देश के तमाम राज्यों की तुलना में पर्यटन का जितना विकास केरल ने किया है उतना शायद किसी और राज्य ने नहीं। पर्यटन के इस विकास में उनकी रचनात्मकता की विशेष भूमिका है। मसलन बैकवाटर्स को ही लें...अस्सी के दशक तक इसे यातायात की बाधा के रूप में देखा जाता था लेकिन दो दशक में ये केरल के यूएसपी के रूप में उभरे हैं, हाउसबोट, आयुर्वेद, मार्शलआर्ट, कुच्चीपुड़ी कथकली और यहॉं तक कि मसाले। मसाले जो शुद्ध रूप से एक व्यावसायिक गतिविधि हैं को केरलवासियों ने एक पर्यटन गतिविधि बना दिया है। जगह जगह विशेषकर थेकेडी इलाके में मसालों के उद्यान लगाए गए हैं जिनका उद्देश्य मसाला उत्पादन कम है वरन नर्सरी के रूप में एक ही जगह अलग अलग मसालों के चंद पौधे उगाकर उन्हें पर्यटकों को दिखाकर उनके विषय में बताना तथा फिर मसाने बेचना, मूल उद्देश्य है।
पिछले दिनों हम केरल की यात्रा पर थे वहीं ऐसे ही एक उद्यान में हम गए...सौ रुपए प्रतिव्यक्ति की एंट्री फीस अधिक तो लगी (इसका अधिकांश हिस्सा उस ड्राइवर को चुपचाप दे दिया जाता हे जो पर्यटकों को ला ता है। नर्सरी मालिक की आमदनी उस बिक्री से होती है जो इन पर्यटकों को मसाले बेचने से होती है)। तो लीजिए आनंद कुछ ऐसे पौधों के चित्रों का जिनके उत्पादनों का आनंद तो हम अपने खाने में लेते हैं लेकिन इन पौधों तथा उस प्रक्रिया से अनजान थे जिनसे ये मसाले बनते हैं-
मीठी शुरुआत- चॉकलेट के पौधे से, इस फल से एक कड़वा कसैला पदार्थ मिलता है जो प्रोसेसिंग के बाद मीठी चॉकलेट में बदल जाता है। ध्यान रहे कि केरल के इस हिस्से में शानदार घर की बनी चाकलेट खूब खाने को मिलती है।
ये दुनियाभर में भारत की पहचान कालीमिर्च का पौधा है, दरअसल सही कथन होना चाहिए गोलमिर्च क्यों हमें बताया गया कि काली, हरी तथा सफेद गोलमिर्च इसी एक पेड़ से मिलती है...साल में अलग समय तोड़ने तथा प्रोसेसिंग की भिन्नता के कारण इनके रंग व तीखापन बदल जाता है।
अन्नानास
थेकेडी की विशेष पहचान यहॉं की इलायची
ये बांस की तरह पतला लेकिन नारियल की तरह ऊंचा पेड़ सुपारी का है...अपना दिल तो इस बात से ही दहल गया कि किसी के पान के स्वाद के लिए इस पेड़ पर बाकायदा चढ़कर सुपारी तोड़नी होती है।
तब कहीं जाकर ये फल प्राप्त होते हैं, जी हुजूर सुपारी का फल यही है...पान में डाली जाने वाली कठोर वस्तु इसी फल में छिपी है।
ये वृक्ष मजेदार है इसके पत्ते ही तेजपात कहे जाते हैं...उससे भी मजेदार ये कि इसी वृक्ष के तने की छाल दालचीनी कहलाती है। जिसे तीन तीन साल की शिफ्ट में तने के आधी आधी ओर से छीला जाता है।
मौसम न होने के कारण फल दिखाई नहीं दिए पर ये पौधा जायफल (Nutmeg)का है इसकी खसियत ये कि जब फूल होता हे तो वह जावित्री कहलाता है और फल हो, तो हो जाता है जायफल (हम मानते थे ये दो एकदम अलग चीजें हैं :))
विशेष औषधीय लाल केले... केले की एकमात्र प्रजाति जिसमें फल ऊपर से नीचे के स्थान पर नीचे से ऊपर की ओर फलता है।
इसे पर्यटन की समझ ही कहा जाएगा कि अधिकांश मसाला नर्सरियों ने ये समझते हुए कि ज्ञानवर्धक ओवरडोज बच्चों के लिए बोरिंग हो सकता है..उन्होंने एक बेहद ऊंचा ट्रीहाउस बना रखा हे जो बच्चों को बेहद पसंद आता है।
18 comments:
अरे वाह मसिजीवी जी..एकदम यादगार पोस्ट है..चोकलेट...तेजपत्ता..जायफल..मसालों का नाम ही सुना था ..आज आपने उनसे मुलाकात करवा दी..बताइये देश में उपलब्ध चीज़ों को भी अभी पूरी तरह नहीं देख पाए हैं इतनी बड़ी जिन्दगी में...आपका शुक्रिया..
