जनसत्ता के मुख्यपृष्ठ पर आज एफई बैंकिंग पुरस्कारों से जुड़ी ये खबर है-
दिक्कत खबर को पढ़ने से पेश आती है क्योंकि खबर ये बताने में असफल रहती है कि पुरस्कार आखिर मिला किसे... कुछ और ध्यान से पढ़ने से पता लगता है कि खबर केवल पुरस्कार आयोजन को प्रोमोट करने के लिए है (क्यों न हो एफई यानि फाइनेंशियल एक्सप्रेस खुद एक्सप्रेस समूह का ही तो प्रकाशन है) असली चेहरा खबर के शेष को पढ़ने से साफ होता है-
खबर के नीचे समारोह के प्रायोजकों के लोगो ???
वाल सिर्फ इतना कि ये 'खबर' कोई खबर है या केवल प्रोमोशन....
7 comments:
कुछ तो लोगो कहेंगे..लोगो का काम है कहना..वैसे मुझे लग रहा है कि शिखर पर पहुँचाने वाली बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए. खबर का मतलब है कि इन कंपनियों की तरह अपने-अपने क्षेत्र में शिखर पर पहुँच जाइए. मुझे तो यह खबरों में छायावाद टाइप हिसाब-किताब लगता है. अखबार के इस कोने पर कोई शोधार्थी पी एचडी लेकर किसी दिन निकल लेगा.
चलिये आप के बहाने हमे हिन्दी की अखबार नही तो उस की एक झलक ही दिख गई, न्युज के बारे क्या कहे... इस बारे हमे पुरी जानकारी नही
चलिए इसी बहाने आप आये तो सही.. :)
मैं भी पड़ कर उलझा रहा जब किसे मिला ईनाम ये समझ न आया।
अब १० रु. लागत का अखवार २ रु. में बेच रहे है तो पेड न्यूज तो छापनी ही पडॆगी .
आप भी फ़ेसबुक लाईक का बटन लगाईये.. अब ऎसी पोस्ट्स पर कुछ कहते नही बनता...
अचरज करने वाली बात हैं, क्या लोग इसे पढ़ते हैं? खैर, अखबार टी वि से बेहतर हैं। पृष्ठ उलटने पर कहीं न कहीं अच्छी बात पढ़ने को मिल ही जाती हैं।
धन्यवाद।
ए एन नन्द
http://ramblingnanda.blogspot.com
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