Friday, December 11, 2015

मूर्तिभंजक का पसीना


भारी घन हो कि
हलकी चोट वाली हथौड़ी
बुत पर हर चोट बनाती है तुम्हें और खूबसूरत
चुहचुहाती मोती की झालरें
आवेशित करती हैं
मूर्तिभंजक का पसीना
दुनिया का सबसे मादक द्रव है
सबसे सुन्दर श्रृंगार

घन लेकिन जैसे ही बनता है खंजर
बुतो की जगह लेता है
गर्म खून का गोश्त
हत्याओं के तुम्हारे श्रम से
निकला पसीना
जा मिलता है अपनों के बहते रक्त से
तब
शुरू होती है निस्पन्द प्रतीक्षा
बुतों का अट्टहास बढ़ता है।

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