Sunday, October 25, 2009

इलाहाबाद...कुर्सियॉं औंधा दी गई हैं, पोडियम दबे पड़े हैं

ब्‍लॉगजगत में हलकान तत्‍व की प्रधानता व सजगता देख दिल बाग बाग हुआ जाता है। लोग हैदराबाद की उपेक्षा और वर्धा वालों की निमंत्रण सूची की अनुपयुक्‍तता से भी दुखी हैं... सजगता भली चीज है इसलिए इन आशंकाओं का स्‍वागत होना चाहिए। पर हम एक ब्‍लॉगर नजर से बात साफ कर देना चाहते हैं कि ब्‍लॉगिंग कोई कूढे का ढेर नहीं कि जिस पर खड़ा होकर कुक्‍कुट मसीहा होने की घोषणा कर सकें...चलिए एक ब्‍लॉगर नजर से बताते हैं कि क्‍यों विश्‍वविद्यालयी आयोजन उत्‍सव भले ही हों...भय खाने की चीज नहीं हैं- अनूपजी हमें यहीं छोड़कर कानपुर चले गए हैं हम भी गेस्‍टहाउस से उसी परिसर में आ गए हैं जहॉं कार्यक्रम था  ताजा हाल ये है कि

नामवरी कुर्सियॉं औंधा दी गई हैं, पोडियम दबे पड़े हैं

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आसनों की अट्टालिका कुछ कहती है क्‍या ?

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घोषणापत्रों की गत ये हो गई है

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अभी संजयजी ने बताया कि हम चौथा पॉंचवा खंबा हैं...

बाहर मीडिया से मिले तो बोल पड़े- यह पांचवा स्तंभ है. संभवत: नामवर सिंह भी मानते हैं कि चार स्तंभ कमजोर हुए हैं इसलिए नियति के कारीगर ने इस पांचवे स्तंभ को गढ़ने का काम शुरू कर दिया है.

गिनती आप खुद कर लें कि कौन सा है पर इतना तय है मीडिया एक खंबा तो है .. देख लें-

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बहुत से लोगों को आपत्ति है कि कुछ को फूल मिले कुछ को नहीं... तो जान लें कि हर गुलदस्‍ते की परिणति एक ही है -'कचरापेटी'

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तो तंबू बंबू उखड़ चुका है...लोगों से मिले उन्हें जाना.. मनीषा, आभा, प्रियंकर, अनूप, इरफान, भूपेन, रवि, अफलातून, बोधिसत्‍व, विनीत, अजीत,प्रवीण....और भी इतने लोग... किसी पर कोई प्राइस टैग नहीं था, कोई बिकाऊ नहीं था... सब जानते हैं मानते हैं कितनी ही संगोष्‍ठी हों... ब्‍लॉगिंग वो तो नूंहए चाल्‍लेगी :)

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17 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे। बढ़िया।

रवि रतलामी said...

ग्रेट पोस्ट - एज आलवेज
!

और,


"...ब्‍लॉगिंग वो तो नूंहए चाल्‍लेगी."

सही है. यूं ही चाल्लेगी. कितना ही चिल्लाते रहो, गरियाते रहो, लानत मलामत करते रहो. जै-जै ब्लॉगिंग.

Pramendra Pratap Singh said...

AAPNE SAHI KAHA ISI KA NAM BLOGGING HAI, LADTE BHI KHUD HAI AUR MILTE BHI KUD HAI HAI.

AAPKI RAPAT PAD KAR ACHCHH KUCH NAYI BAAT BATA GAYI

संजय बेंगाणी said...

ऑलवेज हो न हो यह जोरदार पोस्ट है. भैया ई ही तो बिलोंगिग है. मजा आया. मीडिया एक खम्भा वाली फोटू भी व्यंग्य से कम नहीं.

अविनाश वाचस्पति said...

इंग भर रही है पींग
पींग बनी है ब्‍लॉगिंग
गैंग बन रहे हैं
असंतुष्‍ट वार कर रहे हैं
संतुष्‍ट विचार कर रहे हैं
गैंग वार मत हो
असंतुष्‍ट को करो संतुष्‍ट
संतुष्‍ट न होने पाएं असंतुष्‍ट
कुछ ऐसा योग करो
ब्‍लॉगधर्म पोस्टियाना ही नहीं
टिपियाना भी होता है और
होता है पसंदियाना।


जिसे जो पसंद आया
वो वो ले उड़ा
कोई खुद उड़ा
किसी को उड़ा दिया गया
सिद्धार्थ जमा रहा है
जमा रहेगा।

शरद कोकास said...