कितने दिन इंतजार करवाया आप ने इस पोस्ट का? बहुत सुंदर चित्रों, जानकारी और ज्ञान से भरी पोस्ट।
उम्दा जानकारी… कई नई बातें पता चलीं… पर्यटन नवाचार के बारे में केरल के बाद शायद गोवा का नम्बर आता है…
केरल तो हमारे यहां गोरो मे भी बहुत पर्सिद्ध है, बहुत सुना है इस के बारे यहां टी वी पर केरल के बारे बहुत से प्रोगराम भी देखे है कभी मोका मिला तो जरुर जायेगे, आप का धन्यवाद इस सब जानकारी के लिये, ओर सुंदर चित्रो के लिये
देर से ही सही मगर एक उम्दा जानकारी भरी पोस्ट पढने को मिली ।
यह तर्क सबसे फूहड़ है कि पर्यटन का जितना विकास केरल ने किया उतना किसी अन्य राज्य ने नहीं । जहां तक मेरी जानकारी है सबसे अधिक पर्यटक गोआ में आते हैं और पर्यटन ही वहां की अर्थव्यवस्था का मुख्य संबल है, आय का प्रमुख स्रोत है । केरल में पर्यटन का सबसे अधिक विका होने का फूहड़ तर्क देने का क्या आधार है। आपके पास देश के सभी राज्यों में आने वाले पर्यटकों के आंकड़े हैं, क्या ! अगर आप ऐसा दावा कर रहे हैं तो किस राज्य ने पर्यटन के विकास में कितना खर्च किया इसका विवरण भी उपलब्ध
कराने की भी ‘कृपा’ करें । और अंत में ‘ज्ञानवर्धन’ का शुक्रिया कि कुचीपुड़ी केरल का नृत्य है, मैं तो इसे आंध्र प्रदेश के नृत्य के रूप में जानता था और केरल का नृत्य कथकली समझता था । हा-हा-हा, भाई मसिजीवी जी था न कुछ आपके ही अंदाज में, बुरा न मानें, मजाक कर रहा था ।अच्छा यात्रा वृतांत लिखा है चित्रों और जानकारी से भरपूर । बधाई ! छोटी-मोटी तथ्यगत भूलें तो किसी से भी हो सकती हैं । जारी रखें । शुभकामनाएं !
कोलाहल से कौस्तुभ ‘आपकी नजर में महिला आरक्षण विरोधी’
वाह.. फोटो से ही मसालों की खुशबु आ रही है..:)
@ कौस्तुभ - जी मूलत: कथकली ही केरल का शास्त्रीय नृत्य है, कुचीपुड़ी को स्ट्राइक आफ कर दिया है
बाकी बातों पर तो कोई प्रतिक्रिया नहीं वे शायद मजाक ही हैं वैसे केरल के पर्यटन सर्किट में कथकली व कुच्चीपुड़ी दोनों के शो आयोजित किए जाते हैं तथा से पयर्टन नवाचार ही है कि इससे वे पर्यटक खींच भी लेते हैं इसी तरह का उदाहरण कांजीवरम साडि़यों का भी है ये भी केरल का उत्पाद नहीं है लेकिन केरल पर्यटन ने इसका भी खूब एप्रोप्रिएशन किया है।
आरक्षण मुद्दे पर तो मैं अपनी बात कह चुका हूँ उसके दोहराव की कोई आवश्यकता नहीं ।
हां भाई । बातें कही तो मजाक में ही थीं हमने और महिला आरक्षण पर आपकी टिप्पणी पर हमें भी जो कहना था हमने अलग पोस्ट में कह दिया था । वैसे आपने आपकी इस बात पर भी कि हाउसबोट, मार्शल आर्ट आदि के साथ मसाला उद्योग भी पिछले दो दशकों में केरल के यूएसपी के रूप में उभरा है, पर भी इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते थोड़ी सी असहमति जताना चाहूंगा । इसलिए कि मसाला उद्योग ही शताब्दियों से दुनिया में केरल की पहचान रही है । वास्को डी गामा इसी की तलाश में केरल के राजा ज़मोरिन के काल में यहां पहुंचा था, बहरहाल इतना तो चलता है भई ।
जी बिलकुल, दरअसल इनमें से कुछ भी सिवाय हाउसबोट के नया नही है... नया केवल यह है कि केरल के पर्यटन उद्योग ने इनका मोलिक उपयोग कर इन्हें केरल का यूएसपी बना दिया है।
वाह, शानदार पोस्ट और बढ़िया फोटो, पढ़कर/देखकर मज़ा आया और ज्ञान भी मिला। :)
रही बात पर्यटन विकास की तो गोआ, केरल, उत्तराखंड और राजस्थान के पर्यटन विभागों ने ही अपने-२ राज्यों में पर्यटन को विकसित करने के प्रयास किए हैं, अन्यथा बाकी जगह तो मामला पैथेटिक सा ही है!! :(
गोल मिर्च, लाल केले और चोकलेट के पौधे तो पहली बार दिखे. इससे पहले तो चित्र भी नहीं देखा था कभी :)
मसालों की खुशबू और हरियाली हम तक पहुंचाने के लिए आभार। अच्छी पोस्ट।
सुंदर चित्रों, जानकारी और ज्ञान से भरी पोस्ट।
केरल के बारे में मैं यहाँ एक मज्जेदार बात कहना चाहूँगा । असल में केरल तीन नगर और एक गाँव वाला प्रदेश है । वह कैसे ? भाई देखो, केरल में पता नहीं चलता है की कब एक गाँव ख़त्म हुआ और कब दूसरा गाँव शुरू हुआ । नगर तो तीन है, यथा तिरुभानान्तापुरम दक्षिण में, कोच्ची बीच में और कालीकट उत्तर में ।
keral ki yatra bhut hi achi aur gyanvardhak rhi .
ak cheej jo sbse achhi lgti hai vo hai vha ke back watar me base gav.
keral ki yatra bhut hi achi aur gyanvardhak rhi .
ak cheej jo sbse achhi lgti hai vo hai vha ke back watar me base gav.
Is jankari bhare post ke liye aabhar.
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