. अब लिखिए कुछ :)

Ghazalguru.blogspot.com said...

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Ghazalguru.blogspot.com said...

हरियाणवी बोली एवं साहित्य-साधकों का ब्लॉग में स्वागत है.....
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SANDEEP PANWAR said...

एक बार जा चुका हूँ दुबारा भी जाने की इच्छा है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

लद्दाख यात्रा और चित्र ॥बहुत मनोरम दृश्य

AVDHESH KUSHWAHA said...

July me plan hai. Aap bhi taiyar ho jaye.