ठेठ फुरसतिया शैली में अनूप ने सूचना दी है कि वे एक पंचवर्षीय योजना पूरी कर चुके हैं। ये अलग बात है कि जो बात सीधे साधे तरीके से ठग्गू का एक लड्डू भेजकर कही जा सकती थी उसके लिए इन्होंने इस तस्वीर का सहारा लिया। और जब उन लोगों ने पूछा जो पूछ सकते थे (बकिया सब तो वरिष्ठ-उरिष्ठ, भीष्म पितामह वगैरह के चलते हे हे करके रह जाते हैं) - रचना ने सवाल पूछा. बाकी सब ठीक पर ये बताओं की तस्वीर और पोस्ट में संबंध क्या है तो लगे हे हे करने :))
रचनाजी, आपकी बधाई के लिये शुक्रिया। चित्र और पोस्ट का संबंध मैंने जानने की कोशिश नहीं की सिवाय इसके कि चित्र मुझे अच्छा लगा।
पर जो जानते हैं सो जानते हैं, जैसे जीतू भाई-
अरे वाह! पाँच साल हो भी गए। तुम्हे तो पाठकों को वीरता पुरस्कार देना चाहिए, पाँच साल तक इत्ती लम्बी लम्बी पोस्टें झिलाते रहे। पाँच साल कम समय नही होता, बाकी सभी ब्लॉगवीर कट लिए तुम अभी तक डटे हुए हो, भीष्म पितामह की तरह। याद है पिछली बार भीष्म पितामह किसने कहा था?
पिछले पाँच सालों मे ना जाने कित्ती बार तुम लोगों की चिकाईबाजी करते रहे, सबसे मौज लेते रहे,हमारी खिंचाई करते रहे, सभी विवादों मे टाँग/पैर घुसाते रहे, रात को अमरीकन कुड़ियों से सीयूकूल बनकर बतियाते रहे, सबसे बड़ी बात हर दूसरी चैट विन्डो पर अपने ब्लॉग के लिंक ठेलते रहे। सचमुच काफी वीरता का काम है, कोई मल्टीपरपज बंदा ही इत्ते सारे काम एक साथ कर सकता है। खैर..अब पाँच पूरे हो ही गए है तो बधाई देना तो अपना भी फर्ज है, इसलिए बधाई को नत्थी किया जा रहा है, पावती भेजे।
लिखते रहो, लगातार…..हमे रहेगा इंतजार।
जीतू, ......अमेरिकन कुड़ियों का तो ये आलम है कि जिससे बात करो सब कहती हैं बात नहीं करेंगे -जीतेन्द्र भाई साहब ने रोका है। पता नहीं क्या लफ़ड़ा है तुम्हारा
मतलब ये हैं कि ये जो तस्वीर है न उसके पीछे कोई बात है जिसे कुछ 'पुराने' लोग जानते हैं, हम उनमें शामिल नहीं हैं क्योंकि जो नाम गिनाए हैं उनमें हम नहीं हैं, और हम इससे कतई नाराज नहीं हैं, भला पुराना होने में कौन खुशी की बात है- ठाठ तो नया होने और बने रहने में है।
खैर जो नाम अनूप ने गिनाए हैं वे हैं-
आज के दिन की याद रविरतलामी, देबाशीष, जीतेंद्र चौधरी, अतुल अरोरा,आलोक कुमार, पंकज नरुला, इन्द्र अवस्थी ,रमण कौल,ई-स्वामी, शैल, आशीष श्रीवास्तव , शशि सिंह, जगदीश भाटिया, सृजन शिल्पी , निठल्ले तरुण, श्रीष, बेंगाणी बन्धुओं, काकेश ,प्रियंकर, प्रत्यक्षा, रचना बजाज और बेजी के साथ तमाम ब्लागरों की पुरानी याद के साथ शुरू हुई!
