वह
पलक झपकाने भर तक को तैयार नहीं
उत्साह से कहती हैं
उसकी ऑंखें
देखना जल्द ही सवेरा होगा
मैं मुस्का देता हूँ हौले से बस।
होती हो सुबह- हो जाए
मुझे गुरेज नहीं
पर तुम सा यकीन नहीं मुझे
सवेरे के उजाले में
सच मानों मैं तो डरता हूँ
उस बहस से- जो तब होगी
जब अँधेरे में अपलक ताकने से
पथरा जाएंगी तुम्हारी ऑंखें
साथी कहेंगे- कामरेड
अँधेरे ने एक और बलि ले ली
मैं कहूँगा
ये हत्या उजाले ने की
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