क्या इसे नवीन विधा माना जाए? कहना कठिन है, लघु फिल्में पहले भी बनती रही हैं। छोटी फिल्में जो छोटे आयोजनों में दिखाई जाती हैं तथा अक्सर वृत्तचित्र की कोटि की होती हैं। लघु कथा फिल्में खर्च के लिहाज से महंगी होती है तथा उनपर रिटर्न काफी नहीं होती। लेकिन हाल में फिल्म उत्पादन की कीमत बहुत कम हुई है तथा इंटरनेट फिल्म डिलीवरी का लोकप्रिय जरिया बना है। अब छोटी छोटी कथा फिल्में बनाई जा रही हैं- व्यक्तिगत प्रयासों के तहत, ये इंटरनेट के ही लिए बन रही हैं। मुझे यह हिन्दी फिल्म यूट्यूब पर हाथ लगी। फिल्म की विषयवस्तु से बहुत आनंदित नहीं हुआ लेकिन विधा के तौर इस आकार और कोटि की फिल्म ऐसी लगी है जिसे बनाने की चेष्टा हम ब्लॉग भी कर सकते हैं। देखें चैक व मेट
निर्देशक : आशीष
4 comments:
एक तीन घंटे की फ़िल्म हमने भी बनवाई थी जिसमे हम हीरो भी थे.आप देखना चाहेगे ?
अच्छा किया आपने इस ओर भी ध्यान दिलाया..असल में एक मिनट से लेकर तीन मिनट की फ़िल्म नेट को ध्यान में रखकर लोग बनाने भी लगे हैं...बहुत से अन्तर्राष्टीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल भी इसको प्रोत्साहित करने के लिये आयोजित हो रहे है..कम से कम सस्ते में डिजिटल फ़िल्में तैयार हो रही हैं..इसका स्वागत किया जाना चाहिये
चलिए, मिलजुलकर हम भी बनाने का काम शुरु करते हैं।
अरे वाह, अब तो हम भी अपनी कहानियों और गीतों के साथ फिल्म बनाते हैं. आपको प्रिमियर में बुलायेंगे यू ट्यूब पर. :)
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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
शुभकामनाऐं.
-समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
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