कम ही लड़ाई हैं जो हम चुनते हैं
बहुधा हमें मिलती हैं
पराई लड़ाइयॉं
जो हम पर थोपी गई थीं
जिरहबख्तरों पर अगाध विश्वास वाले योद्धाओं ने।
लड़ाइयॉं जिन्हें हम जीतना नहीं चाहते
न ही हार से बचने के ही लिए लड़ रहे हैं हम
अपनी कहूँ
खड़ा हूँ इस बॉलकोनी पर अपने ही घर की
जिसे न जाने क्यों
कुछ संप्रभु मन घोषित कर चुके हैं
युद्ध का मैदान।
खड़ा हूँ दम साधे बस
सहमे भयभीत (पराजय से नहीं)
वरन
ये जानने कि
अगाध विश्वास वाली योद्धा
जब जिरहबख्तर उतारेगी
(जीत कर या पराजित, मुझे फर्क नहीं पड़ता)
तो खुद घायल होगी कि नहीं।
बहुधा हमें मिलती हैं
पराई लड़ाइयॉं
जो हम पर थोपी गई थीं
जिरहबख्तरों पर अगाध विश्वास वाले योद्धाओं ने।
लड़ाइयॉं जिन्हें हम जीतना नहीं चाहते
न ही हार से बचने के ही लिए लड़ रहे हैं हम
अपनी कहूँ
खड़ा हूँ इस बॉलकोनी पर अपने ही घर की
जिसे न जाने क्यों
कुछ संप्रभु मन घोषित कर चुके हैं
युद्ध का मैदान।
खड़ा हूँ दम साधे बस
सहमे भयभीत (पराजय से नहीं)
वरन
ये जानने कि
अगाध विश्वास वाली योद्धा
जब जिरहबख्तर उतारेगी
(जीत कर या पराजित, मुझे फर्क नहीं पड़ता)
तो खुद घायल होगी कि नहीं।
1 comment:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 'दो सितारों की चमक से निखरी ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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