Thursday, December 10, 2009

खून खौलाना की काफियापूर्ति करते मौलाना (आजाद)

टॉम ऑल्‍टर की कुछ सबसे दमदार प्रस्‍तुतियों में से एक है मौलाना आज़ाद। हम पिछले कुछ सप्ताह से इंतजार कर रहे थे और फिर कल दोपहर इस एकल नाटक (सोलो)  की प्रस्‍तुति हमारे कॉलेज सभागार में की गई। आधुनिक भारत में भारतीय मुसलमानों के राजनैतिक जीवन की उथल पुथल पर बेबाक टिप्‍पणी है ये नाटक। बहती हुई उर्दू में टॉम ऑल्‍टर मौलाना आजाद के किरदार को इस खूबसरती से अदा करते हैं कि इस सोलो प्रस्‍तुति को भारतीय रंगमंच की चंद सबसे दमदार प्रस्‍तुतियों में शुमार किया जाता है इसलिए कल जब खुद अपने ही कॉलेज में इसे देखने का मौका मिला तो हमने झट लोक लिया। नाटक पीरो ट्रूप  रंगमंच समूह द्वारा मंचित किया गया। कॉलेज में हुई प्रस्‍तुति से चंद तस्‍वीरें-

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यूट्यूब से प्राप्‍त इसी नाटक से संबंधित दो वीडियो जिनमें से एक तो इस नाटक पर इसके निर्देशक सईद आलम साहब की टिप्‍पणी है जबकि दूसरा कहीं अमरीका में हुए प्रदर्शन का वीडियो है किंतु इस अमरीकी प्रस्‍तुति में सेट तथा प्रस्‍तुति उतनी दमदार नहीं दिख रही है जितनी कल थी... इसकी वजह शायद यह कि कॉलेज में उर्दू को लेकर महौल तथा स्‍वीकृति दोनों ही अधिक है। सेट भी कॉलेज सभागार में कहीं अधिक संसाधन संपन्‍न था।

वीडियो-1

वीडियो 2

हमारी राय पूछें तो इस मायने में ये एक साहसिक प्रस्‍तुति है कि सईद आलम लिखते हैं... टॉम ऑल्‍टर किरदार अदा करते हैं पर वे अल्‍पसंख्‍यकों की रिवाजी देशभक्ति के चक्‍कर में नहीं पड़ते... सरदार पटेल (और नेहरू) को जिन्‍ना के बराबर विभाजन का दोषी बताना साहस का काम है और इस प्रस्‍तुति में इस तरह से कही गई है कि विश्‍वसनीय जान पड़ती है।

11 comments:

मनोज कुमार said...

अच्छी जानकारी। धन्यवाद।

Udan Tashtari said...

शानदार अदाकार है ...बॉस्टन में हमारी बैठक है टॉम के साथ...मस्त बंदा है. आप मिले की नहीं उनसे?

अनूप शुक्ल said...

बहुत बढ़िया त नहीं है लेकिन चलेगा। हम ब्लाग मंडूक को कुछ बताते कि टॉम आल्टर कौन हैं? उनका ब्लाग यू आर एल क्या है? क्या लिखते हैं। एक ठो फ़ोटो मिल गया और दू ठो वीडियो बस सटा दिया।

अब देखना भी पड़ेगा न इसको। या लिख दें कि वीडियो आराम से देखेंगे अभी दफ़्तर के लिये निकल रहे हैं ( जबकि हैं अभी बिस्तरै में और उठेंगे दस मिनट बाद)

मास्टर साहब को याद होगा कि इलाहाबाद में बोधिसत्व ने कहा था कि ब्लागिंग एकतरफ़ा संवाद है। लेकिन सही नहीं था न! आप कुछ कहे /लिखे। हम अपने हिसाब से उसे समझ के उसका मुजाहिरा किये और अब आप या कोई और इसे देखेगा तो कुछ और कहेगा। इससे तो यही लगता है कि ब्लागिंग बहुतरफ़ा संवाद है। इधर भी उधर भी। न जाने किधर भी।

अब देखिये आपके अंगूठा टेक वाली पोस्ट से शुरू हुआ था और यहां आप मौलानाजी से मिलवा दिये।

हाय अल्ला इत्ती देर हो गयी। भागें नहीं तो आज फ़िर मुंह लटकाते हुये या भड़भड़ाते हुये मेन गेट से घुसना पड़ेगा। :)

अनूप शुक्ल said...

