Thursday, November 05, 2009

हिन्‍दी के हेड कविता क्‍यों नहीं लिखते ?

हिन्‍दी के हेड हमेशा कवि-आलोचक होते हैं, एकाध तो उपन्‍यास लिखने की धमकी भी दे रहे हैं। ये लोग इसीलिए लेखक को नीची नजर से देखते हैं। साहित्‍य के औजार हैं इनके पास। जब जी चाहा, कुछ भी गढ़ लिया। ये लोग समझदार बहुत होते हैं , लेकिन स्‍याने ? किसने कहा था एजुकेशन कम्‍स बट विज़डम लिंगर्ज। “

- स्‍वदेश दीपक (मैंने मांडू नहीं देखा, पृ. 20)

स्‍वदेश दीपक के इस कथन के आलोक में अपने विश्‍वविद्यालय के पुराने, हाल फिल‍हाल और बेहाल नए-पुराने सब हेड (विभागाध्‍यक्ष...क्‍या भारी शब्द है न) को याद कर जाता हूँ... डा. नगेन्‍द्र, भारी भरकम आलोचक...गैर कवि..और शायद कवित्‍व विरोधी भी। head और फिर सर्वप्रोफेसर सुरेशचंद्र गुप्‍त, नित्‍यानंद तिवारी, बालीजी, महेन्‍द्र कुमार.... और प्रो. निर्मला जैन ( स्‍वदेश दीपक उनके लिए तो ये कथन लिखा ही है) ...और अब प्रो. पचौरी सब के सब एक के बाद एक आलोचक... कवि कोई नहीं। लिखे गए नामों के अलावा कई 'वगैरह' भी हैं जो हेडत्‍व को प्राप्‍त हुए हैं और वे 'वगैरह' इसलिए हैं कि वे कविता तो छोडो कुछ्छे नी लिखते। हमारे विश्‍वविद्यालय को छोडि़ए तमाम हिन्‍दी के हेड शायद इसी व्‍याधि से दर्ज हैं, मैं हैरान हूँ कि विश्‍वविद्यालयी हिन्‍दी की गत का इस तथ्‍य से कोई संबंध बनता है कि हिन्‍दी के हेड कविता नहीं लिखते ?

पुनश्‍च: मैं भी कविता लगभग नहीं ही लिखता :)

22 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

हिन्दी लेखन, हिन्दी आलोचन के अलावा हिन्दी प्रबन्धन का फील्ड नही है कोई? आई.आई.एम. को एक कोर्स इस पर डिजाइन करना चाहिये! :)

ghughutibasuti said...

विचारणीय बात है। या फिर जो कविता लिखते हैं वे हेड नहीं बनाए जाते।
घुघूती बासूती

मसिजीवी said...

@ घुघुतीजी ... या फिर कवित्‍व तथा हेडत्‍व परस्‍पर व्‍यतिरेक में (म्‍यूचुअली एक्‍सक्‍लूसिव) हैं...एक घर में साथ साथ नहीं रह पाते।

Anonymous said...

aap kavita nahin likhtey
jaldi head banagae
badhaii agrim swikaarey
vaesae jinkae naam aapne upaar liyae haen un mae sae bahuto kae prem prasngo kae upar kyaii upnyaas likhae jaa chukae haen !!!!

दिनेशराय द्विवेदी said...

1. केवल कविता भाषा नहीं होती!
2. केवल साहित्य भी भाषा नहीं होता।
3. वे हिन्दी के लिए नहीं जीते। वे हिन्दी की रोटी खाते हैं।
4.सोप्टवेयर डेवलप करने वाले से अधिक उसे बेचने वाला कमाता है। वह कहता है कि तुम बना लो बिकेगा नहीं तो क्या कर लोगे? कविता को ये लोग ही बेचते हैं। फिल्म प्रोड्यूसर हमेशा वितरक का मोहताज होता है।
महाजनी सभ्यता में महाजन महान है।

अभय तिवारी said...

बड़ी राहत है कि नहीं लिखते.. मैं तो पूछता हूँ कि हिन्दी वाले कविता लिखते ही क्यों हैं.. कुछ और क्यों नहीं लिखते..? कविता में भावना नहीं.. संगीत नहीं.. अनुभूति नहीं.. गाढ़ा गठीला विचार उड़ेला जा रहा है.. और वैचारिकता के नाम पर हिन्दी कंगली है.. बगले झांकने के लिए भी कोई नहीं.. सन्नाटा है.. इधर-उधर का टीप कर, आना-दो आना पढ कर 'चतुरजन' लट्ठ लेकर सब को पीटने लगते हैं.. कोई भी लंठ आलोचक हो कर दरोगागिरी कर सकता है..
आप कह रहे हैं कि हिन्दी में हेड कविता क्यों नहीं लिखते.. एहसान करते हैं जी हिन्दी पर..

