Tuesday, February 07, 2006

दिल्‍ली आखिर दिल्‍ली ठहरी

गत सत्र मैं सराए में एक फैलो था (यह वही संस्‍था हैं जहॉं से योगेन्‍द्र यादव जी जिनका कुर्ता लाल्‍टू के ब्‍लॉग पर लिंकित है, संबद्ध्‍ हैं ) मैने इस शहर दिल्‍ली पर शोध किया था और इसे जानने की कोशिश की थी दावा नहीं कर सकता कि समझ ही गया था पर जितना समझा था उस लिहाज से कह सकता हँ कि दिल्‍ली पर बेदिली के आरोप कुछ ज्‍यादा ही बेदिली से लगाए जाते हैं लाल्‍टू के पास तो खैर वजह थी और बहुत से शहरों का अनुभव भी (दुनिया जहान के शहरों की म्‍यूनिसिपैलिटी का पानी पिए हैं कई बार तो डर लगता है कि हमें कुऍं का मेंढक कह झिड़क न दें)। पर वैसे भी दिल्‍ली के खुद के लोग भी गर्व से दिल्‍ली को बेमुरव्‍वती का शहर मानते बताते हैं। अपन तो इसी शहर की एक बस्‍ती में पैदा हुए और यहीं पले बड़े हुए दोस्‍त बनाए भी। और गंवाए भी और किसी को हैरानी हो तो हो पर हमें यह शहर पसंद भी है। वैसे जो दोस्‍त अभी तक बने हुए हैं उनका कहना है कि इस शहर ने मसिजीवी के साथ नाइंसाफी की है पर खुद मुझे ऐसा कभी नहीं लगा।

इसलिए हमारे लिए यह शहर मुकम्‍मल शख्सियत रखता है इतनी कि शहर मात्र यानि किसी भी शहर में इसे शामिल न करें यह जिद पालतें हैं इसे लेकर।

तो वाक्‍य बनेगा दिल्‍ली आखिर दिल्‍ली ठहरी

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