मादा सेपियंस: दि हिस्ट्री ऑफ वीमेनकाइंड
इतिहास अकेला अनुशासन नहीं है जिसमें यह मान लिया जाता है की पुरुषों के लिए तैयार अनुशासन में ही औरतें भी शामिल है। आशय यह है अब तक हमारे पास एक इतिहास है, यह इतिहास है तो पुरुषों का इतिहास, लेकिन सुविधा और भलमनसाहत में कह दिया जाता है मानव का इतिहास। सवाल यह है औरतों का इतिहास क्या है । जो मानव इतिहास है उसमें औरतों का इतिहास क्या है। जिसे हम पितृसत्ता कहते हैं उसका इतिहास क्या है यह पोस्ट उस यात्रा की पड़ताल करने की चेष्टा करेगी, इस यात्रा में मनुष्य के समाज में नर और मादा को अलग-अलग जगह दी है।
मानव विज्ञान की दृष्टि से कई विचारकों ने इस बात पर गौर किया है कि वह कौन सी उद्विकास स्थितियां थी जिनके चलते पिता की नींव पड़ी होगी। एक सामान्य समझ यह मानती है की पौध विकास की प्रक्रिया में होमो प्रजाति में दो प्रमुख उद्विकास के चरण हासिल किए एक है दो पैरों पर चलना तथा दूसरा है मनुष्य के मस्तिष्क के आकार का बड़ा होना इन दोनों को एक साथ साधने की प्रक्रिया में मानव प्रजाति है बहुत कुछ खोया है जाहिर है इन दोनों से ही मानव प्रजाति ने बहुत कुछ पाया भी इस सौदेबाजी में जो पाया गया है वह समूची मानव प्रजाति ने पाया एक शब्द में कहें तो सभ्यता । जबकि जो खोया है उसके उसमें से अधिकांश की कीमत समूची मानव प्रजाति में नहीं अदा की बल्कि इस प्रजाति की केवल मादाओं ने अदा की। समझा जाता है कि दो पैरों पर चलने के लिए होमो सेपियंस पहले होमो इरेक्टस बने ऐसा करने के लिए मनुष्य को अपनी सेंटर आफ ग्रेविटी को संतुलित करना था यह तब तक संभव नहीं था जब तक मनुष्य का श्रोणि प्रदेश (पेलिवक रीजन) संकुचित हुआ तथा मादाओं में उनकी बर्थ कैनाल संकुचित हो गई इसका परिणाम यह हुआ की माताओं के लिए शिशु को जन्म देना कठिन हो गया यह और भी कठिन इसलिए हो गया क्योंकि मानव प्रजाति ने सभ्यता का अपना दूसरा गुण अर्थात बड़ा मस्तिष्क हासिल करने की जुगत की थी यह बड़ा मस्तिष्क स्वाभाविक है एक बड़ी खोपड़ी के भीतर ही रह सकता था कुल मिलाकर स्थिति यह हुई कि बड़ी खोपड़ी का शिशु एक बहुत छोटी बर्थ के केनाल से गुजर कर ही जन्म ले सकता था यह तब तक संभव नहीं था जब तक मादा इसके लिए अपनी जान जोखिम में ना डालें तमाम स्तनधारियों केवल मनुष्य मादा ही बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया में अपनी जान पर खेलती है जिस रास्ते से शिशु को उसके शरीर से बाहर आना होता है वह रास्ता इसलिए बहुत तंग है क्योंकि मनुष्य दो पैरों पर चलता है इस तंग रास्ते से जिस शरीर को बाहर आना है उसकी खोपड़ी का आकार बाकी शरीर की तुलना में बहुत बड़ा है और वह इसलिए बड़ा है क्योंकि उसमें बड़े मस्तिष्क को रहना है जो मनुष्य ने अपनी उद्विकास की प्रक्रिया में चुना है । आसान भाषा में कहें तो क्योंकि मानव प्रजाति सभ्यता के विकास के लिए दो प्रमुख कोण दो पैरों पर चलना तथा बड़ी खोपड़ी को चुना इसलिए मानव प्रजाति की है उद्विकास यात्रा अपनी प्रजाति की मादा यानी स्त्रियों की जान जोखिम में डालकर ही संभव हो सकी है।
यह जन्म देने की प्रक्रिया इतनी अधिक जोखिम से भरी है कि तमाम स्तनधारियों में केवल मानव प्रजाति में ही जन्म देने की प्रक्रिया बिना बाहरी सहयोग यानी किसी दाई डॉक्टर की सहायता के बिना संभव नहीं है। यही नहीं इस प्रक्रिया से जन्म ले पाने के लिए शिशु को अपनी परिपक्व अवस्था से काफी पहले प्रीमेच्योर जन्म लेना पड़ता है जिसका अर्थ है कि मानव शिशु बिना पूरे विकसित हुए ही जन्म ले लेता है अतः अतः इस शिशु को ठीक-ठाक विकसित होने के लिए 4-5 कई बार इससे अधिक साल तक लग जाते हैं यानी इस उम्र तक वह अपनी मां पर आश्रित रहता है कुल मिलाकर एक बच्चे को जन्म देने और उसे थोड़ा बहुत आजाद मनुष्य बनाने बनने तक उसकी मां के लगभग 6 से 7 साल आश्रित अवस्था में बीतते हैं। मानव प्रजाति में अपने शिशु को जन्म देने की इस जटिल प्रक्रिया के कारण ही स्त्री अपने साथी पर लगभग सदैव के लिए आश्रित हो गई। हम कह सकते हैं कि मानव सभ्यता के विकसित होने की कीमत उसकी मादा ने चुकाई है।