गणतंत्र दिवस की कृपा से सप्ताहांत विस्तारित था और शिक्षक संघ की हड़ताल से और भी ‘सुविधा’ हुई। यानि अवसर था और इच्छा भी, कोई अनदेखा पहाड़ी इलाका महसूस किया जाए। इंटरनेट पर खोजबीन की तय किया – चकराता। पहली वजह तो यह भी कि बहुत कम लोगों ने इसके बारे में लिखा था लेकिन जो थोड़ा बहुत उपलब्ध था उससे काफी उम्मीदें बँधती थीं। पास में मुंडाली में स्कीइंग स्तर की वर्फ मिलने की आशा थी। वैसे जब हिंदी में चकराता लिख गूगल सर्च मारा तो उसने कीबर्ड को जिस वाक्य में पकड़ा वह था..... ‘मेरा सिर चकराता है’
खैर बोरिया बिस्तर बॉंधा, बाल गोपाल समेटे और हो लिए रवाना। और यहॉं हुई गलतियॉं दर गलतियॉं- चलो सूची बनाऍं
1. रास्ते के बारे में योजना कच्ची थी, सिर्फ सड़क होने भर से काम नहीं चलता उसकी गुधवत्ता भी जॉंच लेनी चाहिए खासतौर पर तब जब आपने जिद पाली हुई हो कि आपकी 1997 की मारूति 800 अभी बूढ़ी नहीं हुई है।
2. बिना होटल रिजर्वेशन के घर से निकलने के दुस्साहस के पिछले अनुभव यदि अच्छे रहे हों तो इसका मतलब यह नहीं के अबकि बार भी ढंग का आसरा मिल जाएगा बल्कि प्रोबेबिलिटि का नियम कहता है कि बुरे अनुभव के संभावना अधिक हो गई है।
3. कच्ची तैयारी, सीमित संसाधन, कमजोर कार, अनजान बुरा रास्ता, बच्चे साथ में कुल मिलाकर जोखिम इतना है कि सब ठीक रहे तो हैरानी होनी चाहिए......हैरान होने का मौका नहीं मिला।
तो साहब अपनी अक्खड़ता में हमने ना यमुनानगर का रास्ता चुना ना देहरादून का वरन ‘सबसे छोटे’ बागपत-बड़ौत-सहारनपुर-कालसी के रास्ते को चुना और जाहिर है पछताए। जल में कुंभ, कुंभ में जल की तर्ज पर सड़क पर खेत खेत पर सड़क थी। जैसे तैसे सुबह छ: दिल्ली से चलकर पॉंच बजे शाम कालसी पहुँचे यानि चकराता की चढ़ाई रात में करनी पड़ी सॉस अटकी रही। पहुँचकर और निराश होना पड़ाक्योंकि बर्फ का नामों निशां ना था, खाना बस ‘ऐसा ही’ था खैर अगले दिन देववन चोटी और टाईगर झरने का आनंद और थकान समेटी और वापसी के लिए रास्ते बदलने का निर्णय लिया और तय पाया कि चकराता-नागथाल-मसूरी होकर दिल्ली जाऍं लेकिन जैसा कहा गया है कि टू रांग्स डोंट मेक ए राईट इस रास्ते में थोड़ा हिस्सा तो सुंदर था पर बाकी में हमने अब तक के कुछ सबसे उजाड़ पहाड़ों का अनुभव लिया। मसूरी पहुँचने तक इतना थक चुके थे कि क्या कहें और अभी वापसी बाकी थी। घबराइए नहीं भले ही हम रात 11.30 बजे खतौली पहुँचे पर वहॉं के सार्वकालिक ट्रैफिक जाम ने बख्शा नहीं देर रात या कहें अल्ल सुबह घर पहुँचे। इति श्री चकराता कथा। बाकी मँगनी के कैमरे की तस्वीरें उपलब्ध होते ही साझा की जाऍंगी।
1 comment:
आपके पर्यटन-अनुभव अत्यंत वास्तविक लगा,काफी सहजता से अपनी अकुलाहट और विचलन को दर्शाया है…
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