हमारी इच्छा हुई कि ब्लॉग-पितामह के जन्मदिन के बहाने इनमें से कुछ के ब्लॉग झांक लिए जाएं-
रविजी को छोड़ देते हैं क्योंकि वे अभी तक नियमित ही हैं।
देवाशीष की ताजातरीन पोस्ट 2008 की वार्षिकी से संबंधित है।
जीतू ने कल ही लिखा है पर दरअसल लिखा 2005 में था उसीका रीठेलन किया गया है।
आलोक अपनी छोटी लेकिन सार्थक बातें करते ही रहते हैं जैसे ब्लैकबेरी क्यों काला पत्थर है हाल में ही बताया उन्होंने।
लंबे गोते तो लगाते हैं अतुल अरोरा कम से कम साल भर का आराम करते हैं अगली पोस्ट के लिए। मुष्टिका भिड़त पर उनकी पोस्ट जून 2008 में आई थी।
गदाधारी विद्वान दोस्त सृजन शिल्पी ने जून में एक पुस्तक समीक्षा पेश की थी उम्मीद है फिर कुछ लिखेंगे।
ईस्वामी का टंडीरा प्रणय तो आपने पढ़ा ही होगा....न तो जरूर बांचें।
दिमागी हलचल पंकज भाई बोले तो मिर्ची सेठ में भी होती है उम्मीद है देखी होगी।
दूसरों का क्या कहें हम खुद ही रिटायर्ड हर्ट सा खेल रहे हैं, जोश सा आइए नही रहा है। वो तो भला हो कल अनूपजी का फोन आ गया जन्मदिन की बधाई मांगने के लिए :)) और प्रमेंद्र की मेल कि कहॉं भाई जागो, इसलिए आज ये कीबोर्ड पीटा है। सो भी इसलिए कि अनूप ये न कहने लगें कि अब कोई हमसे मौज नहीं लेता।
15 comments:
आज तो आप फुरसत से मौज़िया लिए हैं :-)
सिवाय इसके कि चित्र मुझे अच्छा लगा।
waah kyaa logic haen
Rachna
चलो आपने लिख दिया वरना भूतपूर्व हो जाते... :)
अब वजह जो भी हो लेकिन फोटू तो अच्छी ही लग रही है !
इसी बहाने आपका भी इस महीने का एक पोस्ट का कोटा पूरा हो लिया |
टिप्पणीकार को मिस कर रहे हैं हम तो. कुछ उसकी ओर भी ध्यान दीजिये ना.
इसी बहाने बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट पढ़्ने मिली... अच्छा है
मास्साब हम सब जानते हैं .यह आपकी और अनूप जी की पहले से ही सेटिंग थी .
वे फोटू लगाएं और आप पोस्ट लिखें यह तो पहले ही तय था , हमारी भी ऐसी सेटिंग एक चींटी ब्लॉगर से हो गई है ,
हम पोस्ट लिखते हैँ और उसकी भी जबाबी पोस्ट का जुगाड हो जाता है :)
इस बहाने दर्शन हुए आपके:)
कल अनूपजी का फोन आ गया जन्मदिन की बधाई मांगने के लिए :))
Good, at least we see you again
मौज लेने का प्रयास अच्छा है।
पहली बात तो यही फ़ोटो पिछले साल भी लगाया था। तब किसी ने न एतराज किया था और न किसी ने लाजिक पूछा था। अब पोस्ट से फोटो का लाजिक भी देख-बता के ब्लाग ठेलने लगे तो हो चुकी ब्लागिंग! फ़िर तो हम लाजिक वादी हो कर रह जायेंगे।
बाकी और बातों के क्या जबाब दें! तबियत दुरस्त रखो और शुरू हो जाओ। झाम बहुत कम हो रहे हैं ब्लाग जगत में आजकल!
फोटो तो हमारे ध्यान में ही नहीं आई थी पोस्ट ही पढ़ते रह गया था :)
अच्छा लगा आपको दुबारा देख कर.
अरे सर जी, अनूप जी का अब कोई मौज नहीं लेता इस चिंता में दुबले ना होईये.. उसके लिये हम जैसे नये ब्लौगर हैं ना.. यदा कदा उनका मौज ले ही लेते हैं.. अभी कुछ ही दिन पहले पूजा ने भी उनका मौज लिया था..
आप तो मस्त होकर अपना कीबोर्ड खटखटाईये..
Lovely post! Dropping by...
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जो भी वजह बनी हो, हमें नहीं मालूम मगर आप आये भला लगा.
लॉजिक तो क्या होगा इसके पीछे. ऐसे तो आप टीवी वालों से पूछने लगेगो तब तो वो कुछ दिखा ही नहीं पायेंगे. टी आर पी की बैण्ड बजवा दोगे आप तो -टी वी वालों की.
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