सिर्फ तमाशा नहीं है
पुतलों को फूंकना
धूं धूं फुंकते देखना
हर वक़्त को
हर देश को
हर मन को चाहिए होते हैं पुतले
कि दुश्मन के बिना
बहुत मुश्किल है
अनचाहे सवालों को दफन करना
नेस्तनाबूद कर पाना
भीतर उगते
प्रवंचनाओं के किलों को।
नफरत संग्रहणीय हो जाए तो
प्यार के पुतलों का दहन
रोजमर्रा जरूरत हो जाता है।
पुतलों को फूंकना
धूं धूं फुंकते देखना
हर वक़्त को
हर देश को
हर मन को चाहिए होते हैं पुतले
कि दुश्मन के बिना
बहुत मुश्किल है
अनचाहे सवालों को दफन करना
नेस्तनाबूद कर पाना
भीतर उगते
प्रवंचनाओं के किलों को।
नफरत संग्रहणीय हो जाए तो
प्यार के पुतलों का दहन
रोजमर्रा जरूरत हो जाता है।
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