ई देखो! उड़नतश्तरी छुआ गये। बोले हम मिले भी हैं टॉम से। अब गये न काम से। वो वाला बोध हो रहा है न जो होता है ऐसे समय....। अच्छा बताओ कि कौन से बोध की बात कर रहे हैं हम? बूझो तो जाने। न , न, न, यहां हम कोई हिंट न देंगे। आप खुदै बताइये। मास्टर हैं जी आप।कोई मजाक है क्या!

Udan Tashtari said...

अनूप जी को अपराध बोध भर न हो..बाकी जो हो झेल लेंगे..अब बताईये मास्साब!!

Shiv said...

बढ़िया जानकारी. कभी कलकत्ते में प्रस्तुति होगी तो देखेंगे.
अच्छा हुआ सईद आलम केवल लिखते हैं. नेता होते तो पार्टी से निकाल दिए गए होते.....अनूप जी को शायद मुक्ति-बोध हो गया है.....:-)

Ghost Buster said...
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संजय बेंगाणी said...

नाटक का उद्देश्य नेहरू-पटेल को भी जिम्मेदार भर बताना था....मुस्लिम समाज में उथल-पुथल कैसी रही और अब शांत हुई की नहीं....


ब्लॉगिंग है, टिप्पणियों पर ध्यान न दें. दोनो इसी प्रकार किये जाते है. नाटक देख लिये, बधाई. टिकट महंगी न हुई और मौका मिला तो देखेंगे. वरना घर एक किलो आलू ले जाना ज्यादा समझादारी भरा रहेगा :)

अनूप शुक्ल said...

@अनूप जी को अपराध बोध भर न हो..बाकी जो हो झेल लेंगे..अब बताईये मास्साब!!

देखा हम कहते हैं कि समीरजी साधु टाइप के जीव हैं। अपना सब कुछ दान दे देते हैं। अपना बोध भी थमा दिया जबरियन! लेव बच्चा हम तो चले अब तुम थामों इस बोध को।

जय हो।

मसिजीवी said...

@ घोस्‍टबस्‍टर,
आपकी टिप्‍पणी सुबह कॉलेज में देखी तो मुझे एकदम उपयुक्‍त लगी टाईपिंग का सही जुगाड़ न होने के कारण उत्‍तर न दे सका
आपका कहना ठीक है इस पोस्‍ट को नाटक की समीक्षा नहीं माना जा सकता इस उद्देश्‍य से लिखी भी नहीं गई थी... आस पास की घटनाओं पर एक चलती फिरती नजर भर थी शायद कुछ देर थमकर लिखी जानी चाहिए थी।

संक्षेप में कहें तो नाटक था तो मौलाना की राजनैतिक व व्‍यक्तिगत शख्सियत पर इस बहाने देश में मुस्लिम राजनीति में जिन्‍ना तथा मौलाना आजाद की टकराहट से परिचय करवाता है।

नाटक ऑम ऑल्‍टर की सेलेब्रिटी वेल्‍यू से दमदार बना हो ऐसा कम से कम हमारे उन उर्दूदां साथियों को तो नहीं लगा जिनका इस हलके में कुछ हस्तक्षेप है इसके विपरीत इस नाटक के मौलाना पर गालिब का प्रभाव ज्‍यादा दिखा किंतु तब भी कुल मिलाकर प्रस्‍तुति प्रभावशाली ही कही जाएगी।

Ghost Buster said...

पोस्ट को पढ़ते ही जो पहला ख्याल आया, जल्दी से टिप्पणी में लिख दिया. बाद में महसूस हुआ कि शायद कुछ स्थानों पर ज्यादा कह गया हूं. इसलिये थोड़ा एडिट करके फ़िर से टीपने का इरादा था. लेकिन अपराध बोध सा हावी हुआ इसलिये मेट कर निकल लिये.

लेकिन आपने उस शुष्क और कटु टिप्पणी का भी जवाब दिया, इस बड़प्पन की बेहद कद्र करता हूं.

बहरहाल अपनी टिप्पणी में आपने जो जोड़ा है, उससे पोस्ट को पूर्णता मिल गयी है. प्ले की दिशा का अब अंदाजा लग रहा है. धन्यवाद.