एक बात मैं विशेष रूप से यह कहना चाहता हूँ कि पोस्ट प्रोग्राम जितनी प्रतिक्रियाएँ आईं,कार्यक्रम के दौरान जितनी रुचि वहाँ उपस्थित और हम जैसे अनुपस्थित लोगों ने ली , कार्यक्रम का जैसा लाइव प्रस्तुतिकरण ब्लॉग्स पर हुआ ,जितनी तस्वीरें हम लोगों ने देखीं ( आपके सौजन्य से इन दुर्लभ तस्वीरों को मिलाकर ) मित्रों से फोन पर और एस एम एस के माध्यम से सम्वाद हुआ , कार्यक्रम के चलते चैट और टाक से जानकारी का आदान-प्रदान हुआ, भोजन आवास के बारे मे चर्चा हुई, मुद्दों पर सीधे सुझाव दिये गये और सम्बन्धित लोगो तक प्रतिक्रियाएँ पहुंचाई गई यह मैने आज तक किसी साहित्यिक,संस्थागत या राजनीतिक कार्यक्रम के आयोजन मे नही देखा । अखबारों मे तीन कालम की खबर और टीवी पर दो मिनट की क्लिपिंग से ज़्यादा आज तक किसी कार्यक्रम को तवज़्ज़ो नही मिली । आयोजन मे मिलने वाले न सिर्फ पहले से परिचित रहे बल्कि उनमे रोज ही सम्वाद होता है । यह सिर्फ और सिर्फ इस ब्लॉगर परिवार के आपसी सम्बन्ध की वज़ह से है और इसे कोई भी महान साहित्यकार ,पत्रकार ,राजनेता या प्रशासनिक अधिकारी नही समझ सकता । मै एक लेखक /कवि हूँ और विगत 30 वर्षों से ऐसे आयोजन कार्यक्रम अटेंड कर रहा हूँ । यहाँ जुडे भी एक उल्लेखनीय समय तो हो चुका है इसलिये मै कह सकता हूँ कि यह एक ऐसा समाज है जिसने यह सब अपने श्रम और ज्ञान तथा निरंतरता से अर्जित किया है इसलिये इसकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती ।यह् बहुत ज़्यादा निराश भी नहीं होता न बहुत ज़्यादा उत्साहित । इसका संतुलन ही इसकी विशेषता है ।
इस बात को आप चाहे तो जनहित में प्रसारित कर सकते हैं । -शरद कोकास

Gyan Dutt Pandey said...

मड़ये का बिहान - पूर्वी यूपोरियन भाषा में कहें तो!

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

तो आपने इलाहाबाद में अतिरिक्त प्रवास का अच्छा सदुपयोग किया...। बहुत रोचक और शानदार।

हम तो कल से अबतक नाराज बरातियों के किस्से सुन-पढ़ रहे हैं।

मुश्किल यह है कि घराती भी बराती जैसे ही थे। नाई की शादी में हजाम ही हजाम मिलते हैं न...।

विवेक सिंह said...

खंभे पर नौंचने के निशान साफ दिखाई दे रहे हैं, इसे मद्दे नज़र रखते हुए अदालत इस नतीज़े पर पहुँची है कि वहाँ खिसियानी बिल्लियाँ पर्याप्त संख्या में मौजूद थीं ।

राज भाटिय़ा said...

राम राम.."...ब्‍लॉगिंग वो तो नूंहए चाल्‍लेगी."

दिनेशराय द्विवेदी said...

फिर उस के बाद....
खाली खाली तंबू है खाली खाली डेरा है .....
इलाहाबाद संगोष्ठी पर सब से अच्छी पोस्ट है।

अर्कजेश said...

ब्लॉगर से हो ब्लॉगर का ब्लॉगरचारा यही संदेश हमारा ...यही संदेश हमारा

ghughutibasuti said...

बढ़िया! मीडिया खंबा है, आपने सिद्ध कर दिया।
घुघूती बासूती

Abhishek Ojha said...

आप अभी तक उधरे हैं. चलिए रुकने का बढ़िया लाभ मिला. असली बातें तो मुखौटे के पीछे ही दिखती हैं.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

इस नज़र से तो आज तक किसी ने दिखाया ही नहीं कोई समारोह

ऋतेश पाठक said...

are wah
aap shabdon se hi nahi

kaimare se bhee achha bolate hain.......

ऋतेश पाठक said...

namaskar...

aap kalamkari hi nahi

chaayakari bhi badhiya