अनिल कान्त said...

लगता है जल्द से जल्द आप हैड बनना चाहते हैं :)

वैसे बात विचारणीय है आपकी भी और तमाम सज्जन लोगों की भी

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

बात को हंसी मज़ाक से थोड़ा दूर ले जाने की अनुमति दें तो पूछना चाहूंगा कि हिंदी अध्यापक (जिसकी अंतिम परिणति हेडत्व को प्राप्त होने में होती है) से साहित्यकार होने की आशा करना कितना उचित है? उससे हम साहित्य को समझने-समझाने की आशा करते हैं, न कि इस बात की कि वह साहित्य रचे भी. उचित होगा कि साहित्यकार और अध्यापक को अलग करके देखा जाए. बात को अगर दूर तक ले जाएंगे तो संकट यह भी खड़ा होगा कि सूर कबीर तुलसी मीरा जायसीबिहारी रत्नाकर भारतेन्दु, प्रसाद निराला ये सब हेड क्यों नहीं हुए?

मसिजीवी said...

@ दुर्गाप्रसाद एक बार कह देने के बाद तो बात आपकी ही है चाहें जिससे और जितनी दूर ले जाएं :)

दरअसल मूल स्रोत (मैंने मांडू नहीं देखा) में तो शिकायत ही है कि हम मास्‍टर लोग बेबात यहॉं वहॉं हाथ मारते ही क्‍यों हैं - हिन्‍दी के हेड हमेशा कवि-आलोचक होते हैं, एकाध तो उपन्‍यास लिखने की धमकी भी दे रहे हैं। में यही ध्‍वनि है। स्‍वदेश दीपक जब निर्मला जैन से पहली बार मिले और उन्‍हें पता चला कि वे कविता नहीं लिखतीं (पर आलोचना के क्षेत्र में ऐसी कोई रियायत नहीं करतीं) तभी व्‍यंग्‍य में वे ये पंक्ति कहते हैं। मूल कामना उनकी भी वही है जो ऊपर अभय की है।

अर्कजेश said...

क्योँकि हार्ट, हेड नहीँ हो सकता ।
हिन्दी साहित्य मेँ कवि की तुलना हिन्दी समाज मेँ महिलाओँ से की जा सकती है।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

HEAD.........HEAD.......HEAD
kavita HEART.......HEART.....HEART se nikalti hai...

Abhishek Ojha said...

कवी ह्रदय व्यक्ति शायद हेड नहीं बन सकता ! हेड बना तो अच्छा हेड साबित हो मुश्किल ही लगता है.

कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) said...

लगता है कविता वियोगी हृदयों का ही आभूषण है। और वियोगी जीवन में कहाँ तक सफल होगा..! दुर्गाप्रसाद जी से सहमति रखता हूँ.. मास्टर से साहित्यकारिता की उम्मीद बेमानी है।

रचनाकर्म का धेले भर ज्ञान न रखने वाले ‘साहित्यरत्न’ डिग्रीधारी नहीं देखे क्या आपने..?

कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) said...
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अनूप शुक्ल said...

हेड बनने के पहले भी कविता लिखे बाद में भी लिखे। हेड न हो गया कोई ब्लागर हो गया। क्या अपेक्षायें हैं।

Anil Pusadkar said...

पहले हेड बनने मे फ़िर हेड बने रहने मे ही उम्र गुज़र जाती है कविता के लिये समय ही कंहा मिल पाता होगा।

स्वप्न मञ्जूषा said...

अगर ये कवितायें लिखेंगे तो उन कविताओं की भी कोई न कोई आलोचना करेगा....और ये झेल पाना इनके लिए महा-कठिन होगा.....इसलिए न रहेगा बांस ..न बजेगी बांसुरी....

Ashok Pandey said...

हिन्‍दी के हेड कविता नहीं लिखते क्‍योंकि हेड हेड (माथा/बुद्धि) को सर्वोपरि मानता है।

ghughutibasuti said...

टिप्पढ़ियाँ बेहतरीन रहीं। शायद आपका विषय ही सही था।
घुघूती बासूती

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बाउ जी, कविता लिखना कोई हंसी-ठठ्ठा नहीं है..इसके लिए दिल चाहिए दिल.

Randhir Singh Suman said...

nice

शरद कोकास said...

ना काजल ना ..केवल दिल नहीं दिमाग चाहिये , एक साधना जरूरी है और अध्ययन और इतिहास बोध और वैज्ञानिक द्रष्टि और जीवनानुभव को रचनानुभव मे बदलने की क्षमता और ...और भी बहुत कुछ भाषा,शिल्प, विचार .सामाजिक सरोकार के अलावा मेहनत भी और जो हिन्दी की खाते है उनमे इतना सब एक साथ नही होता । कविता लिखना आसान नही है ।