Sunday, October 07, 2007

'कलक्‍टर' व 'डीआईजी' के पिता की भूख से मौत: वाह देश-वाह गोरखपुर

अगर यह खबर देश की राजधानी के पहले पन्‍ने तक पहुँच पाई हे तो इसने कई रास्‍ते तय किए होंगे। या शायद देशभर में हो रहे घटनाक्रम का केवल एक अंश है जो राजधानी तक पहुँच पाया है।  गोरखपुर कोई अनजान गॉंव नहीं है, महंतो से लेकर साहित्यिकों, राजनीतिकों सब का अखाड़ा है। आज की एक मुखपृष्‍ठ खबर के अनुसार 50 साल केविनोदकुमार की भूखमरी से मौत हो गई। जिला प्रशासन आसानी से भुखमरी की मौतों को स्‍वीकार नहीं करते इसलिए पता नहीं औपचारिक रूप से इसका क्‍या कारण दर्ज किया जाएगा पर सच्‍चाई यही हे कि देशभर में गरीबी का नाच बढ़ा है  और अब भूख दर दराज के गॉंवों ही नहीं वरन ऐन शहरों की भी सच्‍चाई हो गई है। इस गरीब विनोद के ही परिवार के दो और सदस्‍य अभी अस्‍पताल में मौत से लड़ रहे हैं पर गरीबी एक बार के इलाज से दूर होने वाली बीमारी नहीं है।

इस खबर के बरक्‍स प्रदेश की मुख्‍यमंत्री की महारैली पर ध्‍यान दें, कम से कम 16 लाख लोगोंको जुटाने में हर जिले का स्थानीय प्रशासन (जी, पार्टी तो जो करेगी वो करेगी ही, कलक्‍टर और आला पुलिस अधिकारी भी इसी काम में लगे हैं) इस रैली को सफल बनाने में जुटा है। यह भी त्रासद व्‍यंग्‍य है कि इस गरीब विनोद कुमार ने अपने बच्‍चों में से दो के नाम  कलक्‍टर व डीआईजी रखे हुए थे।  कलक्‍टर व डीआईजी नाम के बच्‍चों का यह पिता भुखमरी का शिकार हुआ।

अब यदि कोई कहना चाहे कि देश भर में व्‍याप्‍त इस भुखमरी व बाजारवादी नीतियों के बीच संबंध है तो हमें तो शक है कि इस बात कोई गंभीरता से सुनेगा भी नहीं। पर केवल राज्‍य ही की बात क्‍यों करें पास पड़ोस, नाते रिश्‍तेदारी सभी सामाजिक सपार्ट स्‍ट्रक्‍चर चरमरा गए हैं वरना इतना निकट एक पूरा परिवार महीनों भूखा मरता रहा और सब सोते रहे। इस घनघोर संवेदनहीनता का दोषी कौन माना जाए....क्‍या हम खुद भी नहीं।

2 comments:

Anonymous said...

बहुत त्रासद घटना है.
एक एसी ही घटना यहां भी है
http://lakhan.wordpress.com/2007/08/15/anami-1/

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बिल्कुल सही सवाल उठाया है मित्र. अव्वल तो सवाल यह है कि इस बाजारीकरण के लिए ही क्या हम खुद जिम्मेदार नहीं हैं? आखिर क्यों झेल रहे हैं सभी लोग?