औपचारिक रूप से तो नहीं लेकिन अनौपचारिक रूप से कॉलेज की हिन्दी वाद विवाद गतिविधियों में कुछ जिम्मेदारियॉं मेरी रहती हैं। खासतौर पर प्रतियोगिताओं के लिए जाने वाले प्रतियोगियों को टिप्स देने की। दिल्ली विश्वविद्यालय की डिबेटिंग सर्किट जिसकी चर्चा मैंने पहले भी की थी, वह कई मायने में अलग है यहॉं बाकायदा डिबेटिंग के संप्रदाय हैं मसलन एक तो है 'प्रवाह संप्रदाय' यह एक तरह से स्कूल डिबेटिंग की ही निरंतरता हे यानिप्रवाह से बोलो और बम बम। इस पद्धति से केवल दूसरी श्रेणी की प्रतियोगिताएं ही जीती जा सकती हैं इसलिए अच्छे वक्ता मौलिक तर्क पद्धति व शैली पर निर्भर करते हैं। इसी कोटि का हमारा एक वक्ता/विद्यार्थी है आ..। यह बालक हर प्रतियोगिता से पहले जानकारियॉं जुगाड़कर संपर्क करेगा...सर अमुक कॉलेज में इतने पुरस्कार वाली, 3+1 मिनट की प्रतियोगिता है, विषय है .... 'सर मेरे प्वाइंट ये ये हैं कुछ जोड़ने हैं तो बता दें और एक-दो फट्टे भी बता दें, खासकर स्टार्टिंग फट्टा।
अब से 'फट्टा' सुनकर आप जरूर सोच रहे होंगे कि ये क्या बला है। दरअसल डिबेटिंग सर्किट में लगातार हिस्सेदारी से वक्ताओं की मौलिक शैलियॉं विकसित होती हैं तथा इसी क्रम में वे अपने कुछ वाक्य, पदरचना या डिबेट शुरू या खत्म करने आदि के विशेष जुगाड़ भी विकसित कर लेते थे। इनकी तुलना आप हरभजन या मुरली के 'दूसरा' से कर सकते हैं। हैं तो पूरी तरह से वैध किंतु ये अनुभव से दूसरे को पीट डालना भर होता है। उदाहरण के लिए एक डिबेट शुरू करने के एक फट्टे पर नजर डालें-
अध्यक्ष महोदय, एक वैज्ञानिक था, उसने एक मेंढक लिया और कहा 'फ्रागी जंप' मेंढक उछला। अब वैज्ञानिक ने उस मेंढक की एक टांग काट दी और कहा 'फ्रागी जंप' मेंढक सवाभाविक हे कुछ कम उछला। इसी तरह वैज्ञानिक ने मेंढक की दूसरी और तीसरी टांग भी काट दी। चौथी टांग काअने के बाद वैज्ञानिक ने कहा कि 'फ्रागी जंप' तो मेंढक बिल्कुल भी नहीं उछला... अध्यक्ष महोदय वैज्ञानिक ने निष्कर्ष दिया .... (थोड़ा सा रुककर) मेंढक टांग से सुनता है। मुझे अपने विपक्षी मित्रों के तर्क इस वैज्ञानिक के निष्कर्ष के समान ही प्रतीत हो रहे हैं....
ये फट्टे अक्सर निर्णायकों पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं पर इन्हें देश, काल वातावरण के अनुसार बदलते रहना होता है। मुझे डिबेटिंग के ये फट्टे क्यों याद आए....हे हे हे अध्यख्ज्ञ महोदय यदि कुछ मित्रों के ब्लागिंग फट्टे देख मुझे डिबेटिंग फट्टे याद आ रहे हैं तो इसे स्वाभाविक ही माना जाना चाहिए.... ;)
4 comments:
अपन तो ढक्कन है भाई साहब! इशारा समझ नई आया किधर की बात हो रही है ;)
गुरु जी, एक और भी है. सोडे में नश्शा है वाला फट्टा.
फिर अक्सर लोग इसी केटेगरी में शेरो-शायरी को भी डाल देते हैं.
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अच्छा लिखा है लिखते रहें :)
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