ब्लॉग लिखना नहीं वरना ब्लॉग पढ़ना भी कम हुआ है। आज रवीश की एक कवितानुमा पोस्ट देखी तो मन में सवाल भर्राया कि भले आदमी आनलाइन दुनिया में इतना समय खपाने और बहुल उपस्थिति को साधें कैसें ? अगर ट्विटर, फेबु, ब्लॉग, प्लस वगैरह के साथ ईमानदारी से रहें और घर, परिवार, नौकरी में भी बेईमान न हों तो ये बुहत मुश्किल हो जाएगा। सवाल केवल समय का नहीं है, मास्टर कोई सबसे व्यस्त जीव तो है नहीं पर मामला दिमागी तौर पर जुड़ाव का भी है। खैर फिलहाल हम ईमानदारी को टाल रहे हैं, डिसक्लेमर ये है कि भले ही रिश्वत उश्वत की कोनो गुंजाइश हमारे धंधे में नहीं है पर हम साफ बता दे रहे हैं कि सोचने, लिखने व नौकरी पीटने, घर गिरस्ती संभालने के मामले में हम पूरी तरह से ईमानदारी से सक्रिय नहीं हैं। कुल मिलाकर अपना नएसाला प्रण ये है कि लिखेंगे मन की, अगर वो 140 अक्षरों में हुआ तो ट्विटर पर ठेलेंगे...थोड़ा ज्यादा हुआ तो फेसबुक पर... कुछ और ज्यादा तो ब्लॉग पर। अब तो ये नूंहए चाल्लेगी।
9 comments:
हा हा !
इमानदारी से आपका पुनः स्वागत है जी!
समाज की बेहतरी में शिक्षक लोगन का ही रोल ज्यादा रहा है ...जो कुछ करीं समुझ के करीं!
You have some really good ideas in this article. I am glad I read this. I agree with much of what you state in this article. Your information is thought-provoking, interesting and well-written. Thank you.
चाल्लण दो मास्टर जी।
लिखिए तो सही.यहाँ वहाँ या जहाँ.
घुघूतीबासूती
आज 19/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
लेखन चलता रहना चाहिए ...
अब भाई लोग करे भी तो क्या ....कही ना कही तो समय देना ही पड़ेगा !
bahut dinon baad blog ki duniyaa m louta hun .apkelekhan m anirantrtaa se santosh huaa ki sirf main hi.... anyway aap likhte rahenge,mujhe vishwaash hai
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